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वाराणसी: बुनकरों की हड़ताल, साड़ी कारोबारी बेहाल

यूपी के बनारस का साड़ी कारोबार इन दिनों बुरे वक्त से गुजर रहा है. इसका प्रभाव बुनकरों और साड़ी कारोबारियों पर देखने को मिल रहा है. बनारसी साड़ी कारोबार को लेकर वाराणसी से देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

बुनकरों की हड़ताल ने किया साड़ी कारोबारियों को बेहाल
बुनकरों की हड़ताल ने किया साड़ी कारोबारियों को बेहाल

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Published : Oct 25, 2020, 7:52 PM IST

वाराणसी: बनारस की इकोनॉमी बनारसी साड़ी कारोबार पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है. इसकी बड़ी वजह है कि बनारसी साड़ी कारोबार सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी तेजी से फैल रहा है. त्योहारों के सीजन में बनारसी साड़ी की डिमांड एक तरफ जहां अलग-अलग राज्यों में बड़ी संख्या में होती है. वहीं शादियों का सीजन शुरू होते ही देश के साथ विदेशों में भी बनारसी साड़ियां जाने लगती हैं, लेकिन इन दिनों बनारसी साड़ी उद्योग का बुरा वक्त चल रहा है. पहले नोटबंदी और जीएसटी के बाद कोविड-19 ने इस कारोबार की कमर को तोड़ दी है.

बुनकरों की हड़ताल, साड़ी कारोबारी बेहाल

इन सबके बाद स्थितियां सुधरने की उम्मीद जताकर बनारसी साड़ी व्यापारी कारोबार को फिर से शुर किया तो अब बिजली के फ्लैट रेट की डिमांड को लेकर 10 दिनों से बुनकर हड़ताल पर चले गए हैं. बिजली में सब्सिडी खत्म किए जाने के बाद लगातार 10 दिनों से चल रही बुनकरों की हड़ताल ने बनारसी साड़ी उद्योग को बेहाल कर दिया है.

हालात यह हैं कि अब तक तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार प्रभावित है और शादियों और त्योहारों के सीजन में अभी इस कारोबार के और भी ज्यादा बर्बाद होने की आशंका जताई जा रही है. क्योंकि साड़ियों के ऑर्डर तो पड़े हैं, लेकिन माल तैयार करने वाले बुनकर काम करने को तैयार नहीं हैं.

थम गई खटर पटर की आवाज

दरअसल बनारसी साड़ी कारोबार का सबसे महत्वपूर्ण अंग बुनकर हैं. लल्लापुरा, सरैया, पीलीकोठी, कज्जाकपुरा, आदमपुरा, पुरानापुल शहर के अन्य तमाम बुनकर बाहुल्य इलाकों में सुनाई देने वाली हथकरघे की खटर पटर और पावर लूम की आवाजें पूरी तरह से बंद पड़ी हैं. दस दिनों से सरकार के खिलाफ नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन की आवाज बुनकरों के इन इलाकों में सुनाई दे रही है.

क्या है हड़ताल का कारण

बुनकरों की मांग है कि सरकार उनको फ्लैट रेट पर बिजली उपलब्ध कराए, जिससे कि उनका काम चलता रहे और कम खर्च में उनका गुजारा हो सके, क्योंकि एक साड़ी पर चार सौ से पांच सौ रुपये का लाभ एक बुनकर को मिलता है. ऐसी स्थिति में बिजली का बढ़ा रेट देने के बाद हालात कैसे सुधरेंगे. यही वजह है कि बुनकर लगातार हड़ताल कर रहे हैं और उनकी हड़ताल का सीधा असर बनारसी साड़ी उद्योग पर पड़ रहा है.

बनारसी साड़ी का पीक सीजन

नवरात्र में जहां बनारसी साड़ियों की डिमांड पश्चिम बंगाल में जबरदस्त तरीके से रहती है. वहीं नवरात्रि के बाद दक्षिण भारत और फिर शादियों के सीजन शुरू होने के साथ ही महाराष्ट्र व अन्य राज्यों में भी साड़ियां बड़ी मात्रा में जाती हैं. समय की वजह से अब डिजिटल दौर में नई डिजाइन बनारसी साड़ी कारोबारियों को ग्राहक भेजकर उनसे उसी डिजाइन की साड़ी की जल्द से जल्द मांग करते हैं, लेकिन ऑर्डर तो आ रहे हैं, लेकिन नई डिजाइन बनाने वाले बुनकर तैयार ही नहीं हैं.

फंस गया आर्डर

बुनकरों की हड़ताल होने की वजह से साड़ियों के आर्डर डंप पड़े हैं. पुराने माल भी डंप हैं और नए डिजाइन को बुनकर तैयार करने को रेडी नहीं हैं, यही वजह है कि बनारसी साड़ी कारोबारियों का बड़ा ऑर्डर फंसा हुआ है. बनारस की सबसे बड़ी साड़ी मंडी कही जाने वाली कुंज गली भी वीरान पड़ी है. कई दुकानों में ताले लटक रहे हैं.

साड़ी कारोबारियों का कहना है कि शादियों और त्योहार के सीजन में बुनकरों का हड़ताल पर जाना इस कारोबार की कमर तोड़ चुका है. यह सीजन पीक होता है और इस वक्त बाहर से बड़ी संख्या में ऑर्डर आते हैं, लेकिन बुनकर काम करने को तैयार नहीं हैं. कुछ बुनकर चोरी छुपे काम कर रहे हैं तो उन्हें भी अपने साथ मिलाकर काम रोकने की तैयारी हो रही है. फिलहाल अब तक करोड़ों का आर्डर कैंसिल है और लाखों का फंसा हुआ है.

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