देहरादून: उत्तराखंड राज्य बनने के बाद प्रदेश ने विकास के कई नए आयाम छुए. अगर कुछ नहीं बदला है तो वह है प्रदेश की शिक्षा प्रणाली, जो आज भी पुराने ढर्रे पर चल रही है. आज भी ट्रांसफर एक्ट और सुगम-दुर्गम की खिचड़ी में शिक्षकों और खासकर पहाड़ी अंचलों के छात्रों का भविष्य गर्त में है. हालांकि, सूबे के शिक्षा मंत्री और खुद मुख्यमंत्री का कहना है कि अच्छे दिन आएंगे, लेकिन कब आएंगे यह कोई नहीं जानता.
उत्तराखंड के बेबस शिक्षा तंत्र की वजह से बीते साल जनता दरबार में शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बीच विवाद हुआ था. आज भी उत्तराखंड के ऐसे कई पहाड़ी जिले हैं, जहां के दुर्गम सीमांत गांव में शिक्षक और छात्र सालों पुरानी व्यवस्था के साथ चल रहे है. यानी कि अगर कोई शिक्षक आज से 15 साल पहले भी उत्तरकाशी या पिथौरागढ़ जिले के दुर्गम इलाके में था तो वह आज भी वहीं रहने को मजबूर है. हालांकि, वो उम्मीद पाले जरूर बैठा है कि कभी तो सरकार उसकी सुध लेगी और उसका ट्रांसफर किसी सुगम इलाके में होगा.
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पहाड़ों पर सरकारी स्कूलों में शिक्षा की स्थिति ये है कि कही पढ़ने के लिए बच्चे नहीं है तो कहीं पढ़ाने के लिए टीचर नहीं है. किसी स्कूल में पांच बच्चों पर 11 अध्यापक हैं तो 100 से बच्चों पर दो ही टीचर. इस तरह की खबर उत्तराखंड की शिक्षा प्रणाली में अक्सर सुर्खियां बनती हैं. हालांकि सरकार ने शिक्षा प्रणाली को सुधारने के लिए कुछ परिवर्तन जरूर किया था. इसके लिए ट्रांसफर एक्ट में भी कुछ बदलाव भी किए गए थे.