वाराणसी: 'खइके पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला'.... यह गाना तो आपने सुना ही होगा. मंदिरों का शहर कहे जाने वाला बनारस खानपान, संस्कृति, गलियां बनारसी साड़ी के साथ साथ पान के लिए भी पूरे विश्व में अलग पहचान रखता है. यही वजह है कि बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी बनारसी पान का जिक्र किया गया है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर क्या वजह है कि बनारसी पान इतना प्रसिद्ध है.
दरअसल, बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में देवों के देव महादेव को लगने वाले भोग में बनारस का पान भी शामिल है. चार प्रहर की आरती में बाबा विश्वनाथ को पान का भोग लगता है. सबसे खास बात यह है कि यह पान परंपरागत दुकान से ही आता है और यह परंपरा 150 वर्षों से चली आ रही है. पान बेचने वाले दुकानदार तीन पीढ़ियों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं.
इस पान के शौकीन हैं नाथों के नाथ विश्वनाथ, खास दुकान में ही बनता है यह पान - paan offered to baba vishwanath worship
काशी विश्वनाथ के करीब ढूढ़ी गणेश मंदिर के प्रसिद्ध भुल्लन पान की दुकान से बाबा विश्वनाथ को भोग लगता है. चार प्रहर की आरती में बाबा विश्वनाथ को इसी दुकान में बने पान को प्रसाद स्वरूप चढ़ाया जाता है. यह परंपरा पिछले 150 वर्षों से चली आ रही है.
150 साल से परंपरा का निर्वहन
दुकान में पान बना रहे भुल्लन पान वाले ने बताया कि पिछले 3 पीढ़ी से पान लगाकर बाबा की सेवा कर रहे हैं. पहले मेरे दादाजी, फिर पिताजी और अब मैं बाबा के लिए पान लगाता हूं. बाबा का पान किसी दिन भी नागा नहीं होता है. लॉकडाउन के समय में भी हम लोगों ने घर से पान बनाकर बाबा को दिया. गर्मी, बरसात हर समय बाबा का पान समय पर तैयार हो जाता है. पान में शुद्ध कत्थे का लेप, चून, सुपाड़ी लगाकर लॉग से पैक किया जाता है. यह सब बाबा के आशीर्वाद से सैकड़ों वर्षों से हो रहा है. उनकी हर पूजा और आरती में यह पान चढ़ता है.
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य अर्चक, श्रीकांत मिश्र ने बताया कि बनारस में पान और विद्वान यही प्रधान है. हमारे सनातन धर्म में सभी पूजन में तांबूल(पान) चढ़ाने का विधान है. मंगला आरती में जो बाबा को पान चढ़ाया जाता है. यह एक ही परिवार पिछले 150 वर्ष से दे रहा है. यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी बनी हुई है. प्रत्येक दिन निश्चित समय पर पान को तैयार कर सजाकर मंदिर प्रांगण में लाया जाता है. मंगला आरती में बाबा को भोग लगता है. उसके बाद बहुत से लोग उस पान को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं.
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