देहरादून:यूं तो देवभूमि उत्तराखंड अपनी खूबसूरत वादियों और धामों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, लेकिन देश की आजादी के 7 दशक बीतने के बाद भी राज्य जातिवाद का दंश झेल रहा है जबकि यहां कुल आबादी की 18 फीसदी जनसंख्या दलित है. वहीं राजनीतिक दल लगातार जातिवाद को खत्म करने की बात कहते आए हैं.
उत्तराखंड एक छोटा राज्य है, बावजूद इसके यहां कुछ क्षेत्रों से दलित उत्पीड़न के मामले सामने आते रहते हैं. शिलगुर मंदिर देहरादून से करीब 150 किलोमीटर दूर जौनसार बावर इलाके की चकराता तहसील में है. यहां करीब 340 मंदिर हैं, जिनमें ज्यादातर में दलितों के प्रवेश पर रोक है. जबकि, राज्य की कुल आबादी का 18 प्रतिशत दलित है. वहीं, कुछ महीने पहले एक विवाद को लेकर ऊंची जाति के कुछ लोगों ने एक दलित को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया था. ऐसे में एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि आखिर कब तक देवभूमि को जातिवाद का दंश झेलना पड़ेगा.
कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि आजादी के 72 वर्षों के बाद उत्तराखंड में जातिवाद बहुत कम है. अगर देश के अन्य राज्यों के अनुपात में देखें तो राज्य में जाति के नाम पर भेदभाव, हिंसा, उत्पीड़न, क्राइम आदि कम है. आज जिन लोगों के पास सत्ता आ गयी है. वो इस जातिवाद को खाद पानी देने का काम कर रहे हैं.