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जहरीली शराब कांड: कई घर में अब नहीं बचा कोई कमाने वाला, बढ़ता मौत का आंकड़ा, सरकार नहीं गंभीर - अधिकारी

गवानपुर के करीब आधा दर्जन गांवों में मौत का सन्नाटा पसरा हुआ है. 8 फरवरी को जहरीली शराब पीने से इन गांवों में शुरू हुआ मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. प्रदेश में जहरीली शराब पीने से मरने वालों का आंकड़ा 32 पहुंच गया है. दर्जनों लोग अभी भी अलग-अलग अस्पतालों में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं

जहरीली शराब कांड पर सीएम का बयान.

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Published : Feb 10, 2019, 10:45 AM IST

ऋषिकेश: हरिद्वार जिले के करीब आधा दर्जन गांवों में जहरीली शराब ने मौत का ऐसा तांडव मचाया की इन गांवों में कई घरों के चिराग बुझ गए. कई घर तो ऐसे हैं जिनमें अब कोई कमाने वाला नहीं बचा. प्रदेश में हुये इतने बड़े हादसे के बाद भी सरकार गंभीर नजर नहीं आ रही है. जहरीली शराब पीने से मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है लेकिन सरकार ने अभी भी जिले के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई करवाई नहीं की है.

जहरीली शराब कांड पर सीएम का बयान.


भगवानपुर के करीब आधा दर्जन गांवों में मौत का सन्नाटा पसरा हुआ है. 8 फरवरी को जहरीली शराब पीने से इन गांवों में शुरू हुआ मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. प्रदेश में जहरीली शराब पीने से मरने वालों का आंकड़ा 32 पहुंच गया है. दर्जनों लोग अभी भी अलग-अलग अस्पतालों में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं. जहरीली शराब के शिकार बने ज्यादातर लोग बेहद गरीब परिवार से थे. जिसके कारण इन परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

वहीं प्रदेश में हुए इतने बड़े शराब कांड के बाद भी सीएम इस मामले में ज्यादा गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं. अवैध शराब माफिया पर करवाई करने के सवाल पर सीएम कहते हैं कि उनकी सरकार पिछले दो सालों से लगातार अवैध शराब के खिलाफ छापेमारी कर रही है. ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता है कि अगर प्रशासन लगातार करवाई कर रहा है तो आखिर इतना बड़ा हादसा कैसे हो गया? यही नहीं दो दर्जन से ज्यादा लोगों के मरने के बाद भी उत्तराखंड सरकार ने आबकारी और पुलिस विभाग के छोटे कर्मियों को निलंबित कर मामले में इति श्री कर दी .

राज्य सरकार ने इस मामले में जिले के पुलिस,प्रशासन और आबकारी विभाग के जिम्मेदार बड़े अधिकारियों के खिलाफ अब तक कोई करवाई नहीं की. मुख्यमंत्री कह रहें हैं कि इस मामले में उनकी सरकार ने 17 कर्मियों के खिलाफ करवाई की है, लेकिन सवाल फिर वहीं है कि कब तक छोटे कर्मचारियों को निलबिंत कर सरकार और अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बचते रहेंगे?

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