देहरादून: हिंदू धर्म में सावन के महीने का बहुत महत्व है और श्रावण मास को मनोकामनाएं पूरा करने का महीना भी कहा जाता है. शास्त्रों के अनुसार भोलेनाथ को ये महीना बहुत प्रिय है और जो भी भक्त सावन के महीने में पूरे विधि-विधान से शंकर भगवान की पूजा करते हैं, उन पर भोलेनाथ की विशेष कृपा होती है. सावन में शिवभक्त देवालयों में जाकर भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं. लेकिन सावन में उत्तराखंड के पंचकेदार की महिमा ही कुछ अलग है. हालांकि इस बार कोरोना संकट के चलते देवालयों में श्रद्धालु कम ही आ रहे हैं. देवभूमि के प्रसिद्ध केदारनाथ धाम देश-दुनिया में विख्यात है. इसके साथ ही चार अन्य जगहों पर स्थापित मंदिरों में भगवान शिव के अलग-अलग अंगों की पूजा-अर्चना होती है, जो मिल कर पंचकेदार कहलाते हैं.
पंचकेदार की पौराणिक मान्यता
देवभूमि उत्तराखंड के हर शिखर पर कोई न कोई मंदिर स्थापित है. इसके साथ ही नदी का संगम स्थल भी देश-दुनिया के श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक मान्यताओं का प्रमुख बिंदु केंद्र है. पंचकेदार पांच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है और इसका वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित है. पंचकेदार में पहले केदार के रूप में केदारनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक है. द्वितीय केदार के रूप में भगवान मदमहेश्वर, तृतीय केदार के रूप में भगवान तुंगनाथ, चतुर्थ केदार के रूप में भगवान रुद्रनाथ और पांचवे केदार के रूप में कल्पेश्वर की पूजा होती है. सभी पंचकेदार भगवान शिव के पवित्र स्थान हैं, जहां भगवान शंकर के विभिन्न विग्रहों की पूजा होती है.
पंचकेदार की मान्यता है कि पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, उसी क्रम में पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय पहुंचे. लेकिन भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे. भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर लिया और अन्य पशुओं के बीच चले गए. पांडवों को संदेह हुआ तो भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर लिया और दो पहाड़ों के बीच अपना पैर फैला दिया. सभी गाय-बैल पैर के नीचे से चले गए, लेकिन भगवान शंकर रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुआ. इस बीच भीम बैल पर झपटा मार पकड़ने की कोशिश करने लगे तो बैल भूमि में अंतरध्यान होने लगा. तब भीम ने बैल की त्रिकोणा रूपी पीठ के भाग पकड़ लिया. भगवान शंकर पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए. उन्होंने दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया. उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजी जाती है. माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ. जहां अब विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर स्थापित है. शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुईं. इसलिए इन चार स्थानों के साथ केदारनाथ धाम को पंचकेदार कहा जाता है.
केदारनाथ धाम
साढ़े 12 हजार फीट की ऊंचाई पर केदारनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. बारह ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ धाम का सबसे ऊपर है. केदारनाथ धाम में बैल की पीठ के आकार में स्थापित आकृति पिंड के रूप में भगवान शिव की पूजा-अर्चना होती है. केदार का अर्थ दलदल है. कत्यूरी शैली से बने केदारनाथ मंदिर की मान्यता है कि इसका निर्माण पांडवों ने कराया था और जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था.
मद्महेश्वर मंदिर
मद्महेश्वर मंदिर बारह हजार फीट की ऊंचाई पर चौखंभा शिखर की तलहटी में स्थित है. मद्महेश्वर द्वितीय केदार हैं. यहां भगवान शंकर के मध्य भाग के दर्शन होते हैं. मद्महेश्वर मंदिर के नैसर्गिक सौंदर्य के कारण ही शिव-पार्वती ने रात्रि यहीं बिताई. मान्यता है कि यहां का जल पवित्र है और इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं. शीतकाल में छह माह के लिए मद्महेश्वर मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं.