देहरादून:दरअसल, साल 2017 में राज्य सरकार के गठन के दौरान जब मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शपथ ली थी तो उस दौरान राज्य में लोकायुक्त गठन की बात कही गई थी. इससे पहले खंडूड़ी शासनकाल में भी लोकायुक्त का स्वरूप तैयार कर लिया गया था. यही नहीं, लोकायुक्त बिल सदन तक भी पहुंच गया था. इसके लिए एक कमेटी गठित की गई थी. लेकिन सदन में लोकायुक्त पर ना तो चर्चा हो सकी और ना ही लोकायुक्त बिल सदन से पारित हो सका. तब से यह बिल विधानसभा की संपत्ति के रूप में विधानसभा में ही विचाराधीन है.
विपक्ष कर रहा लोकायुक्त की मांग
एक तरफ विपक्षी नेता लोकायुक्त के गठन की मांग कर रहे हैं और लोकायुक्त गठित नहीं किए जाने को लेकर सरकार की मंशा पर कई सवाल खड़े कर रहे हैं. जबकि दूसरी तरफ प्रदेश सरकार के शासकीय प्रवक्ता का साफ तौर पर कहना है कि कोई भी मामला सामने आता है तो सरकार तत्परता दिखाते हुए उस पर एक्शन लेती है. लिहाजा सरकार जिस तरह से काम कर रही है ऐसे में प्रदेश में लोकायुक्त की जरूरत नहीं होनी चाहिए. कौशिक का कहना है कि प्रदेश में जीरो टॉलरेंस कि सरकार चल रही है. ऐसे में जब सरकार और विपक्ष सामने आ रहे हैं तो समझा जा सकता है कि विकास और भ्रष्टाचार को लेकर विपक्ष के तेवर आखिर क्या हैं और सत्ता पक्ष की रणनीति आखिर क्या है.
खंडूड़ी सरकार के समय से चर्चा में है लोकायुक्त
दरअसल, लोकायुक्त का मामला पूर्व के खंडूड़ी सरकार के शासनकाल में भी काफी चर्चा में रहा था. इसके बाद उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में आयी. इस दौरान बहुगुणा से लेकर हरीश रावत के शासनकाल में भी लोकायुक्त का मामला काफी चर्चाओ में रहा. फिर साल 2017 में जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कमान संभाली उस दौरान भी विपक्ष ने लोकायुक्त के गठन को लेकर तमाम सवाल खड़े किए थे. मौजूदा परिपेक्ष में एक बार फिर विपक्ष ने लोकायुक्त को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. यही नहीं, हाल ही में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने चावल घोटाले का मामला उठने के दौरान भी लोकायुक्त गठन की फिर से मांग उठाई थी.
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सरकार की मंशा लोकायुक्त लाने की नहीं !
मदन कौशिक का साफ तौर पर कहना है कि किसी भी मामले के संज्ञान में आते ही सरकार त्वरित कार्रवाई करती है. तत्काल एक्शन लेती है. लिहाजा लोकायुक्त की आवश्यकता प्रदेश में नहीं होनी चाहिए. उधर विपक्ष बार-बार यह मुद्दा उठा रहा है कि कहां गया राज्य में लोकायुक्त और केंद्र में लोकपाल? आखिर इतना समय बीत जाने के बाद भी लोकायुक्त गठित क्यों नहीं हो पाया है. ऐसे में प्रदेश में लोकायुक्त गठित हो पाएगा या लोकायुक्त को लेकर विपक्ष यूं ही सवाल खड़े करता रहेगा और सत्ता पक्ष इसमें अपना पक्ष रख विपक्ष पर पलटवार करता रहेगा, ये एक बड़ा सवाल है.
2011 में लाया गया था लोकायुक्त बिल
- 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में पेश किया गया तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बिल को मंजूरी दी थी.
- बाद में मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा के कार्यकाल में इसे निरस्त कर दिया गया.
- 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने इसे दोबारा विधानसभा में पेश किया.
- बाद में इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया.