चंपावत: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चंपावत दौरे (CM Pushkar Singh Dhami on Champawat tour) पर हैं. सबसे पहले सीएम धामी ने आज खटीमा में हर घर तिरंगा यात्रा (Har Ghar tiranga Yatra) में शिरकत की. जिसके बाद सीएम धामी मां वाराही के धाम देवीधुरा पहुंचे (CM Pushkar singh Dhami reached Varahi Dham Devidhura). सीएम देवीधुरा के खोलीखांड दुबाचौड़ में मनाई जाने वाली बग्वाल में शामिल हुए. बता दें देवीधुरा में फल और फूलों से बग्वाल मनाई जाती है. इसमें चारखाम (चम्याल, गहड़वाल, लमगड़िया, वालिग) और सात थोक के योद्धा शिरकत करते हैं.
सीएम पुष्कर सिंह धामी बग्वाल में शामिल हुए (CM Pushkar Singh dhami joined Bagwal). बग्वाल शुभ मुहूर्त अनुसार दोपहर एक बजे शुरू हुई. गहड़वाल खाम के योद्धाओं (Warriors of Gahadwal Kham) ने केसरिया, चम्याल खाम के योद्धाओं ने गुलाबी, वालिग खाम के सफेद और लमगड़िया खाम के योद्धाओं ने पीले रंग के साफे पहनकर बग्वाल में शिरकत की.
बग्वाल मेले में पहुंचे सीएम धामी वहीं, इससे पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत में भारतीय सेना में अपनी ड्यूटी के दौरान दिवंगत हुए विनीत चौड़ाकोटी के घर ग्राम ढकना बडोला पहुंचकर शोक संवेदना व्यक्त की. इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शोक संतप्त परिजनों से भेंट कर हर संभव मदद का आश्वाशन दिया.
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जिसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने लोहाघाट विधानसभा के पूर्व विधायक श्री पूरन सिंह फर्त्याल की माता जी के निधन पर गहरा दु:ख व्यक्त किया है. मुख्यमंत्री ने पूर्व विधायक श्री फर्त्याल के ग्राम विंशुग लोहाघाट स्थित आवास पर जाकर उनके परिजनों से भेंट कर शोक संवेदना व्यक्त की.
देवीधुरा बग्वाल का इतिहास:टनकपुर से 132 किमी दूर चंपावत जिले के पाटी ब्लॉक के देवीधुरा में मां बाराही देवी का धाम स्थित है. यहां खोलीखाण दुबाचौड़ में हर साल आषाड़ी कौतिक (रक्षाबंधन) के दिन बग्वाल होती है. पत्थरों से होने वाली यह बग्वाल अब बीते कुछ सालों से फल-फूलों से खेली जाती है. लाखों लोगों की मौजूदगी में होने वाली बग्वाल में चार खामों (चम्याल, गहरवाल, लमगड़िया और वालिग) के अलावा सात थोकों के योद्धा फर्रों के साथ हिस्सा लेते हैं.
माना जाता है कि देवीधुरा में बग्वाल का यह खेल पौराणिक काल से खेला जा रहा है. कुछ लोग इसे कत्यूर शासन से चला आ रहा पारंपरिक त्योहार मानते हैं, जबकि कुछ अन्य इसे काली कुमाऊं से जोड़ कर देखते हैं. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पौराणिक काल में चार खामों के लोगों में अपनी आराध्या बाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देने की प्रथा थी. मां बाराही को प्रसन्न करने के लिए चारों खामों के लोगों में से हर साल एक नर बलि दी जाती थी.
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बताया जाता है कि एक साल चम्याल खाम की एक वृद्धा परिवार की नर बलि की बारी थी. परिवार में वृद्धा और उसका पौत्र ही जीवित थे. महिला ने अपने पौत्र की रक्षा के लिए मां बाराही की स्तुति की. मां बाराही ने वृद्धा को दर्शन दिए. कहा जाता है कि देवी ने वृद्धा को मंदिर परिसर में चार खामों के बीच बग्वाल खेलने के निर्देश दिए, तब से बग्वाल की प्रथा शुरू हुई.
बग्वाल बाराही मंदिर (Bagwal Barahi Temple) के प्रांगण खोलीखाण में खेली जाती है. इसे चारों खामों के युवक और बुजुर्ग मिलकर खेलते हैं. लमगड़िया व बालिग खामों के रणबांकुरे एक तरफ जबकि, दूसरी ओर गहड़वाल और चम्याल खाम के रणबांकुरे डटे रहते हैं. रक्षाबंधन के दिन सुबह रणबांकुरे सबसे पहले सज-धजकर मंदिर परिसर में आते हैं. देवी की आराधना के साथ अद्भुत खेल बग्वाल शुरू हो जाता है.
बाराही मंदिर में एक ओर मां की आराधना होती है. दूसरी ओर रणबांकुरे बग्वाल खेलते हैं. दोनों ओर से रणबांकुरे पूरी ताकत और असीमित संख्या में पत्थर तब तक चलाते थे, जब तक एक आदमी के बराबर खून न गिर जाए. कहा जाता है कि पुजारी जब तक बग्वाल को रोकने का आदेश नहीं देते, तब तक खेल जारी रहता है. अब पत्थरों से बग्वाल खेलने की परंपरा खत्म हो चुकी है. अब फल और फूलों से बग्वाल खेली जाती है.