देहरादून: उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन के लिहाज से देश दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. चारधाम के अलावा यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. वहीं, उत्तराखंड की राजनीति पर भी इन धार्मिक स्थानों का काफी महत्व है.
उत्तराखंड में साल 2017 चुनाव में 57 सीट पाकर बीजेपी की अगर प्रचंड जीत हुई तो उसमें इन धार्मिक स्थलों और हिंदुत्व का एजेंडा सबसे बड़ा फैक्टर रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व के नाम पर लड़े गए इस चुनाव में न केवल बीजेपी ने 2014 के आम चुनावों में केंद्र में सरकार बनाई, बल्कि अन्य राज्यों पर भी इसका असर देखा गया. फिर चाहे उत्तर प्रदेश हो, हरियाणा हो या उत्तराखंड.
उत्तराखंड में भी कई धार्मिक सीटें ऐसी हैं, जिनको बीजेपी हमेशा से अपने टारगेट पर रखती है ताकि धार्मिक दृष्टि और हिंदूवादी सोच के कारण अन्य सीटों पर भी इसका असर पड़े. बीजेपी चुनावों से पहले और सरकार बनने के बाद कुछ प्रमुख धार्मिक सीटों पर सबसे ज्यादा ध्यान देती है. ऐसे में इस रिपोर्ट में हम आपको धार्मिक दृष्टि से जुड़ी ऐसी कुछ विधानसभा सीटों को बारे में बताने जा रहे हैं, जो सरकार बनने और बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
गढ़वाल मंडल में स्थित चारधाम (केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री), ऋषिकेश और हरिद्वार विधानसभा सीटें इनमें प्रमुख हैं. 2017 के चुनावों में बीजेपी को केदारनाथ में बड़ा झटका लगा था. वहीं ऋषिकेश और हरिद्वार में बीजेपी राज्य बनने के बाद से निरंतर जीतती आ रही है.
केदारनाथ सीट पर दो-दो बार बीजेपी-कांग्रेस का रहा कब्जा:केदारनाथ धाम को 12 ज्योतिर्लिंगों में विशेष माना गया है. मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण पांडवों ने महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद कराया था. साल 2013 में आई आपदा ने केदार घाटी में भारी तबाही मचाई थी, जिसके बाद चारधाम के प्रमुख स्थल केदारनाथ धाम का पुनर्निर्माण कार्य जारी है. केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक है और वह समय-समय पर केदारनाथ धाम के दर्शनों के लिए आते रहते हैं.
चुनावी समीकरण: केदारनाथ विधानसभा सीट रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत आती है. केदारनाथ सीट पर बीते चार विधानसभा चुनावों में दो बार बीजेपी और दो बार कांग्रेस का कब्जा रहा है. 2002 और 2007 में बीजेपी प्रत्याशी आशा नौटियाल यहां से विधायक चुनी गई थीं.
वहीं, साल 2012 में कांग्रेस की शैलारानी रावत यहां से विधायक बनीं. जबकि, 2017 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत ने यहां से जीत हासिल की और अपने निकटतम निर्दलीय प्रत्याशी कुलदीप सिंह रावत को 869 वोटों के मार्जिन से हराया था. 2017 के चुनाव में केदारनाथ में कुल 65.25 प्रतिशत वोट पड़े थे. वहीं, इस चुनाव में भी कांग्रेस की ओर से मनोज रावत को मैदान में उतारा गया है. जबकि, बीजेपी के टिकट इस बार शैला रानी चुनाव मैदान में है और कुलदीप सिंह रावत इस बार भी निर्दलीय ही चुनाव लड़ रहे हैं.
केदारनाथ विधानसभा बीजेपी के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भगवान केदारनाथ के धाम में जब-जब आए हैं, तब-तब उन्होंने केदारधाम से ही देश को धर्म और आस्था का महत्व बताया है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी केदारनाथ से भाषण देकर हिंदू वोटरों को साधने की कोशिश करते रहे हैं. बीजेपी लगातार ये बात कहती रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब से केंद्र में आए हैं तब से केदारनाथ के लिए हजारों करोड़ रुपए की परियोजना के साथ-साथ पुनर्निर्माण का काम तेजी से हुआ है.
