नई दिल्ली/देहरादून: उत्तराखंड हाईकोर्ट के फिजिकल सुनवाई करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इस पर सोमवार को सुनवाई हुई है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के नोटिफिकेशन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. शीर्ष अदालत ने याचिका पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है.
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई), सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) को भी मामले में पक्ष बनाया और उन्हें नोटिस जारी किए. पीठ ने स्पष्ट किया कि डिजिटल सुनवाई का उपयोग सीमित होना चाहिए और याचिकाकर्ता को यह नहीं कहना चाहिए कि 'हाईब्रिड' व्यवस्था हमेशा के लिए जारी रहनी चाहिए. इस दौरान शीर्ष आदालत ने कहा कि डिजिटल सुनवाई से युवा वकील प्रभावित हो रहे हैं.
पीठ ने कहा, 'हम बीसीआई और एससीबीए को नोटिस जारी करेंगे. देखते हैं कि उनका क्या जवाब होता है. हमने आदेश देखा है लेकिन हम इस पर रोक नहीं लगा रहे हैं'. कोर्ट ने कहा कि वह दूसरे पक्ष को सुनना चाहेगी और अभी हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय को भी नोटिस जारी किया.
पीठ ने कहा कि इस अदालत का इरादा वकीलों को यहां नहीं देखने का नहीं है. पीठ ने कहा, 'हमें वास्तव में आपकी कमी खल रही है. हम आपको आमने-सामने देखना चाहते हैं. वकीलों का प्रदर्शन भी प्रभावित हो रहा है. आपके कार्यालय में बैठ कर दलीलें देना अदालत में बहस करने से अलग है.
जस्टिस राव ने कहा कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि सब सामान्य होना चाहिए. क्या याचिकाकर्ता अभी ऑनलाइन सुनवाई पर जोर दे रहे हैं? वरिष्ठ वकील लूथरा ने कहा कि हाईब्रिड विकल्प को भी खुल रखना चहिए. इससे मुवक्किल के यात्रा करने पर खर्च की बचत होगी. जस्टिस गवई ने कहा कि BCI के चेयरमैन का कहना है कि ऑनलाइन सुनवाई से नए वकीलों को नुकसान हो रहा है. वकील लूथरा ने कहा कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि केस पर सुनवाई नहीं हो रही है.
युवा वकील कैसे सीखेंगे?पीठ ने कहा, 'हम वास्तव में अदालत में आंखों से आंखों का संपर्क खो रहे हैं. जहां आप पूरे प्रवाह में दलीलें दे रहे होते हैं. यह सब अभी नहीं हो रहा है. युवा वकील कैसे सीखेंगे? अधिकतर युवा वकील अदालत में बैठकर और वरिष्ठों को बहस करते हुए देखकर सीखते हैं. यह सब डिजिटल तरीके में संभव नहीं है'. पीठ ने कहा, 'हम सभी कोविड-19 के खत्म होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं और भगवान करे कि तीसरी लहर चली जाए और गंभीर नहीं हो तथा चीजें सामान्य हो जाएं. इसलिए, याचिकाकर्ता अब भी जोर दे रहे हैं कि अदालत को फिजिकल रूप में कार्य नहीं करना चाहिए'.
ऑल इंडिया ज्यूरिस्ट्स एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने दलील दी कि 'हाईब्रिड' व्यवस्था जारी रहनी चाहिए और इसे खत्म नहीं किया जाना चाहिए. वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता और एससीबीए अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि वह चाहते हैं कि प्रत्यक्ष सुनवाई फिर से शुरू हो. मामले में अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी.
24 अगस्त से फिजिकल सुनवाई करने का किया था फैसला: दरअसल उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 24 अगस्त से फिजिकल सुनवाई फिर से शुरू करने का फैसला किया था. हाईकोर्ट वर्चुअल सुनवाई के किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं करेगा. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि कोविड-19 महामारी के कारण मार्च में निलंबित हो गए मामलों की प्रत्यक्ष सुनवाई 24 अगस्त से बहाल होगी. हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने 16 अगस्त को इस संबंध में एक अधिसूचना जारी की थी. याचिका में इस अधिसूचना को निरस्त करने का अनुरोध किया गया जिसमें यह भी कहा गया है कि वीडियो कॉन्फ्रेंस से सुनवाई के किसी अनुरोध पर विचार नहीं किया जाएगा.