मसूरी:पहाड़ों की रानी मसूरी समेत पूरा जौनसार बावर मरोज माघ पर्व के जश्न में डूब गया है. पर्व पर लोगों ने एक दूसरे की खूब मेहमाननवाजी की. वहीं, लोगों ने पंचायती आंगन में हरुल व लोक गीतों पर जमकर तांदी नृत्य किया. महापर्व के जश्न में बूढ़े, महिलाएं एवं पुरुषों ने पंचायती आंगन में सामूहिक नृत्य कर समा बांधा.
बता दें, जौनसार बाबर में मरोज पर्व पर बकरे की बलि देने के बाद पूरे महीने जश्न मनाने की परंपरा है. सदियों से चली आ रही यह परंपरा क्षेत्र में आज तक कायम है. जौनपुर रमाई और जौनसार बावर के प्रवासियों का मरोज त्योहार मनाने के लिए अपने गांव पहुंच रहे हैं. प्राचीन काल से मरोज त्योहार मनाने की परंपरा है जो पूरे मार्च माह के दौरान ग्रामीण दावत के साथ आनंद लेते हैं.
बंगलों की कांडी गांव के निवासी जबर वर्मा ने बताया कि सभी परिवार लगभग एक साल पहले से ही मरोज के लिए बकरा पालन शुरू करते हैं. मरोज त्योहार मनाने के लिए एक मान्यता के अनुसार जौनपुर रामायण और जौनसार बावर के निवासी खुद को पांडवों का वंशज मानते हैं. हर गांव में एक पांडव का मंदिर है, जो इसका पुख्ता प्रमाण है. कोई भी त्योहार मनाने से पहले पांडव मंदिर में पूजा होती है.
मान्यता के अनुसार पांडव जुएं में कौरवों से जब द्रोपदी को हार गए थे तो दुःशासन और दुर्योधन ने द्रोपदी का चीर हरण किया था. तब द्रौपदी ने सभा में अपने केस खोलते हुए शपथ ली थी कि दुःशासन को मार कर खून से केस धोने के बाद अपने केश को बाधूंगी. मरोज त्योहार के दिन घर की वरिष्ठ महिला बकरा काटने के बाद ही पूजा-अर्चना करने के बाद अपने केस बंधती हैं.