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विश्व प्रसिद्ध रामलीला का यह केवट भी है खास, जाने क्यों !

वाराणसी के रामनगर में होने वाली रामलीला विश्व में प्रसिद्ध है. वहीं इस रामलीला में 40 वर्षों से केवट के पात्र को निभाने वाले श्याम दास भगत की अलग ही कहानी है. वह इस रामलीला में नाट्य तो करते है मगर राजा की तरफ से कोई धनराशि नहीं लेते हैं.

विश्व प्रसिद्ध रामलीला .

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Published : Sep 29, 2019, 9:45 PM IST

Updated : Sep 29, 2019, 11:24 PM IST

वाराणसी: धर्म की नगरी से मशहूर काशी एक ऐसा शहर जहां हर त्योहार को बड़े धूम-धाम और भक्ति के साथ मनाया जाता है. वहीं नौ दिन के नवरात्रि के बाद आने वाला दशहरा बेहद खास माना जाता है. पूरे नौ दिन के नौरात्रि में लोग रामलीला के माध्यम से राम जी की कथाओं का वर्णन सुनते और देखते है और उसका लुफ्त उठाते हैं.

विश्व प्रसिद्ध रामलीला .

काशी की रामलीला विश्व में प्रसिद्ध है. रामनगर में होने वाली इस रामलीला की विश्व में चर्चा है. यह रामलीला एक रंगकर्म के बजाय संपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जो लोकरंग में पगे सहज संस्कारों को भी सहज होती है. यह परंपरा डेढ़ सौ वर्ष का इतिहास अपने में समेटे हुए है.

यूं तो रामलीला में कई प्रसंग है, जिनमें अनेक पात्र हैं. रामलीला जितनी खास है उतने उसके पात्र खास हैं. इन्हीं पात्रों में से एक है केवट. आज हम आपको एक ऐसे पात्र से मिलाएंगे जो एक-दो नहीं बल्कि 40 वर्षों से केवट के पात्र को निभा रहे हैं.

यह इनकी तीसरी पीढ़ी है. केवट के पात्र को इनके पिताजी, इनके चाचाजी और अब यह अपने घर की इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं, जिसे यह भगवान का आशीर्वाद मानते हैं.

हम सब जानते हैं कि भगवान राम जब अयोध्या छोड़ के जाने लगे तो केवट ने उन्हें गंगा नदी पार कराया था. विश्व प्रसिद्ध रामलीला में केवट का पात्र निभाने वाले श्याम दास भगत की कहानी बिल्कुल अलग है.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में कारपेंटर की नौकरी के बाद रिटायर हुए श्याम दास भगत अब भगवान श्री राम की सेवा में रहते हैं. इन्हें रामलीला का बहुत इंतजार होता है क्योंकि यह भगवान राम को पार लगाते हैं. हर पात्र को महाराजा द्वारा कुछ धनराशि दी जाती है, लेकिन भगवान का यह केवट महाराजा से कुछ धनराशि नहीं लेते हैं. उनका कहना है कि जब हमारे पूर्वज केवट ने भगवान श्रीराम से कुछ नहीं लिया तो हम कैसे ले सकते हैं.

श्याम दास भगत ने बताया केवट का पात्र हम 1972 से करते आ रहे हैं. हमारे दादा हमारे चाचा तीन पीढ़ी से हम लोग या पात्र का निर्वहन कर रहे हैं. जब भगवान को पार लगाते हैं तो वह सुखद अनुभव होता है और भगवान से यही प्रार्थना है कि कितनी जल्दी वह हमसे या मैं उनसे मिल सकूं. हम सेवा करते हैं. यह प्रभु की सेवा है, लेकिन मैं कुछ लेता नहीं हूं. जब भगवान को पार लगाने वाले केवट ने भगवान से कुछ नहीं लिया तब हम कैसे किसी से कुछ ले सकते हैं. यह महाराज का स्नेह हैं कि वह इतनी बड़ी लीला को आज भी उसी उत्साह उमंग और श्रद्धा के साथ करा रहे हैं.

Last Updated : Sep 29, 2019, 11:24 PM IST

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