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खुल गए फ्यूंला नारायण के कपाट, यहां महिला पुजारी भी कराती हैं अनुष्ठान - Uttarakhand temple news

उत्तराखंड को अगर देवभूमि कहा जाता है तो इसके कई कारण भी हैं. यहां पुरुष और महिला पुजारियों में भेद नहीं किया जाता. चमोली जिले के जोशीमठ में उर्गम घाटी स्थित फ्यूंला नारायण का मंदिर अपनी इसी विशेषता के लिये जाना जाता है. प्रकृति की गोद में बसे इस मंदिर के कपाट खुल गए हैं. यहां पुरुष के साथ ही महिला पुजारी भी अनुष्ठान कराती हैं.

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खुल गए फ्यूंला नारायण के कपाट

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Published : Jul 17, 2020, 10:44 AM IST

Updated : Jul 17, 2020, 12:21 PM IST

चमोली: जनपद के जोशीमठ विकासखंड स्थित उर्गम घाटी में फ्यूंला नारायण भगवान के मंदिर के कपाट खुल गए हैं. यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर पुरुष पुजारी के साथ साथ महिला पुजारी का विधान है. यहां पर महिला पुजारी वह सभी अनुष्ठान पूरा कराती हैं जो पुरुष पुजारी कराते हैं.

इस वर्ष मंदिर में पुरुष पुजारी के साथ महिला पुजारी का दायित्व पार्वती देवी को सौंपा गया है. महिला पुजारी को फ्यूंलाण भी कहते हैं. फ्यूंला नारायण मंदिर के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं.

खुल गए फ्यूंला नारायण के कपाट

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पुजारी को सौंपी जाती है घंटी और चिमटा

समुद्र तल से मध्य हिमालयी क्षेत्र में स्थित करीब 8000 फीट की ऊंचाई पर फ्यूंला नारायण मंदिर पंच केदारों में एक केदार कल्पनाथ मंदिर के शीर्ष भाग पर स्थित पहाड़ी पर है. फ्यूंला नारायण मंदिर में हर वर्ष क्षेत्र के भेटा, भर्की, पिलखी, गवाणा और अरोसी गांव के लोग बारी-बारी से पूजा अर्चना करते हैं.

फ्यूंला नारायण मंदिर की है अद्भुत मान्यता

इस वर्ष का दायित्व पुरुष पुजारी के रूप में भेटा गांव के हर्षवर्धन सिंह चौहान व महिला पुजारी का दायित्व पार्वती देवी को सौंपा गया है. कपाट खुलने से पूर्व भर्की गांव की पंचायत चौक में नवनियुक्त पुजारी हर्षवर्धन सिंह चौहान को चिमटा व घंटी सौंपी गई. महिला पुजारी अर्थात फ्यूंल्याण पार्वती देवी को फूलों से भरी कंडी व मक्खन रखने वाला पात्र दिया गया. मंदिर में भक्तों के लिए भंडारे का भी आयोजन किया गया. नंदा सवनुल देवी के पुजारी अब्बल सिंह पंवार व मंगल सिंह चौहान ने विधि-विधान के साथ मंदिर के कपाट खोलने की प्रक्रिया पूर्ण की.

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गायें भी पहुंचती हैं मंदिर

क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया कि फ्यूंला नारायण मंदिर में जो भी पुजारी नियुक्त होता है उसके परिवार में जितनी भी दूध देने वाली गायें होती हैं सभी कपाट खुलने के दिन मंदिर में लाई जाती हैं. साथ ही पुजारी को गांव में रहने वाला प्रत्येक परिवार आटा व चावल देता है, जिसमें भंडारे का आयोजन किया जाता है.

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अद्भुत थी परंपरा

लक्ष्मण सिंह नेगी ने यह भी बताया कि पुरानी परंपरा के अनुसार फ्यूंला नारायण मंदिर से ही बदरीनाथ जाने का पैदल मार्ग हुआ करता था. यहां ध्यान बदरी में पहले (घराट) पनचक्की हुआ करती थी, जहां से भगवान बदरीनाथ जी के लिए गेहूं की पिसाई कर आटा बकरियों में लाद कर बदरीनाथ धाम भेजा जाता था. लेकिन जब से सड़क मार्ग बना है, यह प्रक्रिया लगभग समाप्त हो गई है.

Last Updated : Jul 17, 2020, 12:21 PM IST

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