वाराणसी: वैसे तो आपने बनारसी साड़ी और बनारसी पान के बारे में सुना होगा. यह दो चीजें बनारस में सबसे ज्यादा फेमस हैं. वहीं दिवाली के मौके पर बनारस में बनारसी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों का काफी महत्व है. यह मूर्तियां दिवाली के मौके पर सालों से परंपरा के साथ पौराणिकता को समेट कर आगे बढ़ रही हैं. इन मूर्तियों की सप्लाई कोलकाता, मद्रास और महाराष्ट्र तक की जाती है.
प्लास्टर ऑफ पेरिस और चाइना की बनी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां दिवाली के मौके पर हर किसी को भाती हैं, लेकिन बनारस में ऐसी मिट्टी की मूर्तियों को बनाया जाता है, जो केसरिया रंग में रंगी प्रतिमाएं पीली वाली प्रतिमाओं के नाम से जानी जाती हैं. गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों में लोहे की तीलियों पर मिट्टी से बनाए गए सुंदर डिजाइन दिखाई देते हैं. अपने आप में अनोखी यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार होती हैं और कच्ची मिट्टी पर ही गेरुआ रंग लगाकर इनकों पूजा के लिए तैयार किया जाता है. यह मूर्तियां सिर्फ बनारस में बनती हैं, इसलिए इनकी डिमांड पूरे देश में रहती है. कच्ची मिट्टी से तैयार होने की वजह से यह शुद्ध होती हैं और पूजा के लिए शास्त्री मान्यताओं के अनुरूप भी होती हैं. यही वजह है कि इन मूर्तियों की डिमांड पश्चिम बंगाल, दक्षिण भारत, पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा है.
बनारस में तैयार होने वाली इन मूर्तियों में गणेश जी की जो डिजाइन है, वही सेम डिजाइन मुंबई के सिद्धिविनायक गणेश की है. यह डिजाइन ही महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित है. दक्षिण भारत और महाराष्ट्र के लोग इन मूर्तियों को अपने यहां और बनारस में भी पूजते हैं और महाराष्ट्र, दक्षिण भारत में रहने वाले अपने रिश्तेदारों को भी भेजते हैं.
-मनोज प्रजापति, मूर्तिकार
शास्त्री मान्यताओं के अनुरूप कच्ची मिट्टी से तैयार इन तीली वाली प्रतिमाओं की ही पूजा करना शास्त्रों में बताया गया है, जिसकी वजह से हम ऐसी प्रतिमाओं की स्थापना कर उनको दीपावली पर पूजते हैं और घर में धन-धान्य और हंसी-खुशी के माहौल की भगवान से कामना करते हैं.
-राजीवन द्रविण, खरीददार