देहरादूनःदिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात करने के बाद पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत सीधे पहाड़ एवं सीमांत इलाकों के दौरे पर निकल गए थे. इस दौरान त्रिवेंद्र रावत गैरसैंण भी गए. जहां से लौटने के बाद उनका गैरसैंण को लेकर दर्द छलका है. उनके बयान से गैरसैंण की अनदेखी साफ जाहिर हो रही है.
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि गैरसैंण से उत्तराखंड का एक भावनात्मक रिश्ता जुड़ा है. साथ ही पहाड़ का मूल प्रतीक भी है. हमें इस भावना को जिंदा रखना होगा. उन्होंने अपने प्रयासों से गैरसैंण के लिए बढ़-चढ़कर काम करना चाहा. उन्हें गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी (Uttarakhand Summer Capital Gairsain) बनाने का मौका मिला. नई सरकार के गठन हुआ है. वो भी मानतें हैं कि सरकार की कुछ व्यस्तताएं हैं, लेकिन गैरसैंण की अनदेखी नहीं होनी चाहिए.
गैरसैंण को लेकर छलका त्रिवेंद्र का दर्द. गैरसैंण के नाम पर कर्मचारी रखने पर त्रिवेंद्र का तंज:गैरसैंण राजधानी के नाम कर्मचारियों की भर्ती कराने पर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तंज कसा है. उन्होंने कहा कि अफसोस तो इस बात का है कि गैरसैंण में विधानसभा के नाम पर कई कर्मचारी रखे गए. जिसमें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवालने 158 कर्मचारी तो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के समय में भी 72 लोगों को रखा गया. गैरसैंण को लेकर ये भर्तियां हुई थी. दरअसल, उन्होंने इशारों-इशारों में विधानसभा बैकडोर भर्ती(Uttarakhand Assembly Recruitment Scam) पर निशाना साधा है.
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गैरसैंण के मुद्दे पर सरकार जनता के सामने रखे स्पष्ट मतःपूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat Statement on Gairsain) ने कहा कि गैरसैंण को लेकर सरकार को अपना एक स्पष्ट मत जनता के सामने रखना चाहिए. सरकार को ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में सत्र कराने को लेकर अपना कैलेंडर जारी करना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि विडंबना देखिए कि गैरसैंण की भावना की आग धीरे-धीरे सरकार की कार्यशैली से गायब होती जा रही है.
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सीएम त्रिवेंद्र के इस बयान ने बटोरी सुर्खियांःवहीं, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के एक बयान ने भी काफी सुर्खियां बटोरी. जिसमें उन्होंने कहा था कि जब प्रजा जागती रहेगी, तभी तो राजा भी जागता रहेगा. त्रिवेंद्र रावत के इस बयान के कई मायने निकाले गए. सवाल ये भी किए गए कि त्रिवेंद्र रावत यहां कौन से राजा की बात कर रहे हैं?
जब वे त्रिवेंद्र सिंह रावत पहाड़ के दौरे से वापस लौटे तो इस बयान के ठीक मायने समझाने के लिए भी उनसे सवाल किया गया. जिस पर उन्होंने कहा कि यह एक पुरानी का कहावत है कि जब तक बच्चा रोता नहीं है तो उसकी मां उसको दूध नहीं पिलाती है. उसकी क्या मायने नहीं लगाए जाते हैं कि मां बच्चे की दुश्मन है.
सीमांत दौरे पर भी बोले त्रिवेंद्र: वहीं, सीमांत इलाकों के दौरे पर बोलते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि किस तरह से सेना के जवान मुश्किल परिस्थितियों में देश की रक्षा में डटे हुए हैं. इतना ही नहीं उन्होंने सीमांत क्षेत्र में मौजूद एकमात्र महिला डॉक्टर की कर्तव्य निष्ठा के बारे में भी कहा कि वह महिला जो कि केरल की रहने वाली है. लेकिन 200 से ज्यादा जवानों के साथ अकेले काम कर रही हैं. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के कर्मचारियों के लिए एक बड़ी सीख है कि कैसे विषम परिस्थितियों में भी बिल्कुल आत्मिक सुख के साथ काम किया जाता है, यह सीखना चाहिए.