बागेश्वर: जिले में उड़न गिलहरी के दिखने का पहला मामला सामने आया है. कपकोट के पोथिंग गांव में माटोली तोक में ग्रामीणों ने उड़न गिलहरी देखी. जिसके बाद यह गांव में कौतूहल का विषय बना हुआ है. शायद ही इससे पहले कभी किसी ने बागेश्वर में उड़न गिलहरी देखी हो. बांज के जंगलों के बीच बसे पोथिंग गांव के मैतोली में प्रकृति का सुंदर नजारा दिखता है.
इस घने जंगल के बीच से एक उड़न गिलहरी (फ्लाइंग स्क्वैरल) गांव के समीप पहुंच गई. ग्रामीणों के अनुसार उन्होंने पहली बार उड़न गिलहरी देखी है. तभी से यह ग्रामीणों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है. वहीं पर्यावरण, वन्यजीव एवं प्रकृति प्रेमियों के लिये अच्छी खबर है. साथ ही जियोलॉजिकल विशेषज्ञ इसे जैव-विविधता के लिए अच्छे संकेत बता रहे हैं. वन विभाग इस दुर्लभ प्रजाति की मौजूदगी को चिह्नित कर संरक्षण की योजना बनाने जा रहा है. पर्वतीय वादियों में उड़न गिलहरी की कितनी प्रजातियां रह गई हैं, इसके लिए भी बाकायदा शोध होना है.
बागेश्वर जिले में दिखी उड़न गिलहरी उड़न गिलहरी (Flying squirrel) का वैज्ञानिक नाम टेरोमायनी (Pteromyini) या पेटौरिस्टाइनी है. यह कुतरने वाले जीव के परिवार के जंतु हैं. जो ग्लाइडिंग की क्षमता रखते हैं. इनकी विश्व भर में 44 जीव वैज्ञानिक जातियाँ हैं. इनमें से 12 जातियां भारत में पाई जाती हैं.
बागेश्वर जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र से लगे गांव में उड़ान भरती दुर्लभ गिलहरी की मौजूदगी पर्यावरण विशेषज्ञों के लिए भी अच्छा संकेत है. समुद्रतल से 1,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कपकोट तहसील के पोथिंग गांव में बांज, बुराँस, चीड़ के घने जंगलों के बीच उड़न गिलहरी का देखा जाना आश्चर्य का विषय है. ग्रामीणों द्वारा उड़न गिलहरी को देखे जाने की सूचना वन विभाग को दी गयी गयी, जिसके बाद वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची.
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वहीं वन दरोगा गजेंद्र सिंह गड़िया ने बताया कि उड़न गिलहरी दुर्लभ वन्य जीवों की श्रेणी में है. यह विलुप्ति की कगार पर है. ऐसे में पोथिंग गांव में इसकी मौजूदगी वन विभाग के लिए भी अच्छा संकेत है. उन्होंने बताया कि ग्रामीणों से सूचना मिलने पर उनकी टीम गांव गयी, लेकिन इस दौरान वह नहीं दिखी. ग्रामीणों द्वारा वीडियो दिखाई गई. इससे पता चल रहा है कि वह उड़न गिलहरी (पेटौरिस्टाइनी) है. इसके अगले व पिछले पैर एक झिल्ली से जुड़े रहते हैं, जो इसे एक पेड़ से दूसरे पेड़ में जाने के लिए ग्लाइडर नुमा आकर देती है. वन विभाग की टीम नजर बनाए हुए है. उड़न गिलहरी दोबारा दिखाई दी तो उसे पकड़ कर रिजर्व फॉरेस्ट में छोड़ा जाएगा.
आपको बता दें कि भारत में उड़ने वाली गिलहरियों की 12 प्रजातियां हैं. बागेश्वर में इसकी कितनी प्रजातियां हैं, यह शोध का विषय है. बता दें कि उड़न गिलहरी उड़ान नहीं भरती, वह छलांग लगाती है. उसके शरीर में अगले दोनों पैरों से पिछले दोनों पैरों तक पर्देदार लचीली त्वचा होती है. यह त्वचा ऊंचे स्थान से छलांग लगाने पर फैल कर पैराग्लाइडर का आकार ले लेती है. जिसकी मदद से यह दुर्लभ गिलहरी काफी लंबी दूरी तक जाती देखी गयी है.