देहरादून: उत्तराखंड में लोकसभा की पांचों सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होना है. ऐसे में जहां निर्वाचन आयोग अपनी अंतिम तैयारियों में जुटा है. वहीं, सभी पार्टियों के प्रत्याशियों ने अपने चुनाव प्रचार-प्रसार में पूरी ताकत झोंक दी है. हालांकि, मतदान के दिन वोटर अपने पसंद के प्रत्याशी को ही वोट देता है. लेकिन मतदाता को अगर कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं आता है तो ऐसे में बैलेट यूनिट में वोटर के लिए नोटा भी एक विकल्प के रूप में होता है. ईटीवी भारत आपको बताने जा रहा है कि आखिर ये नोटा होता क्या है और किस तरह वोटर्स इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
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NOTA का मतलब होता है None of the above यानी 'उपयुक्त में से कोई नहीं'. बैलेट यूनिट में प्रत्याशियों के नाम और उनके पार्टी सिंबल की सूची के बाद अंत में नोटा का विकल्प होता है. ये विकल्प अक्सर वोटर तब प्रयोग में लाते हैं, जब उन्हें चुनाव में खड़े प्रत्याशियों में से कोई भी पसंद नहीं है और वे अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहते. लिहाजा वोटर NOTA का विकल्प चुन सकता है.
क्यों चुनाव प्रक्रिया में शामिल किया गया NOTA
भारत निर्वाचन आयोग ने साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दिया था कि मतदाताओ को 'उपरोक्त में से कोई नही' विकल्प प्रदान करें ताकि मतदाताओं चुनाव में खड़े उम्मीदवारों को खारिज करने की भी आज़ादी हो. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निर्वाचन आयोग ने 27 सितंबर 2013 को ईवीएम में नोटा का विकल्प उपलब्ध करवाया था.
हालांकि, इसके पीछे यह भी तर्क है कि निर्वाचन आयोग वोटिंग प्रणाली में ऐसी व्यवस्था लागू करना चाहता था जिससे यह मालूम हो सके कि कितने फीसदी लोग किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देना चाहते है. ताकि वोटों की गिनती के समय प्रत्याशियों को मिले वोटों को गिनने के साथ ही नोटा विकल्प में दिए गए वोटों की भी गिनती हो सके.