देहरादून: उत्तराखंड पुलिस के शक्तिमान घोड़े की मौत का जो मामला देश-विदेश में चर्चाओं का विषय बना था. 23 सितंबर को उस मामले में देहरादून की सीजेएम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने घोड़े की मौत में मामले में आरोपी बनाए कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी समेत अन्य सभी लोगों को दोषमुक्त करते हुए बरी कर दिया है. ये मामला पूरे छह साल तक कोर्ट में चला.
ऐसे में सवाल खड़े हो रहे है कि पुलिस की तरफ से कहां कमी रह गई जो कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी समेत सभी लोगों को कोर्ट ने साक्ष्य और सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में यहीं कहा कि साक्ष्य और सबूतों के अभाव में कोई भी दोष कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी पर सिद्ध नहीं होता है, इसलिए उन्हें बरी किया जाता है.
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पहला प्वॉइंट: इस बारे में अभियोजन अधिकारी वकील ममता मंडुली ने बताया कि पुलिस मीडिया सेल (DCRB) ने कोर्ट एक वीडियो पेश किया था, जिसके आधार पर वो गणेश जोशी पर शक्तिमान घोड़े पर डंडे से प्रहार करने का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन आईपीसी की धारा 65B के मुताबिक पुलिस इस वीडियो की प्रामाणिकता कोर्ट में दाखिल नहीं कर पाई. यानी जो वीडियो सबूत के तौर पेश किया गया था. उसका कोई सोर्स न तो पुलिस द्वारा बताया और न ही इस वीडियो को बनाने में किसी की गवाही कोर्ट में सामने आई.
ऐसे में पुलिस द्वारा जो वीडियो पेन ड्राइव के जरिए कोर्ट में पेश किया था, उसको एडिट करने का अंदेशा भी जताया गया. ऐसे में कोर्ट के समक्ष पेश किए गए इस वीडियो फुटेज को पर्याप्त सबूत नहीं माना गया.
2016 विधानसभा के बाहर विरोध प्रदर्शन की तस्वीर. दूसरा प्वॉइंट: इसके साथ ही अभियोजन पक्ष अधिकारी ने बताया कि इस मामले में गवाही साबित न होना भी सामने आया है. दरअसल, कोर्ट में सुनवाई के दौरान 6 सालों में 18 गवाह पेश किए गए लेकिन किसी ने भी गणेश जोशी पर लगाए गए आरोपों की पुष्टि नहीं की. जबकि बचाव पक्ष की तरफ से 3 गवाह पेश किए गए, जिन्होंने इस घटना को एक दुर्घटना बताया. बचाव पक्ष के गवाहों के अनुसार पुलिस कार्रवाई के दौरान शक्तिमान घोड़े का पांव विधानसभा के पास एक पुलिया जैसे लोहे की रोड वाली जाली में बुरी तरह फंसा था, जिसकी वजह से पैर टूटा.
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तीसरा प्वॉइंट:ममता मंडुली ने एक तीसरा कारण भी बताया. 2016 में ये मामला कांग्रेस सरकार बनाम गणेश जोशी नेताओं के खिलाफ दर्ज किया गया था, जिसका कोर्ट में ट्रायल शुरू हुआ था. लेकिन वर्ष 2017 में बीजेपी की सरकार आते ही सरकारी अभियोज पक्ष द्वारा आरोप को वापस लेने का फैसला लिया गया. हालांकि, सरकारी अभियोज पक्ष के प्रार्थना पत्र को पहले सीजीएम कोर्ट, सेशन कोर्ट और आखिर में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था.
ऐसे में अभियोजन पक्ष के मुताबिक सरकार द्वारा केस वापस लेने की प्रक्रिया के चलते कोर्ट में मुख्य आरोपी वाली सुनवाई तकनीकी वजह से लंबित चलती रही. इसके बाद वर्ष 2020-21 में कोविड-19 काल के कारण कोर्ट कार्रवाई बाधित रही. हालांकि इस बीच नैनीताल हाईकोर्ट ने विशेष आदेश देते हुए विधायक और सांसदों जैसे जनप्रतिनिधियों से जुड़े मामले में त्वरित सुनवाई करने को कहा था.
इसी आदेश के मुताबिक नवंबर 2020 से हाईकोर्ट के आदेश पर विधायक सांसदों के पेंडिंग मामले में पिछले 1 साल में कोर्ट कार्रवाई में तेजी आई. इसी का नतीजा रहा कि शक्तिमान के इस प्रकरण में बीजेपी नेता गणेश जोशी सहित पांच अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ इस मामले में कोई पर्याप्त सबूत और गवाह न मिलने के कारण कोर्ट ने सभी आरोपित को दोष मुक्त कर दिया है.
बहरहाल वर्ष 2016 में चर्चित पुलिस शक्तिमान घोड़ा मौत प्रकरण भले ही 6 वर्षों तक देहरादून निचली अदालत में चलाया गया. लेकिन अभियोजन अधिकारी के मुताबिक बीते 5 साल में न तो इस केस में कोई सबूत-साक्ष्य और गवाह प्रभावी रहे और न ही इस प्रकरण की सुनवाई अलग-अलग तकनीकी कारणों के चलते सुचारू हो सकी. अंतिम कुछ महीनों में हाईकोर्ट के विशेष आदेश पर राजनेताओं के मामलों पर यह सुनवाई लगातार हुई. जिसमें कोई भी आरोप अदालत में बीजेपी नेताओं के खिलाफ साबित नहीं हो सका. यही कारण रहा कि आरोपी दोषमुक्त हुए.
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क्या था मामला: बता दें कि 14 मार्च 2016 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार की कथित नाकामियों के विरोध में बीजेपी के सदस्यों ने बजट सत्र के दौरान विधानसभा का घेराव किया था. विधानसभा के पास विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिसकर्मियों और भाजपा समर्थकों के बीच झड़प भी हुई थी.
आरोप था कि इस दौरान भाजपा विधायक गणेश जोशी ने पुलिस की लाठी छीनकर उन्हीं पर बरसाना शुरू कर दिया था. भाजपा विधायक गणेश जोशी के लाठी से हमला करने और दूसरी तरफ से भाजपा नेता प्रमोद वोहरा द्वारा लगाम खींचने से घोड़े का सारा भार उसके पीछे के हिस्से पर आ गया और वह गिर गया था, जिससे उसकी पिछली टांग की हड्डी टूट गई थी.
इस दर्दनाक घटना के बाद घोड़े शक्तिमान का देहरादून पुलिस लाइन में कई दिनों तक मेडिकल उपचार चलता रहा. हालांकि, शक्तिमान की जान बचाने के लिये चिकित्सकों ने ऑपरेशन कर उसकी टूटी टांग काट दी और उसकी जगह कृत्रिम (आर्टिफिशियल) पैर लगा दिया था, लेकिन उसकी जान नहीं बचा सके. यह मामला देश-विदेश में खूब चर्चित हुआ था. वहीं, उत्तराखंड पुलिस के प्रशिक्षित घोड़े शक्तिमान पर कथित रूप से लाठी से हमला कर उसे घायल करने के आरोप में भाजपा विधायक गणेश जोशी पर पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. कांग्रेस ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया था.