देहरादूनःकहते हैं कि 'गुरु बिन जीवन का सार पूरा नहीं होता'. ऐसे ही कुछ शिक्षकों से आज आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, जिन्होंने शिक्षण के साथ समाज में अहम योगदान के लिए अलग ही छाप छोड़ी. उनका गांव और क्षेत्र से ऐसा नाता बन गया, जिससे दूर होना मुश्किल हो गया. खासकर जब उनकी विदाई हुई तो मानों छात्रों और ग्रामीणों को लगा जैसे कोई अपना दूर जा रहा हो. यही वजह है कि जब उनकी विदाई हुई तो न केवल छात्र बल्कि, पूरा गांव रो पड़ा. जिसकी तस्वीरों ने हर किसी को इमोशनल कर दिया.
उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है. कई गांव ऐसे हैं, जो दुर्गम और सुदूर क्षेत्र में स्थित हैं. ऐसे में ज्यादातर शिक्षक इन इलाकों में ड्यूटी देने से कतराते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी शिक्षक हैं, जिन्होंने पहाड़ों के दूरस्थ गांवों को अपनी कर्मभूमि माना और बच्चों को पढ़ा कर उन्हें आगे की राह दिखाई. इस दौरान उनका ग्रामीणों के साथ अलग ही नाता जुड़ा. ऐसे में जब उनका ट्रांसफर या रिटायरमेंट हुआ तो पूरा गांव मायूस हो गया.
ये भी पढ़ेंःस्कूल को संवारने में लगे शिक्षक आशीष डंगवाल, दीवारों पर उकेरी खूबसूरत आकृतियां
शिक्षक आशीष डंगवाल के तबादले पर रो पड़ा पूरा गांवःसाल 2019 में एक शिक्षक की विदाई की तस्वीर वायरल हुई. जिसे देख हर कोई अपने आंसू रोक नहीं पाया. यह तस्वीर थी, उत्तरकाशी जिले के केलसु घाटी के राजकीय इंटर कॉलेज भंकोली की. जहां शिक्षक आशीष डंगवाल बतौर सहायक अध्यापक पढ़ा रहे थे. इसी बीच वो प्रवक्ता बन गए और उन्हें गांव छोड़ना पड़ा. जैसे ही आशीष डंगवाल की ट्रांसफर की खबर उनके छात्रों और ग्रामीणों को लगी तो सभी मायूस हो गए. ग्रामीणों ने उनका विदाई समारोह आयोजित किया और उनसे लिपट कर रो पड़े.
आशीष डंगवाल के बारे में कहा जाता है कि उनका पढ़ने का अंदाज बच्चों को काफी भाता था. उनका पढ़ाने का तरीका भी रोचकता से भरा होता था. यही वजह थी कि बच्चों की पढ़ाई में रूचि और ललक बढ़ जाती थी. आशीष डंगवाल ने भंकोली गांव में ही एक कमरा किराए पर लिया था. आशीष काफी मिलनसार और व्यवहारिक होने की वजह से ग्रामीण काफी पसंद करते थे. इतना ही नहीं वो गांव के हर सुख दुख में शामिल होते थे. यही वजह थी कि ग्रामीण आशीष को बेटा मानते थे. उनके गांव छोड़ जाने की बात सुनते ही ग्रामीण दुखी हो गए.
ये भी पढ़ेंःउत्तराखंड में जब शिक्षक के तबादले पर रो पड़ा पूरा गांव, आशीष डंगवाल से लिपटकर रोयीं महिलाएं
इतना ही नहीं, ग्रामीणों को जब पता चला कि अगले दिन उन्हें जाना है तो छात्र और ग्रामीण पूरी रात सोए नहीं. सुबह उठते ही आशीष डंगवाल के कमर से बाहर जमा होने लगे. ग्रामीणों ने आशीष डंगवाल की विदाई समारोह का आयोजन किया. इस दौरान ढोल नगाड़ों और फूल मालाओं के साथ उन्हें सड़क तक विदा किया. आशीष कहते हैं कि आज भी जब उन्हें मौका मिलता है तो वो भंकोली गांव पहुंच जाते हैं. वो बेहद भाग्यशाली हैं कि उन्हें उत्तरकाशी के लोगों से काफी प्यार मिला. उनका कहना है कि वो पहाड़ों में ही पले बढ़े हैं और पहाड़ों पर ही सेवा करना चाहते हैं.
शिक्षक दिनेश सिंह रावतके तबादले पर बच्चे रोते हुए बोले थे, 'हमें छोड़कर मत जाओ सर':गुरु, शिष्य और अभिभावकों के बीच वात्सल्य प्रेम का नजारा साल 2020 में धारचूला में देखने को मिला था. जहां राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेतली में तैनात शिक्षक दिनेश सिंह रावत के ट्रांसफर की खबर पर पूरा गांव रो पड़ा. दरअसल, उत्तरकाशी के रहने वाले दिनेश सिंह रावत ने दूरस्थ क्षेत्र में तैनाती के दौरान दुर्गम इलाकों के बच्चों के लिए शिक्षा की राह सुगम बनाने के लिए कई प्रयोग किए. जिसके चलते दिनेश रावत की पहचान पूरे जिले के लोकप्रिय शिक्षकों में होने लगी.
ये भी पढ़ेंःशिक्षक के तबादले पर रो पड़ा पूरा गांव, बच्चे बोले- हमें छोड़कर मत जाओ सर
दिनेश सिंह रावत स्कूली बच्चों के लिए लेखन कार्यशालाओं का आयोजन, अतिरिक्त कक्षाओं का संचालन करते थे. इतना ही नहीं मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर होने के बाद भी स्कूल के वार्षिक पत्रिका का प्रकाशन एवं वितरण करवाया. उन्होंने खुद के प्रयासों से स्कूल में 'आओ संवारे खुद को' कॉर्नर की स्थापना भी की थी. जिसमें बच्चों के लिए नेल कटर, तौलिया, साबुन और तेल कंघी की व्यवस्था की थी. जब उनका ट्रांसफर दूसरी जगह हुआ तो बच्चे समेत पूरा गांव उदास हो गया था.