चमोली: जोशीमठ विकासखंड स्थित उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी होने के बाद नीती घाटी के जंगलों में रहने वाले याकों का झुंड अब आबादी वाले इलाकों की ओर रुख करने लगा है. घाटी के लाता गांव के आसपास इन दिनों याकों को विचरण करते हुए देखा जा सकता है. अभी घाटी में कुल 9 याक मौजूद हैं. पशुपालन विभाग ने बॉर्डर एरिया डेवलमेंट फंड से याकों के संरक्षण के लिए कार्ययोजना शुरू कर दी है.
भारत-चीन युद्ध के दौरान छूट गए थे तिब्बत के याक
बता दें कि, 1962 से पहले चमोली के नीती दर्रे से होते हुए तिब्बत के रास्ते भारत-चीन का व्यापार संचालित होता था. तिब्बत से व्यापारी याकों पर सामान लादकर भारत लाते थे. लेकिन, 1962 में भारत और चीन के युद्ध के दौरान दर्रे को पूरी तरह आवाजाही के लिए बंद कर दिया गया. उसी दौरान तिब्बती व्यापारियों के याक नीती घाटी के जंगलों में छूट गए. उस समय याकों की संख्या बहुत अधिक थी. लेकिन संरक्षण के अभाव में हिमस्खलन और भूख से कई याकों की मौत हो गई.
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चमोली के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. शरद भंडारी बताते हैं कि पशुपालन विभाग की गणना के अनुसार कुछ सालों पहले इस क्षेत्र में याकों की संख्या 15 के करीब थी. लेकिन, क्षेत्र में अधिक बर्फबारी के कारण हिमस्खलन की चपेट में आने से 6 याकों की मौत हो गई. अब घाटी में महज 9 याक ही जीवित बचे हुए हैं, जिनके संरक्षण के लिए पशुपालन विभाग लाता गांव में बाड़ा तैयार कर रहा है. इसमें याकों के लिए शेल्टर के निर्माण के साथ-साथ एक चौकीदार का आवास भी बनाया जा रहा है. याकों को पालतू बनाकर काश्तकारों को वितरित किया जाएगा.