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उत्तराखंड की राजनीति में सबसे ऊपर हिंदुत्ववाद, चुनावी मैदान में दिलचस्प भिड़ंत

उत्तराखंड में चुनावों के दौरान धार्मिक ध्रुवीकरण और हिंदुत्व एक बड़ा फैक्टर रहा है. देवभूमि होने के नाते यहां के चुनावों में इन धार्मिक स्थानों का काफी महत्व है. उत्तराखंड में साल 2017 चुनाव में 57 सीट पाकर बीजेपी की अगर प्रचंड जीत हुई तो उसमें इन धार्मिक स्थलों और हिंदुत्व का एजेंडा सबसे बड़ा फैक्टर रहा. ऐसे में 2022 के चुनावी परिणाम पर सबकी नजरें टिकी हैं कि इस बार जनता किस मुद्दे पर और किसे अपना नेता चुनती है.

Hindutva Factor in Uttarakhand
उत्तराखंड के राजनीति में हिंदुत्व

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Published : Mar 9, 2022, 8:31 AM IST

Updated : Mar 9, 2022, 10:33 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन के लिहाज से देश दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. चारधाम के अलावा यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. वहीं, उत्तराखंड की राजनीति पर भी इन धार्मिक स्थानों का काफी महत्व है.

उत्तराखंड में साल 2017 चुनाव में 57 सीट पाकर बीजेपी की अगर प्रचंड जीत हुई तो उसमें इन धार्मिक स्थलों और हिंदुत्व का एजेंडा सबसे बड़ा फैक्टर रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व के नाम पर लड़े गए इस चुनाव में न केवल बीजेपी ने 2014 के आम चुनावों में केंद्र में सरकार बनाई, बल्कि अन्य राज्यों पर भी इसका असर देखा गया. फिर चाहे उत्तर प्रदेश हो, हरियाणा हो या उत्तराखंड.

उत्तराखंड में भी कई धार्मिक सीटें ऐसी हैं, जिनको बीजेपी हमेशा से अपने टारगेट पर रखती है ताकि धार्मिक दृष्टि और हिंदूवादी सोच के कारण अन्य सीटों पर भी इसका असर पड़े. बीजेपी चुनावों से पहले और सरकार बनने के बाद कुछ प्रमुख धार्मिक सीटों पर सबसे ज्यादा ध्यान देती है. ऐसे में इस रिपोर्ट में हम आपको धार्मिक दृष्टि से जुड़ी ऐसी कुछ विधानसभा सीटों को बारे में बताने जा रहे हैं, जो सरकार बनने और बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

गढ़वाल मंडल में स्थित चारधाम (केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री), ऋषिकेश और हरिद्वार विधानसभा सीटें इनमें प्रमुख हैं. 2017 के चुनावों में बीजेपी को केदारनाथ में बड़ा झटका लगा था. वहीं ऋषिकेश और हरिद्वार में बीजेपी राज्य बनने के बाद से निरंतर जीतती आ रही है.

केदारनाथ सीट पर दो-दो बार बीजेपी-कांग्रेस का रहा कब्जा:केदारनाथ धाम को 12 ज्योतिर्लिंगों में विशेष माना गया है. मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण पांडवों ने महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद कराया था. साल 2013 में आई आपदा ने केदार घाटी में भारी तबाही मचाई थी, जिसके बाद चारधाम के प्रमुख स्थल केदारनाथ धाम का पुनर्निर्माण कार्य जारी है. केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक है और वह समय-समय पर केदारनाथ धाम के दर्शनों के लिए आते रहते हैं.

केदारनाथ विधानसभा.

चुनावी समीकरण: केदारनाथ विधानसभा सीट रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत आती है. केदारनाथ सीट पर बीते चार विधानसभा चुनावों में दो बार बीजेपी और दो बार कांग्रेस का कब्जा रहा है. 2002 और 2007 में बीजेपी प्रत्याशी आशा नौटियाल यहां से विधायक चुनी गई थीं.

