देहरादून: मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत (CM tirath singh rawat) के दिल्ली दौर पर जाते ही उत्तराखंड में सियासी अटकलों का बाजार गर्म हो गया है. उत्तराखंड में एक बार फिर से राजनीतिक संकट दिखाई देने लगा है. बीजेपी मुख्यमंत्री तीरथ के दिल्ली दौरे को जहां आगामी विधानसभा चुनाव (uttarakhand assembly elections 2022) की रणनीति बता रही है, तो वहीं जानकार प्रदेश में सत्ता परिवर्तन (political crisis in uttarakhand) के तौर भी इसे देख रहे हैं.
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदले जाने का पुराना इतिहास रहा है. प्रदेश में भाजपा की अंतरिम सरकार में ही सीएम की कुर्सी को लेकर खींचतान शुरू हो गई थी. नतीजा यह रहा कि 2000 से 2002 के बीच करीब 2 सालों में भाजपा ने पहले नित्यानंद स्वामी और फिर भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया. इसके बाद 2002 में उत्तराखंड विधानसभा (uttarakhand assembly elections) के पहले चुनाव हुए. इस चुनाव में कांग्रेस ने बाजी मारी और एनडी तिवारी मुख्यमंत्री बनाए गए.
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2002 से 2007 तक कांग्रेस ने किया अच्छा उदाहरण पेश
यहां कांग्रेस ने एक अच्छा उदाहरण पेश किया और पूरे पांच साल (2002 से 2007 तक) एनडी तिवारी (ND tiwari) मुख्यमंत्री रहे. साल 2002 से 2007 यानी एनडी तिवारी के कार्यकाल को अगर छोड़ दें तो इसके बाद प्रदेश में किसी भी मुख्यमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया. साल 2007 के बाद प्रदेश में चाहे बीजेपी की सरकार रही हो या फिर कांग्रेस की, दोनों ही पार्टियों में सत्ता को लेकर खींचतान रही है. मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में लगे नेताओं ने दिल्ली तक खूब कोहराम मचाया. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही किसी मुख्यमंत्री को पांच साल टिकने नहीं दिया.
2007 से 2012 के बीच तीन बार मुख्यमंत्री बदले
2007 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई और बीसी खंडूरी प्रदेश को चौथे मुख्यमंत्री बने. लेकिन मुख्यमंत्री रहते हुए बीसी खंडूरी भी अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और दो साल बाद 23 जून 2009 को उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा. इसके बाद बीजेपी ने वर्तमान केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को 2009 में प्रदेश का पांचवां मुख्यमंत्री बनाया था. लेकिन उनके ऊपर कुंभ घोटाले का आरोप लगा. इसके बाद बीजेपी ने उन्हें भी हटा दिया.
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इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एक बार फिर बीजेपी ने बीसी खंडूरी को प्रदेश का छठवां मुख्यमंत्री बनाया और उनके नेतृत्व में 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ा. इस चुनाव में बीसी खंडूड़ी खुद कोटद्वार से चुनाव हार गए थे. प्रदेश में सत्ता परिवर्तन को लेकर जनता के सामने यह सबसे खराब उदाहरण रहा. बीजेपी ने पांच साल के कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्री बनाए.
कांग्रेस ने भी दो सीएम बदले
इसके बाद 2012 के चुनाव हुए और कांग्रेस सत्ता में आई. कांग्रेस ने तब टिहरी से लोकसभा सांसद विजय बहुगुणा को सीएम की कुर्सी पर बैठाया. विजय बहुगुणा प्रदेश के सातवें मुख्यमंत्री बने थे. इसके बाद लोकसभा सीट से इस्तीफा देकर बहुगुणा ने उधमसिंह नगर जिले की सितारगंज सीट से चुनाव लड़ा था.