देहरादूनःउत्तराखंड के जोशीमठ में यह हालात अचानक से नहीं बने हैं, बल्कि बीते 3 सालों से घरों में दरार की खबरें आ रही थी. साल 1976 में भी जोशीमठ में भू धंसाव की घटना हुई थी. जिसके बाद मिश्रा कमेटी ने इस पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी. जिसमें उन्होंने आगाह किया था कि ये पूरा जोन ही भू धंसाव की चपेट में है, लेकिन किसी ने भी इस रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया. जिस तरह से बीते 10 दिनों में इससे निपटने को लेकर सरकार और प्रशासन में हड़कंप मचा है, अगर इससे निपटने की तैयारी पहले ही कर ली जाती तो शायद इस तरह के हालात पैदा न होते. आज जोशीमठ शहर की स्थिति ये है कि 723 इमारतों में दरारें आ चुकी हैं, जिनमें से 86 घर असुरक्षित क्षेत्र में हैं. वहीं प्रशासन ने अभीतक 131 परिवार अस्थायी रूप से विस्थापित हुए हैं.
देर से जागा सिस्टमः जोशीमठ में दरार और भू धंसाव 3 साल पहले से शुरू हो गया था. उस समय रविग्राम और मारवाड़ी में कई मकानों में पड़ी रही दरारें ये संकेत दे रही थी कि जमीन के नीचे कुछ हलचल हो रही है. जो आने वाले समय में बड़ा संकट लेकर आएगा, लेकिन हर बार जिला प्रशासन और सरकार मामले में हीलाहवाली करती रही. हर बार प्रशासन से पूछे जाने पर एक ही जवाब मिलता कि जमीन की तलाश की जा रही है.
वही, बीते 10 दिनों से जिस तरह सरकार ने इस पूरे मामले पर गंभीरता दिखाई है, अगर पहले ही इस तरह की गंभीरता दिखाई गई होती तो आज ऐसी नौबत नहीं आती. आज स्थिति ये हो गई है कि लोगों को मजबूरन अपने घर छोड़ने पड़ रहे हैं. उन्हें घरों से बाहर निकाल कर स्कूल, बारात घर जैसी जगहों पर ठहराया जा रहा है. सरकार उनके विस्थापन की प्रक्रिया पहले ही पूरी कर लेती तो आज आपाधापी की स्थिति देखने को नहीं मिलती.
जानकार बोले 'हमने खुद बुलाई आपदा':जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव को लेकर जाने माने पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि यह आपदा आई नहीं है बल्कि हम लोगों ने इसे बुलाया है. उत्तराखंड के जोशीमठ ही नहीं गढ़वाल और कुमाऊं के कई शहरों में इस तरह के हालात बन रहे हैं. उनका साफ कहना है कि पहले पहाड़ों में लकड़ी या पत्थरों के घर हुआ करते थे, लेकिन आज हमने जोशीमठ में बहुमंजिला इमारत बना डाले हैं.
उनका कहना है कि हम यह भूल रहे हैं कि यह शहर कभी समुंदर हुआ करते थे. हिमालय अभी भी कम उम्र का है. ऐसे में उसी हिमालय के सीने को लगातार चीर कर कभी पावर प्रोजेक्ट तो कभी दूसरे प्रोजेक्ट के जरिए उस पर बोझ डाल रहे हैं. पहाड़ों में नेता भी सिर्फ विकास का मतलब कंक्रीट के जंगल को ही मानते हैं. जबकि, हमें यह समझना होगा कि नदी किनारे बने शहर बेहद संवेदनशील हैं.
राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि अगर ऋषिकेश से बदरीनाथ तक जाते हैं तो चारों तरफ अब मकान, होटल और बड़े-बड़े कॉम्प्लेक्स नजर आते हैं. जबकि, यह पूरा एरिया भूकंप प्रभावित जोन में आता है. इसके साथ ही जो प्लेटलेट्स हैं, वो भी लगातार खिसक रहे हैं. जिससे जमीन के अंदर हलचल पैदा हो रही है. वहीं, राजीव नयन बहुगुणा बताते हैं कि इसे एक शुरुआत मान सकते हैं. इस तरह के हालात उत्तरकाशी, नैनीताल में देख चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके सरकारें और नीति नियंता सुध नहीं ले रहे हैं.
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जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का आरोपःजोशीमठ बचाओ आंदोलन समिति के संयोजक अतुल सती साल 2004 से इस आंदोलन के साथ जुड़े हुए हैं. अतुल सती भी मानते हैं कि जोशीमठ में जो कुछ भी हो रहा है, अगर उसे पहले ही देखा जाता तो हालात इतने खराब नहीं होते. अतुल सती का साफ कहना है कि अभी तो यह शुरुआत है. जोशीमठ और उसके आसपास के इलाके में बहुत बड़ी आपदा या संकट आने वाले समय में आ सकता है.
बता दें कि समाजसेवी अतुल सती समेत 500 से ज्यादा लोग 14 महीने से जोशीमठ की इस स्थिति को सरकार तक पहुंचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. अतुल सती कहते हैं कि जब उन्होंने आंदोलन शुरू किया था, तब उन्होंने सरकार से पूरे इलाके की सर्वे करने की मांग की थी, लेकिन सरकार देर से जागी और रिपोर्ट तैयार की. जिसमें सारा दोष जोशीमठ के लोगों पर ही थोप दिया गया था.