वहीं, साल 2012 में कांग्रेस की शैलारानी रावत यहां से विधायक बनीं. जबकि, 2017 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत ने यहां से जीत हासिल की और अपने निकटतम निर्दलीय प्रत्याशी कुलदीप सिंह रावत को 869 वोटों के मार्जिन से हराया था. 2017 के चुनाव में केदारनाथ में कुल 65.25 प्रतिशत वोट पड़े थे. वहीं, इस चुनाव में भी कांग्रेस की ओर से मनोज रावत को मैदान में उतारा गया है. जबकि, बीजेपी के टिकट इस बार शैला रानी चुनाव मैदान में है और कुलदीप सिंह रावत इस बार भी निर्दलीय ही चुनाव लड़ रहे हैं.

केदारनाथ विधानसभा बीजेपी के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भगवान केदारनाथ के धाम में जब-जब आए हैं, तब-तब उन्होंने केदारधाम से ही देश को धर्म और आस्था का महत्व बताया है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी केदारनाथ से भाषण देकर हिंदू वोटरों को साधने की कोशिश करते रहे हैं. बीजेपी लगातार ये बात कहती रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब से केंद्र में आए हैं तब से केदारनाथ के लिए हजारों करोड़ रुपए की परियोजना के साथ-साथ पुनर्निर्माण का काम तेजी से हुआ है.

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इन चुनावों में बीजेपी सरकार ने केदारनाथ पुनर्निर्माण के कामों के साथ-साथ केदारनाथ में शंकराचार्य की मूर्ति की स्थापना को भी खूब भुनाने की कोशिश की है. हालांकि, कांग्रेस लगातार बीजेपी के इस दावें पर हमला बोलती रही है. पूर्व सीएम हरीश रावत लगातार कहते रहे हैं कि उनके कार्यकाल में ही केदारनाथ पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ था. बीजेपी मात्र यहां आकर अपने नाम के काले पत्थर लगा रही है. यही कारण है कि साल 2017 में केदारनाथ विधानसभा की जनता ने बीजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार मनोज रावत को जिताया था. लेकिन इस बार टक्कर कांटे की है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ का जिक्र न केवल केदारनाथ में आकर बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी जाकर भी कर चुके हैं. इन चुनावों में केदारनाथ सीट कितनी महत्वपूर्ण है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनाव प्रचार के लिए देश के गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे तमाम बड़े नेता रुद्रप्रयाग और केदारघाटी में घूमते हुए दिखाई दिए थे.

आपको बता दें कि केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से केदारनाथ में अब तक 710 करोड़ रुपए के पुनर्निमाण कार्य पूरे हो रहे हैं. इतना ही नहीं, बीजेपी सरकार केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री तक जाने वाली ऑल वेदर रोड को भी चुनावों में खूब भुनाने का काम कर चुकी है.

बदरीनाथ मास्टर प्लान:उत्तराखंड की बदरीनाथ विधानसभा सीट का नाम भगवान बदरी के नाम पर पड़ा है. यहां भगवान बदरीनाथ का पौराणिक मंदिर है, जो चारधामों में से एक है. बदरीनाथ सीट सीमांत चमोली जिले में पड़ती है. यह इलाका भारत चीन सीमा से सटा हुआ है. उत्तराखंड बनने के पहले केदारनाथ और बदरीनाथ एक विधानसभा सीट हुआ करती थी. बदरीनाथ सीट पर बीते चार विधानसभा चुनावों में बारी बारी से कांग्रेस और बीजेपी का कब्जा रहा.

केदारनाथ विधानसभा.

