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तिब्बत-कश्मीर की तरह उत्तराखंड में भी दिखने लगे याक, जानें- पहाड़ों तक कैसे पहुंचे - Yak turn to populated areas Chamoli

चमोली में याकों के संरक्षण के लिए पशुपालन विभाग लाता गांव में बाड़ा तैयार कर रहा है. इसमें याकों के लिए शेल्टर के निर्माण के साथ-साथ एक चौकीदार आवास भी बनाया जा रहा है.

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चमोली

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Published : Dec 7, 2020, 2:21 PM IST

Updated : Dec 7, 2020, 4:33 PM IST

चमोली: जोशीमठ विकासखंड स्थित उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी होने के बाद नीती घाटी के जंगलों में रहने वाले याकों का झुंड अब आबादी वाले इलाकों की ओर रुख करने लगा है. घाटी के लाता गांव के आसपास इन दिनों याकों को विचरण करते हुए देखा जा सकता है. अभी घाटी में कुल 9 याक मौजूद हैं. पशुपालन विभाग ने बॉर्डर एरिया डेवलमेंट फंड से याकों के संरक्षण के लिए कार्ययोजना शुरू कर दी है.

भारत-चीन युद्ध के दौरान छूट गए थे तिब्बत के याक

बता दें कि, 1962 से पहले चमोली के नीती दर्रे से होते हुए तिब्बत के रास्ते भारत-चीन का व्यापार संचालित होता था. तिब्बत से व्यापारी याकों पर सामान लादकर भारत लाते थे. लेकिन, 1962 में भारत और चीन के युद्ध के दौरान दर्रे को पूरी तरह आवाजाही के लिए बंद कर दिया गया. उसी दौरान तिब्बती व्यापारियों के याक नीती घाटी के जंगलों में छूट गए. उस समय याकों की संख्या बहुत अधिक थी. लेकिन संरक्षण के अभाव में हिमस्खलन और भूख से कई याकों की मौत हो गई.

बेहद कम संख्या में बचे हैं याक.

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चमोली के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. शरद भंडारी बताते हैं कि पशुपालन विभाग की गणना के अनुसार कुछ सालों पहले इस क्षेत्र में याकों की संख्या 15 के करीब थी. लेकिन, क्षेत्र में अधिक बर्फबारी के कारण हिमस्खलन की चपेट में आने से 6 याकों की मौत हो गई. अब घाटी में महज 9 याक ही जीवित बचे हुए हैं, जिनके संरक्षण के लिए पशुपालन विभाग लाता गांव में बाड़ा तैयार कर रहा है. इसमें याकों के लिए शेल्टर के निर्माण के साथ-साथ एक चौकीदार का आवास भी बनाया जा रहा है. याकों को पालतू बनाकर काश्तकारों को वितरित किया जाएगा.

आबादी वाले इलाकों की ओर रुख कर रहे हैं याक.

क्या है याक ?

चमरी गाय या याक एक पशु है जो तिब्बत के ठंडे तथा वीरान पठार, नेपाल और भारत के उत्तरी क्षेत्रों में पाया जाता है. यह काला, भूरा, सफेद या धब्बेदार रंग का होता है. इसका शरीर घने, लम्बे और खुरदरे बालों से ढका हुआ होता है. इसे कुछ लोग तिब्बत का बैल भी कहते हैं. इसे 'चमरी' या 'चंवरी' या 'सुरागाय' भी कहते हैं. इसका वैज्ञानिक नाम बोस ग्रनियंस है.

घाटी में कुल 9 याक मौजूद.

क्या काम आता है याक ?

याक तिब्बत के निवासियों के लिये बहुत ही उपयोगी जीव है. वहां के लोग इसका दूध और मांस खाते हैं. इस पर सवारी भी करते हैं. याक का सामान ढोने में भी उपयोग करते हैं.

उच्च हिमालयी क्षेत्रों से निचले इलाकों में आए याक.

जन्म के 10 मिनट में चलने लगता है याक का बच्चा !

मादा याक 257 से 270 दिनों पर एक बच्चे को जन्म देती है. मादा बच्चे को जन्म देने के लिए सुनसान जगह ढूंढती है. सबसे आश्चर्य की बात ये है कि बछड़ा जन्म के दस मिनट के भीतर ही चलने में सक्षम हो जाता है. दोनों जल्द ही झुंड में शामिल हो जाते हैं.

Last Updated : Dec 7, 2020, 4:33 PM IST

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