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लोक कलाकारों पर मंडरा रहा आर्थिक संकट, लॉकडाउन ने बिगाड़े हालात

लोक कलाकारों, गीतकारों की राज्य निर्माण में अहम भूमिका रही है. लेकिन, लोक कलाकार हमेशा से ही आर्थिक रूप से बेहद पीछे खड़े दिखाई देते हैं. जिनकी मदद को सरकार भी आगे नहीं आ रही है.

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लोक कलाकारों पर मंडरा रहा आर्थिक संकट.

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Published : Jun 25, 2020, 1:46 PM IST

Updated : Jun 25, 2020, 7:23 PM IST

थराली:पूरा देश इस वक्त कोरोना काल से जूझ रहा है. वहीं, अगर बात करें उत्तराखंड लोक कलाकारों की तो लोक कलाकारों पर भी आर्थिक संकट मंडराने लगा है. प्रदेश के विभिन्न जिलों में अलग-अलग सांस्कृतिक संस्थाए, कला मंच लोक नृत्यों, लोकगीतों, नुक्कड़ नाटकों और सांस्कृतिक मंच पहाड़ की संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम करती है.

लोक कलाकारों पर मंडरा रहा आर्थिक संकट.

कोरोना काल में आर्थिक संकट से कोई अछूता नहीं हैं. उत्तराखंड के कलाकारों का भी कुछ ऐसा ही हाल है. इन कलाकारों को प्रति कार्यक्रम महीनों बाद 400 रुपया मिलता है. कई बार तो इस भुगतान में भी साल तक बीत जाते हैं, बावजूद इसके सामाजिक सरोकारों से जुड़े ये कलाकार अपनी संस्कृति और विरासत को बचाने का भरसक प्रयास कर समाज को संस्कृतिक विरासत से जोड़ने का काम करते रहे हैं.

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बता दें कि, एक सांस्कृतिक संस्था में कम से 20 -30 लोक कलाकारों की एक टीम होती है. जिनके परिवार का भरण-पोषण इनके प्रदर्शन के फलस्वरूप संस्कृति विभाग से मिलने वाले मानदेय से होता है. ऐसे में कोरोना के चलते पिछले चार महीनों में इन लोक कलाकारों की आर्थिकी पर काफी असर पड़ा है. सरकार द्वारा इन लोक कलाकारों को इन चार महीनों के लिए मात्र 1000 रुपये सहयोग राशि तय की गई है. जिसके चालते ये कलाकार कई बार विरोध दर्ज भी कर चुके हैं.

लोक कलाकार प्रेम देवराड़ी का कहना है ति लोक कलाकारों के बीमे सहित स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए थी. जिससे लोक कलाकारों की हौसलाफजाई भी होती और लोक कलाकारों को सरकार का सहयोग भी मिल पाता. इसके साथ ही आने वाली पीढियां भी लोक संस्कृति और कला के जरिये अपनी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आते. उन्होंने बताया कि इस महामारी के बीच उनका गुजर-बसर करना बेहद मुश्किल हो रहा है. उनकी मांग है कि राज्य सरकार उनकी तरफ ध्यान दें.

Last Updated : Jun 25, 2020, 7:23 PM IST

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