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चमोली के गोरख्या उडियार गुफा को देखने आते हैं विदेशों से लोग, पर सरकार को नहीं कोई मतलब

दुनिया में मौजूद दार्शनिक स्थलों में उत्तर भारत की गोरख्या उडियार गुफा का नाम भी शामिल है. यहां लोग प्रकृति का मनोरम नजारा देखने के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं.

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Published : Feb 4, 2020, 9:29 AM IST

Updated : Feb 4, 2020, 11:32 PM IST

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गोरख्या उडियार गुफा

चमोली: मनुष्य का जुड़ाव प्राचीनकाल से ही गुफाओं से रहा है. ऐसे ही आज हम आपको एक ऐसी प्रागैतिहासिक काल की गुफा से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो चमोली के जिला मुख्यालय गोपेश्वर से करीब 12 किलोमीटर दूर डूंगरी गांव के पास है. इस पाषाण कालीन गुफा का नाम गोरख्या उडियार है. ये गुफा इन दिनों प्रदेश सरकार की अनदेखी की मार झेल रही है, जिसको लेकर स्थानीय लोगों में खासा रोष है.

दुनिया में कई दार्शनिक स्थान हैं, उनमें से एक है उत्तर भारत की गोरख्या उडियार गुफा. ये गुफा अलकनंदा नदी के तट से करीब 300 मीटर की खड़ी चट्टान के ऊपरी भाग में स्थित है. इस गुफा का दीदार करने लोग देश-विदेश से खिंचे चले आते हैं. गोपेश्वर से डूंगरी गांव तक गाड़ी से पहुंचने के बाद करीब डेढ़ किलोमीटर का सफर पैदल तय करना होता है तब जाकर इस गुफा का दीदार होता है. इस गुफा के चट्टानी भाग पर हिरण, शिकारी, बकरी और ऐसे ही अन्य जानवरों के चित्र लाल रंग से उकेरे गए हैं.

गोरख्या उडियार गुफा.

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वहीं, इतिहासकारों की मानें तो डूंगरी गांव के पास मौजूद इस पाषणकालीन गुफा के अंदरूनी भाग में चित्रकारी की गई है. जिसमें शिकारी को जानवरों का शिकार करते हुए दर्शाया गया है, वो आदिमानवों ने की है. शोधकर्ताओं का भी यही मानना है. जानकारी के मुताबिक, अभी तक इस ऐतिहासिक गुफा के अंदर करीब 41 चित्र थे, लेकिन वर्तमान में अब पर्यटकों के आवागमन बढ़ने से कई चित्रों को खरोंचकर बिगाड़ दिया गया है.

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उधर, डूंगरी गांव के स्थानीय लोगों की मानें तो इस गुफा का नाम स्थानीय बोलचाल की भाषा में ही रखा गया है, लेकिन इस प्रागैतिहासिक काल की इस गुफा के अंदर बने चित्रों को देखकर यह प्रतीत होता है कि यह गुफा पाषाणकाल की है. स्थानीय लोगों ने प्रशासन से इस ऐतिहासिक गुफा की उचित रख-रखाव की मांग की है. जिससे इस गुफा को और क्षति न पहुंचे.

Last Updated : Feb 4, 2020, 11:32 PM IST

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