बदरीनाथ में पुनर्निर्माण के कार्य के नाम पर हाल ही में केंद्र सरकार ने एक ब्लू प्रिंट तैयार किया है. ये ब्लूप्रिंट लगभग 248 करोड़ रुपए का बताया जा रहा है, जिसके तहत बदरीनाथ के आसपास के क्षेत्र को स्मार्ट बनाया जाएगा. राज्य और केंद्र के नेताओं ने इन सीटों पर आकर इन्हीं कामों को गिनवाया है.

चुनावी समीकरण: 2002 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने जीत दर्ज की थी. तो 2007 के चुनाव में बीजेपी के केदार सिंह फोनिया यहां से चुनकर विधानसभा पहुंचे. वहीं, साल 2012 में कांग्रेस की राजेंद्र सिंह भंडारी ने इस सीट पर जीत दर्ज की. जबकि, 2017 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी के महेंद्र भट्ट ने अपना परचम लहराया और कांग्रेस के राजेंद्र सिंह भंडारी को इस सीट पर शिकस्त दी. 2017 के चुनाव में बदरीनाथ में कुल 62.32 प्रतिशत वोट पड़े थे. वहीं, इस चुनाव में भी महेंद्र भट्ट और राजेंद्र भंडारी आमने-सामने हैं.

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सरकार बनाने वाली गंगोत्री सीट:गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान है और उत्तराखंड के चार धामों में एक प्रमुख तीर्थ स्थल भी है. जो उत्तरकाशी जिले के अंतर्गत आता है. राज्य गठन के बाद से ही गंगोत्री विधानसभा सीट से एक मिथक जुड़ा है. इस सीट से जिस भी दल का प्रत्याशी चुनकर आता है, राज्य में उसी दल की सरकार बनती है. यह मिथक अभी तक बरकरार है. इस सीट के इतिहास की बात करें तो साल 2002 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के विजय पाल सजवाण ने जीत हासिल की थी. वहीं, 2007 में बीजेपी के गोपाल सिंह रावत इस सीट से चुनकर विधानसभा पहुंचे थे. वहीं, 2012 के चुनाव में यहां से फिर कांग्रेस से विजयपाल सजवाण ने जीत हासिल की और गोपाल सिंह रावत को हराया.

गंगोत्री विधानसभा.

जबकि, 2017 के चुनाव में एक बार फिर बीजेपी के गोपाल सिंह रावत ने इस सीट पर परचम लहराया और विजयपाल सिंह सजवाण को शिकस्त दी. पिछले चुनाव यह मत प्रतिशत 67.53 रहा था. वहीं, गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद इस बार बीजेपी ने इस सीट से सुरेश चौहान पर दांव खेला और उनके खिलाफ कांग्रेस के फिर विजयपाल सजवाण मैदान में हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल भी इस बार गंगोत्री सीट से ही अपना भाग्य आजमा रहे हैं.

दो विधानसभा चुनावों में यमुनोत्री सीट पर रहा यूकेडी का कब्जा:यमुनोत्री को यमुना नदी का उद्गगम स्थल माना जाता है. उत्तराखंड के चारधामों में से ये एक धाम है, जो उत्तरकाशी जिले के अंतर्गत आता है. यमुनोत्री विधानसभा सीट के बात करें तो साल 2002 के चुनाव में यहां से उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल यूकेडी के प्रत्याशी प्रीतम सिंह पंवार ने जीत हासिल की थी.

वहीं, साल 2007 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी केदार सिंह रावत विधानसभा पहुंचे. वहीं, साल 2012 में इस सीट पर दोबारा यूकेडी के प्रत्याशी प्रीतम सिंह पंवार ने जीत हासिल की. साल 2017 के चुनाव में केदार सिंह रावत ने बीजेपी के टिकट से इस सीट पर जीत हासिल और कांग्रेस प्रत्याशी संजय डोभाल को हराया. पिछले चुनाव में यहां मत प्रतिशत 66.91 रहा था. वहीं, इस बार चुनाव में केदार सिंह रावत और कांग्रेस के प्रत्याशी दीपक बिजल्वाण आमने-सामने हैं.

