देहरादून:बीजेपी आज अपना 42वां स्थापना दिवस मना रही है. भारतीय जनता पार्टी का सफर आसान नहीं रहा है. संगठन को कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा है. इसी सफर को पार कर भाजपा आज देश के शीर्ष पद पर पहुंची है. वहीं उत्तराखंड में भाजपा सहित जनसंघ और आरएसएस की शुरुआत कैसे हुई इस बारे में कार्यकर्ता आनंद शर्मा ने खुलकर यादें बयां की. ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए जनसंघ के समय से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक पार्टी के अलग-अलग पदों पर रहे बीजेपी के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी के इतिहास के उन महत्वपूर्ण पन्नों को पलटा, जिन्हें आज पार्टी में मौजूद हर एक युवा कार्यकर्ता को सुनने और समझने की जरूरत है.
आनंद शर्मा ने 1972 में जनसंघ के अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत के बारे में बताया कि उनकी 2 पीढ़ियां पहले ही संघ में रह चुकी थीं. उनके पिता और दादाजी दोनों संघ में रहते हुए जेल भी जा चुके थे. जिसके बाद उन्होंने भी वर्ष 1972 में जनसंघ के समय अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की और पार्टी के अलग-अलग पदों पर रहे.
गुड़ चना खाकर ट्रक में यात्रा कर उत्तराखंड में हुई थी पार्टी की शुरुआत. संघ का उद्देश्य:अपने जीवन का काफी समय पार्टी के नाम कर चुके आनंद शर्मा बताते हैं कि जब पार्टी की शुरुआत हुई थी तो उस समय मकसद केवल एक था विचारों को फैलाना और विचारधारा को आगे बढ़ाना. लेकिन आज सरकार बनाना पार्टी की पहली प्राथमिकता हो चुकी है. आनंद शर्मा बताते हैं कि 1925 में संघ की स्थापना के बाद संघ का उद्देश्य एकमात्र विशुद्ध रूप से अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने का था.
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पार्टी का दुष्प्रचार:लेकिन जब देश के आजादी के बात बाद महात्मा गांधी की हत्या के दौरान संघ का दुष्प्रचार किया गया और संघ पर प्रतिबंध लगाया गया तो उसके बाद हालांकि प्रतिबंध जल्द ही हटा दिया गया था. लेकिन यह जरूरत महसूस की गई कि राजनीतिक रूप से भी एक प्रतिनिधित्व करने वाली शाखा होनी चाहिए और उसके बाद 1952 में जनसंघ की स्थापना की गई. इसके बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई और इस तरह से इसी पार्टी ने एक वह समय भी देखा था, जब चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशियों को जबरन दबाव डालना पड़ता था और आज भारतीय जनता पार्टी में टिकट पाने के लिए होड़ लगी रहती है.
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संघ को ऐसे किया मजबूत:आनंद शर्मा बताते हैं कि लंबे समय तक उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहा उत्तराखंड का पहाड़ी भूभाग उत्तर प्रदेश में आता था. लिहाजा यहां पर अलग-अलग मंडल हुआ करते थे और सभी जगहों पर संघ की शाखाएं लगती थी. संघ के कार्यकर्ता मौजूद थे, लेकिन जब जनसंघ की स्थापना हुई तो उस समय कार्यकर्ताओं की बेहद कमी थी और संघ के कार्यकर्ता ही जनसंघ को मजबूत करने के लिए मदद किया करते थे. आनंद शर्मा बताते हैं कि जब 90 के दशक में पहली बार उत्तराखंड राज्य आंदोलन की आग भड़की तो पार्टी ने संगठनात्मक रूप से पर्वतीय इलाके को अलग कर दिया और जहां पहले उत्तराखंड का पर्वतीय इलाका पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आता था और संगठन के लिए उत्तर प्रदेश के केवल 4 भाग हुआ करते थे.
पंडित देवेंद्र शास्त्री का अहम योगदान:इनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, अवध और ब्रज थे. उत्तराखंड का पर्वतीय इलाका पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शामिल था. जब आंदोलन की आग भड़की तो संगठन ने एक पर्वतीय उत्तर प्रदेश क्षेत्र भी अलग कर दिया. जिसका अध्यक्ष देवेंद्र शास्त्री को बनाया गया. देवेंद्र शास्त्री जनसंघ के पुराने नेता थे. वह देहरादून में विधायक भी रह चुके थे. आनंद शर्मा बताते हैं कि पंडित देवेंद्र शास्त्री संघ के पुराने प्रचारक थे और वह देश आजाद होने के बाद जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, उस समय लाहौर में प्रचारक थे. हालांकि बंटवारे के बाद वह वापस आए और उन्हें उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई. पंडित देवेंद्र शास्त्री देहरादून सहसपुर क्षेत्र के रहने वाले थे.
ट्रकों में सफर करते थे नेता:भाजपा के पुराने नेता आनंद शर्मा बताते हैं कि आज भले ही भारतीय जनता पार्टी देश और विश्व का सबसे बड़ा संगठन बन चुकी है, लेकिन एक वह दौर भी था जब संगठन के लोग गुड़ और चना खाकर काम करते थे. आनंद शर्मा बताते हैं कि उन्होंने वह दौर भी देखा है जब चंदा देने के लिए कांग्रेस को अगर कोई ₹100 देने के लिए तैयार होता था तो जनसंघ के उस समय वह ₹1 चंदा देता था. वहीं इसके अलावा उन्होंने बताया कि उनके बड़े नेताओं के पास यात्रा के लिए साधन नहीं हुआ करते थे. वह ट्रकों में यात्रा किया करते थे.
देहरादून में छोटा सा कार्यालय:आनंद शर्मा ने एक किस्सा बताते हुए कहा कि श्रीनगर गढ़वाल में उनके किसी बड़े नेता की जनसभा होनी थी. उस समय ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था नहीं थी तो उनके नेता ट्रक में श्रीनगर पहुंचे थे. आनंद शर्मा बताते हैं कि शुरुआत में संगठन का कोई कार्यालय नहीं था. जब जनसंघ की स्थापना हुई तो देहरादून मोती बाजार में एक छोटा सा कमरा कार्यालय बनाया गया और संघ की तमाम अन्य शाखाएं, संगठन इसी कार्यालय से संचालित हुआ करती थीं. इसी कार्यालय पर सभी रणनीतियां तैयार की जाती थीं.