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काशी तमिल संगमम : बनारस में बसा है मिनी दक्षिण भारत, 12 साल पैदल चलकर पहुंचे थे कई परिवार - काशी तमिल संगमम का उद्घाटन

क्या काशी के साथ दक्षिण भारत के रिश्ते नए हैं या फिर इन संबंधों को नए सिरे से बनाने की शुरुआत की जा रही है. इसकी गहराइयों में जाएंगे तो पता चलेगा कि काशी का दक्षिण भारत के तमिलनाडु, कर्नाटक, केरला, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सहित दक्षिण के तमाम हिस्सों के साथ रिश्ता कोई नया नहीं है. देखें संवाददाता गोपाल मिश्रा की खास रिपोर्ट...

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 14, 2023, 11:39 AM IST

Updated : Dec 14, 2023, 12:19 PM IST

काशी तमिल संगमम के अवसर पर काशी और दक्षिण भारत के रिश्तों पर संवाददाता गोपाल मिश्रा की खास रिपोर्ट.

वाराणसी : काशी तमिल संगमम की शुरुआत 17 दिसम्बर को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. 30 दिसम्बर तक चलने वाले तमिल संगमम कार्यक्रम का यह दूसरा साल है. पिछले साल काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एम्फी थियेटर ग्राउंड में प्रधानमंत्री तमिल भाषियों को से रूबरू हुए थे और इस बार प्रधानमंत्री 17 दिसंबर को नमो घाट पर लगभग 1400 तमिल भाषी और तमिल के विशिष्टजनों से मुलाकात करेंगे और उनको संबोधित भी करेंगे. माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री के आगमन के साथ ही पूरे दिसम्बर तक चलने वाले इस आयोजन से काशी तमिल समेत उत्तर भारत संग दक्षिण भारत के रिश्ते मजबूत हो जाएंगे.

भाषाई मतभेद का कोई मायने नहीं.

वैदिक और पांडित्य परंपरा को जीवंत रखना है उद्देश्य : काशीनाथ शास्त्री का कहना है कि लगभग 200 साल पहले 12 वर्षों का लंबा सफर तय करके उनके परिवार के लोग पैदल ही काशी पहुंचे थे. पूरे भारत का भ्रमण करते हुए 12 वर्षों की लंबी यात्रा करके काशी आने के बाद सभी लोग यहीं पर बस गए. दक्षिण भारतीयों के लिए तो काशी का मतलब ही वैदिक और पांडित्य परंपरा को जीवंत करना है. क्योंकि दक्षिण भारत के लोगों का मानना है कि यदि वेद, वेदांग और संस्कृत समेत पांडित्य परंपरा को जीना है तो काशी आना ही होगा. यही वजह है कि सैकड़ों साल पहले बड़े-बड़े विद्वान तमिलनाडु और दक्षिण के अन्य हिस्सों से काशी आकर बसे और यहीं पर आकर स्वाध्याय करते हुए अपने जीवन को जीना शुरू कर दिया.

काशी की गलियां और मोहल्ले.


संत, महात्माओं की कर्मभूमि है काशी की धरती :लंबे वक्त से काशी में जीवन यापन करने वाले तमिलनाडु के शिवकुमार का कहना है कि काशी को बड़े-बड़े संत, महात्माओं ने भी साउथ से आकर अपनी कर्मभूमि बनाई. काशी के हनुमान घाट में ही शंकराचार्य कांची कमाकोटी मठ है. यहां पर कांची कमाकोटी मंदिर को देखकर आपको यह एहसास ही नहीं होगा कि यह काशी है, क्योंकि इसकी खूबसूरत डिजाइन बिल्कुल दक्षिण भारतीय मंदिरों के तर्ज पर बनाई गई है. इसके अलावा जंगमबाड़ी मठ से लेकर कई अन्य मठ और मंदिर काशी केदारेश्वर मंदिर, चिंतामणि गणेश मंदिर, विशालाक्षी मंदिर यह सभी काशी में दक्षिण भारतीय परंपरा और संस्कृति के साथ धर्म के सीधे जुड़ाव का बड़ा केंद्र हैं. दक्षिण में हर पुरुष दक्षिण भारतीयों के लिए साक्षात शिव और महिलाएं माता अन्नपूर्णा का रूप होती हैं. यही वजह है कि दक्षिण भारत में यहां की पुरुष और महिलाओं को देखते ही प्रणाम किया जाता है.


काशी रिश्तों की धरोहर.

काशी के बिना दक्षिण नहीं और दक्षिण बिना काशी नहीं : काशी में रहने वाले कर्नाटक के शास्त्री परिवार का कहना है कि काशी से उनके परिवार का जुड़ाव सैकड़ों साल पहले का है. छठवीं पीढ़ी इस समय काशी में रह रही है और यहां पर उनका खुद का आवास भी है. परिवार के साथ जीवन यापन करते हुए 200 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. सबसे बड़ी बात यह है कि शास्त्री परिवार मैसूर के राजघराने के राजपुरोहित हैं और कर्नाटक भवन जिसका निर्माण मैसूर के राजपरिवार ने काशी में करवाया उसकी देखरेख की जिम्मेदारी भी इन्हीं के ऊपर है. शास्त्री परिवार के लोगों का कहना है कि तमिल संगमम का आयोजन भले आज हो रहा हो, लेकिन काशी आकर बसे दक्षिण भारतीयों के लिए दोनों राज्यों के रिश्तों को मजबूत रखना हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है. क्योंकि काशी के बिना दक्षिण नहीं और दक्षिण बिना काशी नहीं है. यही वजह है कि दक्षिण भारत के अलग-अलग हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग आकर काशी में बस गए और यहां के जीवन के हिसाब से अपनी और यहां की संस्कृति को मिलाकर जीने लगे.

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Last Updated : Dec 14, 2023, 12:19 PM IST

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