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विस चुनाव से पहले दिग्गज बागी नेताओं के बदले सुर, जानें क्या हैं राजनीतिक मायने - Harak Singh Rawat apology before the assembly elections

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले दिग्गज बागी नेताओं के सुर बदले-बदले नजर आ रहे हैं. इस कारण राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर से दल-बदल की सुगबुगाहट तेज हो गई है. हरक सिंह रावत के हरीश रावत से हाथ जोड़कर माफी मांगने को इसी के तहत देखा जा रहा है.

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विस. चुनाव से पहले दिग्गज नेताओं के बदले सुर

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Published : Oct 23, 2021, 5:45 PM IST

Updated : Oct 23, 2021, 9:02 PM IST

देहरादून:उत्तराखंड में साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक समीकरणों में कई बदलाव देखे जा रहे हैं. उत्तराखंड के कई वरिष्ठ नेताओं के सुर इन दिनों बदले-बदले से नजर आ रहे हैं. जिसके चलते राजनीतिक गलियारों में हलचल शुरू हो गई है. दरअसल, इन दिनों प्रदेश के तीन वरिष्ठ नेता चर्चाओं में हैं. जिसमें, कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और विधायक उमेश शर्मा काऊ शामिल हैं. पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य की घर वापसी के बाद से ही इन तीनों नेताओं के सुर बदले से नजर आ रहे हैं. आखिर इसके पीछे की क्या वजह है आइये आपको बताते हैं.

दरअसल, चुनाव से पहले अक्सर दल-बदल देखा जाता है. उत्तराखंड में भी पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य की घर वापसी के बाद से ही राजनीतिक गलियारों में दल-बदल की चर्चाओं का बाजार गर्म है. वहीं, बीते दिन कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के माफी मांगने के बाद ये चर्चाएं और ज्यादा बढ़ गई हैं. हरक सिंह रावत के बदले सुर जहां बीजेपी की परेशानियां बढ़ा रहे हैं, वहीं, कांग्रेस के लिए ये इस मुश्किल वक्त में राहत की बात है.

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हरक सिंह की माफी के बाद एक बार फिर से उनके कांग्रेस में जाने की खबरें आम हो गई हैं. इसके साथ ही बीजेपी में उनके बगावती तेवरों को भी हवा दी जा रही है. वहीं, शुरू से ही खफा रहने वाले सतपाल महाराज भी लंबे समय से कांग्रेस के लिए सॉफ्ट नजर आ रहे हैं. यही नहीं, विधायक उमेश शर्मा काऊ की बयानबाजी से तो हर कोई वाकिफ है.

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ऐसे में इन तीनों नेताओं के कांग्रेस के प्रति बदले सुर की वजह से चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है. चुनाव से महज कुछ महीने पहले ही नेताओं का सुर बदलना कई सारे सवाल खड़े करता है. जिसमें मुख्य रूप से यशपाल आर्य के जाने के बाद से ही चर्चाएं चल रही थी कि तमाम कांग्रेस गोत्र के नेता घर वापसी कर सकते हैं. ऐसे में नेताओं के सुर बदलने पर इन चर्चाओं को और ज्यादा बल मिल रहा है. अगर चुनाव से पहले ऐसा होता है तो भाजपा संगठन के लिए यह एक और बड़ा झटका होगा.

विस चुनाव से पहले दिग्गज बागी नेताओं के बदले सुर

क्यों नाराज हैं हरक और सतपाल:सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत वरिष्ठता के आधार पर पहले दिन से ही खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शुमार कर रहे थे. साल 2017 में इन्हें मौका नहीं मिला. बीजेपी ने अपने पुराने नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत को सत्ता की कमान सौंपी. चुनाव से ठीक पहले उन्हें हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया गया. इसके 3 महीने के बाद जुलाई में बीजेपी ने युवा चेहरे के तौर पर पुष्कर सिंह धामी को सरकार की कमान सौंपी. जिससे इन दोनों नेताओं की नाराजगी और बढ़ी.

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अवसरवादी नेताओं में शुमार हैं कांग्रेसी गोत्र के नेता: राजनीतिक जानकार नरेंद्र शेट्टी बताते हैं कि भाजपा में जो भी कांग्रेसी गोत्र के नेता हैं उनका मन कभी भी भाजपा संगठन के लिए नहीं रहा. वह भौतिक रूप से भाजपा में जरूर हैं लेकिन मन से वह हमेशा कांग्रेस के ही रहे हैं. यही वजह है कि ये तमाम नेता वर्तमान समय में दल-बदल के द्वार पर खड़े हैं. शेट्टी ने कहा कि ये सारे नेता अवसरवादी हैं. जिसे दोनों ही पार्टियां टॉलरेट कर रही हैं.

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अनुशासन की घुट्टी के चलते बयानबाजी करने से बच रहे नेता:वहीं, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स ने बताया कि कोई भी बागी, बागी नेता नहीं है. क्योंकि जिसने भी भाजपा के सिंबल से चुनाव लड़ा और भाजपा में शामिल हुआ उसे भाजपा अनुशासन की घुट्टी पिला देती है. इस बात पर जोर दिया जाता है कि भाजपा एक अनुशासित पार्टी है. ऐसे में बेफिजूल की बयानबाजी से बचना चाहिए. यही वजह है कि हरक सिंह रावत समेत अन्य नेता बेफिजूल की बयानबाजी करने से बच रहे हैं.

ऐसे में मतभेद हो सकते हैं लेकिन नेताओं में मन भेद नहीं है. यही नहीं, शादाब ने हरक की माफी पर यह तक कह दिया कि अगर किसी को माफी मांगनी है तो वह प्रदेश की जनता से माफी मांगे, जिसका आपने भरोसा तोड़ा है.

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संभावनाओं का खेल है राजनीति, व्यक्तिगत बयानबाजी से बचने की जरूरत:वहीं, कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री मथुरा दत्त जोशी ने कहा कि कांग्रेस के संपर्क में अभी फिलहाल कोई नेता नहीं हैं. इन नेताओं के सुर क्यों बदले हैं यह उन्हें ही पता होगा, लेकिन राजनीति संभावनाओं का खेल होती है. कब कौन कहां जाए यह कहना बहुत मुश्किल है. ऐसे में नेताओं को चाहिए कि व्यक्तिगत बयानबाजी से बचें. राजनीति में शिष्टाचार की एक सीमा होती है. जिसे नहीं लांघना चाहिए. साथ ही मथुरा दत्त जोशी ने कहा कि वह कांग्रेस में शामिल होते हैं या नहीं यह भविष्य के गर्भ में है, फिलहाल इतना जरूर है कि उन्हें अपने शिष्टाचार को नहीं भूलना चाहिए.

Last Updated : Oct 23, 2021, 9:02 PM IST

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