वाराणसी: लगातार हर त्यौहार को लेकर 2 दिन मनाया जाने के कन्फ्यूजन के बीच वाराणसी के महापर्व देव दीपावली को भी 26 और 27 नवंबर को लेकर संशय था. जिसको लेकर मंगलवार को काशी विद्वत परिषद की बैठक में देव दीपावली को लेकर भी फैसला हुआ है. यह फैसला इसलिए लेना पड़ा क्योंकि पंचांगों में अलग-अलग तिथि होने की वजह से 26 और 27 दोनों दिन देव दीपावली का पर्व बताया जा रहा था. जिस पर निर्णय लेते हुए विद्वत परिषद ने 26 नवंबर को ही त्यौहार मनाए जाने पर आपसी सहमति जताई है.
काल विशेष को ध्यान में रखते हुए करे व्रत: काशी विद्वत परिषद के महामंत्री आचार्य रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि धर्मप्राण इस भारतवर्ष के समस्त व्रत, पर्व एवं उत्सव मनुष्य की सांस्कृतिक चेतना के साथ आध्यात्मिक उन्नति के भी कारक हैं. लेकिन, इन लक्ष्यों की पूर्ति तभी संभव हैं, जब हम अपनी ऋषि परंपरा से तपो बल से प्रतिपादित काल विशेष को ध्यान में रखते हुए उन व्रत, पर्व, उत्सव आदि का आयोजन करें. इसके लिए स्वयं ब्रह्मा जी ने सृष्टि के अंतर वेदांग स्वरूप में काल गणना हेतु ज्योतिष शास्त्र और उस गणना के आधार पर शुभ काल के निदर्शन हेतु धर्मशास्त्र की रचना की. जिसके समन्वय से उपयुक्त काल का विवेचन किया जा सके. इसमें शास्त्र का आधार ही प्रमाण होता है, अपनी तार्किक बुद्धि नहीं. लेकिन, वर्तमान समय में लोग अपनी शास्त्र प्रमाण से रहित तार्किक शक्तियों को अपनी सुविधा की दृष्टि से शुभ काल की व्याख्या करते हुए व्रत पर्व उत्सव आदि मनाने का निर्देश देने लगे हैं. जैसे उदया तिथि मान्य होगी, अस्तकालिक तिथि मान्य होगी, मध्यान्ह काल की तिथि मान्य होगी. आदि परंतु कार्य और व्रतादि के भेद से आचार्यों ने इन तिथियों के उदय, अस्त, मध्यरात्रि और मध्यदिन कालिक इत्यादि का पृथक विवेचन किया है.
एक ही तिथि में अनेक व्रत, पर्व भी वर्णित:महामंत्री आचार्य रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि जैसे सामान्य व्रत, पर्व, आदि में उदया रामनवमी में मध्यान्ह कालिक, कृष्ण जन्माष्टमी में अर्धरात्रि कालिक, दीपावली में प्रदोष कालिक आदि अतः हमें ऋषि प्रणित धर्मशास्त्र के वचनों का अवलोकन करते हुए प्रमाण वचनों का आश्रय लेकर के ही किसी व्रत,पर्व आदि का आयोजन करना चाहिए. अन्यथा उसके विपरीत परिणाम भी दृष्टिगत होने लगते हैं. इस संदर्भ में हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि कभी-कभी एक ही तिथि में अनेक व्रत पर्व भी वर्णित होते हैं. जो की काल भेद से कुछ मध्यान्ह व्यापिनी, कुछ प्रदोष व्यापिनी तो कुछ उदयातिथी में मनाए जाते हैं.इसी तरह से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को भी अनेक व्रत पर्व उत्सवों का वर्णन आचार्य ने किया है. जैसे स्नान दान की पूर्णिमा, दक्षसावर्णि मान्वादि (कुतुपाद्यघटी व्यापिनी), महाकार्तिकी (भूतविद्धा), धात्री पूजा (परविद्धा), व्रत की पूर्णिमा, केश बंधन गौरी व्रत (परविद्धा), वृषोत्सर्ग (सायंकाल व्यापिनी), त्रिपुरोत्सव (सायंकाल व्यापिनी), देवदीपावली(सायंकाल व्यापिनी), आदि.
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