ऋषिकेशःपूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सपरिवार परमार्थ निकेतन पहुंचकर गंगा आरती में लिया हिस्सा. उन्होंने ओडिशा के बालासोर ट्रेन हादसे पर गहरा दुख जताया. साथ ही प्रभावित परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए दो मिनट का मौन रखा और उन्हें श्रद्धांजलि दी. पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने मां गंगा से घायलों के जल्द स्वास्थ्य लाभ की कामना की.
दरअसल,ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन पहुंचकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने स्वामी चिदानंद सरस्वती समेत अन्य लोगों के साथ गंगा आरती की. परमार्थ निकेतन प्रमुख स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि ओडिशा ट्रेन हादसा हमें बताता है कि जीवन का कोई भरोसा नहीं है. इसलिए जब भी किसी से मिलें, दिल खोल कर मिलें. जो इस हादसे से प्रभावित हुए हैं, उनके लिए मां गंगा से प्रार्थना की गई है. उन्होंने कहा कि यह गंगा आरती हादसे के पीड़ितों को समर्पित की गई.
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स्विट्जरलैंड के साथ स्पिरिचुअल लैंड है उत्तराखंडःस्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि पूरे विश्व में उत्तराखंड की धरती एक ऐसी धरती है, जहां पर हिमालय के साथ गंगा भी है. वास्तव में यह धरती स्विट्जरलैंड भी है और स्पिरिचुअल लैंड भी है. इस धरती पर जीवन का संगम भी होता है. यहां पर भीतर के साथ बाहर का पर्यावरण भी शुद्ध होता है. यह धरती भीतर के सौंदर्य का दर्शन भी कराती है. उन्होंने कहा कि हमारे ऋषि मुनियों ने हमें विचारों की वैक्सीन प्रदान की. साथ ही अपने घर और जीवन को मंदिर बनाने का संदेश दिया.
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कही ये बातः वहीं, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि मां गंगा के पावन तट पर गंगा आरती की परंपरा को 25 साल पूरे हो गए हैं. इस निरंतरता को जारी रखने का श्रेय स्वामी चिदानंद सरस्वती को जाता है. देश विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं, यह इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है. मां गंगा के बिना भारत का अस्तित्व नहीं है. ऐसे में भारत और गंगा एक दूसरे के पूरक हैं. उन्होंने कहा कि वे गंगोत्री तक गए हैं. उन्होंने मां गंगा के उद्गम को देखा है.
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पर्यावरण और जल संरक्षण का संकल्पःउन्होंने कहा कि गंगा का स्वरूप वात्सल्य से युक्त है. करोड़ों भारतीयों की आजीविका मां गंगा से जुड़ी हुई है. मां गंगा की विशेषता उनकी निरंतरता और अविरलता है. गंगा में सब नदियां मिलती चली गई, लेकिन गंगा ने अपना चरित्र नहीं बदला. वही भाव और गुण भारत को भी अपनाना होगा. हमें प्रकृति और गंगा से निरंतरता का मंत्र स्वीकारना होगा. वहीं, इस दौरान पर्यावरण और जल संरक्षण का संकल्प भी लिया गया.