यमुनोत्री विधानसभा.

हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा गंगोत्री और यमुनोत्री में कोई ऐसा बड़ा प्रोजेक्ट नहीं लगाया है जिसको लेकर बीजेपी ये कह सके कि केंद्र और राज्य सरकार के कामों से इन क्षेत्रों में विकास की गंगा बहा रही है. दोनों ही क्षेत्र सुविधा से महरूम हैं.

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हरिद्वार विधानसभा से 'अजेय' मदन कौशिक:उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से हरिद्वार महत्वपूर्ण स्थान रखता है. हरिद्वार हिंदुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है. हरिद्वार को 'गंगाद्वार' के नाम से भी जाना जाता है. धर्मनगरी होने के लिहाज यहां संत समाज का वर्चस्व माना जाता है और संत भी यहां की राजनीति में बढ़-चढ़कर भागेदारी निभाते हैं. धर्म नगरी हरिद्वार के नाम से पहचान रखने वाली हरिद्वार विधानसभा में भी 20 सालों से बीजेपी का ही कब्जा है. इसका मुख्य कारण है हरिद्वार में सबसे अधिक हिंदू वोटरों का होना.

हरिद्वार विधानसभा.

मदन कौशिक जो अभी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं वो लगातार साल 2002, 2007, 2012 और 2017 के चुनाव में इस सीट से अजेय रहे हैं. 2017 के चुनाव में कौशिक ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सतपाल ब्रह्मचारी को 35 हजार से अधिक के मार्जिन से हराया था और इस चुनाव में कुल मत प्रतिशत 65.18 रहा था. ऐसे में इस बार भी कौशिक हरिद्वार सीट से मैदान में हैं और उनके खिलाफ कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी ही चुनाव लड़ रहे हैं.

बीजेपी के लिए यह सीट कितनी महत्वपूर्ण है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हों या गृह मंत्री अमित शाह दोनों ने ही हरिद्वार की सड़कों पर घूम-घूमकर वोट मांगें, क्योंकि बीजेपी जानती है कि हरिद्वार विधानसभा से हिंदुत्व और धर्म का अच्छा संदेश पूरे देशभर में जा सकता है. यही कारण है कि इन चुनावों में योगी आदित्यनाथ को भी हरिद्वार लाने की पूरी कोशिश की गई लेकिन समय कम होने के चलते उन्हें नहीं लाया जा सका.

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हरिद्वार में हर 12 साल में महाकुंभ और हर 6 साल में अर्धकुंभ लगता है. इसके साथ ही आए दिन होने वाले तमाम मेलों के लिए भी राज्य सरकार और केंद्र सरकार हजारों करोड़ रुपए बीच-बीच में जारी करती रहती है. केंद्र सरकार ने इस बार भी महाकुंभ के लिए 300 करोड़ रुपए का बजट जारी किया था. जिसको बाद में कुंभ की अवधि कम होने की वजह से कम कर दिया गया था. लिहाजा हरिद्वार सीट पर भी बीजेपी अपनी पूरी नजर और ताकत बनाए रखती है.

हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि हरिद्वार के लिए केंद्र सरकार की तरफ से कई बड़े फ्लाईओवर और राष्ट्रीय राजमार्ग को बेहद शानदार बनाया गया है. इतना ही नहीं, मुरादाबाद और हरिद्वार को जोड़ने वाले चंडी घाट पुल के साथ ही एक और पुल का निर्माण करवाया जा रहा है. इसके साथ ही हरिद्वार में कई क्षेत्रों में गैस पाइपलाइन जैसी सुविधा और अंडर ग्राउंड केबल के काम को भी जनता के बीच में रखा गया है. ये वो काम हैं जो हरिद्वार में पिछले 20 सालों में दिखाई देते हैं.