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इन चुनावों में बीजेपी सरकार ने केदारनाथ पुनर्निर्माण के कामों के साथ-साथ केदारनाथ में शंकराचार्य की मूर्ति की स्थापना को भी खूब भुनाने की कोशिश की है. हालांकि, कांग्रेस लगातार बीजेपी के इस दावें पर हमला बोलती रही है. पूर्व सीएम हरीश रावत लगातार कहते रहे हैं कि उनके कार्यकाल में ही केदारनाथ पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ था. बीजेपी मात्र यहां आकर अपने नाम के काले पत्थर लगा रही है. यही कारण है कि साल 2017 में केदारनाथ विधानसभा की जनता ने बीजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार मनोज रावत को जिताया था. लेकिन इस बार टक्कर कांटे की है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ का जिक्र न केवल केदारनाथ में आकर बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी जाकर भी कर चुके हैं. इन चुनावों में केदारनाथ सीट कितनी महत्वपूर्ण है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनाव प्रचार के लिए देश के गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे तमाम बड़े नेता रुद्रप्रयाग और केदारघाटी में घूमते हुए दिखाई दिए थे.
आपको बता दें कि केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से केदारनाथ में अब तक 710 करोड़ रुपए के पुनर्निमाण कार्य पूरे हो रहे हैं. इतना ही नहीं, बीजेपी सरकार केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री तक जाने वाली ऑल वेदर रोड को भी चुनावों में खूब भुनाने का काम कर चुकी है.
बदरीनाथ मास्टर प्लान:उत्तराखंड की बदरीनाथ विधानसभा सीट का नाम भगवान बदरी के नाम पर पड़ा है. यहां भगवान बदरीनाथ का पौराणिक मंदिर है, जो चारधामों में से एक है. बदरीनाथ सीट सीमांत चमोली जिले में पड़ती है. यह इलाका भारत चीन सीमा से सटा हुआ है. उत्तराखंड बनने के पहले केदारनाथ और बदरीनाथ एक विधानसभा सीट हुआ करती थी. बदरीनाथ सीट पर बीते चार विधानसभा चुनावों में बारी बारी से कांग्रेस और बीजेपी का कब्जा रहा.
बदरीनाथ में पुनर्निर्माण के कार्य के नाम पर हाल ही में केंद्र सरकार ने एक ब्लू प्रिंट तैयार किया है. ये ब्लूप्रिंट लगभग 248 करोड़ रुपए का बताया जा रहा है, जिसके तहत बदरीनाथ के आसपास के क्षेत्र को स्मार्ट बनाया जाएगा. राज्य और केंद्र के नेताओं ने इन सीटों पर आकर इन्हीं कामों को गिनवाया है.
चुनावी समीकरण: 2002 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने जीत दर्ज की थी. तो 2007 के चुनाव में बीजेपी के केदार सिंह फोनिया यहां से चुनकर विधानसभा पहुंचे. वहीं, साल 2012 में कांग्रेस की राजेंद्र सिंह भंडारी ने इस सीट पर जीत दर्ज की. जबकि, 2017 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी के महेंद्र भट्ट ने अपना परचम लहराया और कांग्रेस के राजेंद्र सिंह भंडारी को इस सीट पर शिकस्त दी. 2017 के चुनाव में बदरीनाथ में कुल 62.32 प्रतिशत वोट पड़े थे. वहीं, इस चुनाव में भी महेंद्र भट्ट और राजेंद्र भंडारी आमने-सामने हैं.
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सरकार बनाने वाली गंगोत्री सीट:गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान है और उत्तराखंड के चार धामों में एक प्रमुख तीर्थ स्थल भी है. जो उत्तरकाशी जिले के अंतर्गत आता है. राज्य गठन के बाद से ही गंगोत्री विधानसभा सीट से एक मिथक जुड़ा है. इस सीट से जिस भी दल का प्रत्याशी चुनकर आता है, राज्य में उसी दल की सरकार बनती है. यह मिथक अभी तक बरकरार है. इस सीट के इतिहास की बात करें तो साल 2002 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के विजय पाल सजवाण ने जीत हासिल की थी. वहीं, 2007 में बीजेपी के गोपाल सिंह रावत इस सीट से चुनकर विधानसभा पहुंचे थे. वहीं, 2012 के चुनाव में यहां से फिर कांग्रेस से विजयपाल सजवाण ने जीत हासिल की और गोपाल सिंह रावत को हराया.
जबकि, 2017 के चुनाव में एक बार फिर बीजेपी के गोपाल सिंह रावत ने इस सीट पर परचम लहराया और विजयपाल सिंह सजवाण को शिकस्त दी. पिछले चुनाव यह मत प्रतिशत 67.53 रहा था. वहीं, गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद इस बार बीजेपी ने इस सीट से सुरेश चौहान पर दांव खेला और उनके खिलाफ कांग्रेस के फिर विजयपाल सजवाण मैदान में हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल भी इस बार गंगोत्री सीट से ही अपना भाग्य आजमा रहे हैं.