थरालीःकल्पना कीजिए जब अतीत में बिजली नहीं होती होगी तो अनाज की पिसाई कैसे होती होगी. चक्की और कल कारखाने आधुनिकता की देन हैं. लेकिन इसी के इतर देवभूमि में हर गांव में ऐसी सुविधा विकसति थी जिसे देखकर आप भी दंग रह जाएंगे. जो आज के बिजली के चक्की की तरह कार्य करती थी, लेकिन ये बिजली ने चलकर पानी से चलती थी. जिसका पिसा अनाज काफी पौष्टिक माना जाता था. बदलते परिवेश में आधुनिकता की चकाचौंध इसे लील रही है.
सरकार देवभूमि की पारंपरिक और पुरातन धरोहरों को संजोए रखने का लाख दावा करती हो, लेकिन सत्ता पर काबिज होती ही सारे वादे और दावे हवा हो जाते हैं. जिससे देवभूमि की शान समझे जाने वाली ऐतिहासिक विरासत विलुप्ति की कगार पर आ रहे हैं. इन्हीं में से एक घराट भी है, जिसके बारे में हर कोई रूबरू हैं. इसके फायदे भी जानता हैं.
भले ही हमारे देश में आज सभी क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हों, लेकिन अभी भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां आज भी पुरानी परिपाटी देखी जा सकती है. अभी भी लोग पुरानी सभ्यता को सहेज कर रखे हैं. इसकी बानगी चमोली जिले के थराली में देखने को मिली. 21वीं सदी के इस दौर में भी सीमांत जनपद चमोली के विकासखंड देवाल के दूरस्थ क्षेत्र खेता मानमती में आज भी घराट (पनचक्की) अपने अस्तित्व में है.
यहां के लोग आज भी घराट में अपना गेहूं ,मंडुवा, जौ आदि की पिसाई करवाते हैं. घराट का आटा पौष्टिक माना जाता है. देवभूमि की संस्कृति की एक पारंपरिक और पुरातन पहचान घराट खेता गांव में देखने को मिली. पानी का तीव्र वेग घराट की चक्की को घुमाने वाले पंखे (फितौड़) के ऊपर गिरता है, जिससे घराट का पत्थर घूमता है. पनचक्की में अनाज डालने के लिए लकड़ी या धातु के बने ओखलीनुमा वस्तु में डाला जाता है और पानी के दबाब से घराट का पत्थर घूमता है और अनाज की पिसाई होने लगती है.