योग कैपिटल में बीजेपी का दबदबा:योगा कैपिटल के रूप में देश दुनिया में ऋषिकेश शहर अपनी विशेष पहचान रखता है. धार्मिक पर्यटन के लिहाज से भी यह शहर काफी महत्वपूर्ण है. ऋषिकेश वो शहर है जहां पर गंगा का पहली बार मैदानी इलाके में प्रवेश होता है. साधु संतों की नगरी ऋषिकेश उत्तराखंड की राजनीति में बहुत महत्व रखती है. ऋषिकेश उत्तराखंड का एकमात्र ऐसा धार्मिक स्थल और विधानसभा सीट है जो तीन जिलों (हरिद्वार, पौड़ी और टिहरी गढ़वाल जिले) से लगती है. ऐसे में यहां होने वाला विकास सीधे-सीधे इन तीन जिलों को भी प्रभावित करता है.

ऋषिकेश विधानसभा.

ऋषिकेश सीट पर अपनी मजबूत दावेदारी और अपनी धमक दिखाने के लिए बीजेपी लगातार ऋषिकेश एम्स और हरिद्वार-ऋषिकेश राष्ट्रीय राजमार्ग का चौड़ीकरण जनता के बीच में रखती रही है. ऋषिकेश में एम्स स्थापित करने का श्रेय बीजेपी केंद्र की अटल बिहारी सरकार को देती रही है. पीएम मोदी अपने भाषणों में तीर्थनगरी में एक वर्ल्ड क्लास हेल्थ सेंटर बनाने की बात कहते आए हैं. यही एक वजह भी रही कि 2022 चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी खुद ऋषिकेश एम्स पहुंचे थे और यहीं से देशभर के 35 ऑक्सीजन प्लांट का शुभारंभ किया था.

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राज्य गठन के बाद पहले आम चुनाव यानि साल 2002 के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी शूरवीर सिंह सजवाण ने यहां से जीत हासिल की थी. जिसके बाद 2007, 2012 और 2017 से यहां से लगातार बीजेपी के प्रेमचंद अग्रवाल जीतते आ रहे हैं. 2017 के चुनाव में प्रेमचंद अग्रवाल ने कांग्रेस के राजपाल खरोला को करीब 14 हजार वोट के मार्जिन से हराया था. इस चुनाव को कुल मत प्रतिशत 64.70 रहा.

वहीं, हाल में ऋषिकेश के नगर निगम बनने बाद यहां मेयर के चुनाव में भी बीजेपी ने अपना परचम लहराया है. ऐसे में कहा जा सकता है कि ऋषिकेश विधानसभा में बीजेपी का ही दबदबा है. ऐसे इस बार भी प्रेमचंद अग्रवाल चुनाव मैदान में हैं और उनके खिलाफ कांग्रेस के जयेंद्र रमोला चुनाव लड़ रहे हैं.

कुल मिलाकर देखा जाए तो इन 6 प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों पर केदारनाथ को छोड़ दिया जाए तो बाकी 5 सीटों पर वर्तमान में बीजेपी का कब्जा है. खास बात यह है कि हरिद्वार, ऋषिकेश, गंगोत्री और यमुनोत्री के साथ-साथ केदारनाथ तक जाने वाली ऑल वेदर रोड पूरे गढ़वाल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इस पूरे चुनाव प्रचार में केंद्र से आए नेताओं ने ऑल वेदर रोड का जिस तरह से महिमा मंडन किया है वो किसी से छुपा नहीं है.

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हालांकि, इतने काम के बाद भी केदारनाथ न जीत पाने का मलाल बीजेपी को रहा है क्योंकि बाबा केदार का धाम हिंदुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है. इन चुनावों में बीजेपी ने इस एक सीट पर काफी मेहनत की है. वहां की जनता को रिझाने के जिम्मा खुद पीएम मोदी ने उठाया है, जिसका कितना फायदा हुआ है ये जल्द ही पता चलेगा.

Last Updated : Mar 9, 2022, 10:33 AM IST

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