वाराणसी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल में हृदय रोगियों के लिए 'संजीवनी' आ चुकी है. अस्पताल प्रशासन के करीब 15 साल की मेहनत के बाद कार्डियोलॉजी विभाग में एक ऐसी मशीन लगाई गई है, जिसकी मदद से दिल के ब्लॉकेज को सेकेंड भर में सही किया जा सकेगा. केंद्र सरकार की मदद से लगभग दो करोड़ की लागत की यह मशीन अमेरिका से मंगाई गई है. इसकी मदद से दिल की नसों में ब्लॉकेज को डायमंड धुरी वाली ड्रिलिंग मशीन मात्र एक सेकेंड में ही काटकर पाउडर बना देगी. इससे मरीजों का करीब 80 फीसदी खर्च बचने वाला है. इस मशीन का प्रयोग भी कर लिया गया है.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का अस्पताल पूर्वांचल का एम्स कहा जाता है. यहां पर देशभर से लोग अपनी बीमारियों के इलाज के लिए आते हैं. इनमें से दिल के मरीजों की भी संख्या बहुत अधिक रहती है. ऐसे में अस्पताल की जिम्मेदारी हृदय रोगियों के लिए और भी बढ़ जाती है. अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग का आधुनिक होना तब और जरूरी हो जाता है जब आजकल दिल के मरीजों की संख्या बढ़ रही है और लगातार हार्ट अटैक के मामले सामने आ रहे हैं.
IMS-BHU स्थित कार्डियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. ओमशंकर का कहना है कि हृदय रोगियों की परेशानी को देखते हुए टीम ने इस तरह की मशीन अस्पताल में इंस्टॉल करा दी है. भारत सरकार की मदद से दो करोड़ रुपये की ये मशीन अमेरिका से लाईं गईं हैं.
मरीज की छाती खोलकर सर्जरी में होता है रिस्कः प्रो. ओमशंकर बताते हैं, 'जो मशीनें अस्पताल में लगाई गई हैं उसमें से एक मशीन इंट्रा वस्कुलर अल्ट्रासाउंड (IVUS) जांच के लिए है, जबकि दूसरी ROTA-PRO ट्रीटमेंट में इस्तेमाल हो रही है. कई बार जब एंजियोप्लास्टी की जाती है तो दिल में लगाया गया छल्ला नस में ढंग से फिट नहीं हो पाता. इससे वह दब जाता है. सामान्य तरीके से नसों में जमा हुआ कैल्शियम हटाना असंभव होता है. उसके लिए मरीज की पूरी छाती खोलनी पड़ती थी. वहां से ब्लॉकेज वाला नस काटकर हटाना पड़ता था. उसकी जगह पैर के एक हिस्से से नस काटकर लगाना होता है. इस सर्जरी में रिस्क होता है.'
खून के थक्कों और कोलेस्ट्रॉल को हटाता हैः उन्होंने बताया, 'मरीज की नसों में जब ब्लॉकेज का पता चलता है तो इस नई मशीन का प्रयोग करते हैं. खून की 1.5 मिलीमीटर की नस में 1.25 मिलीमीटर की ड्रिलिंग मशीन का प्रयोग किया जाता है. इस मशीन की धुरी पर हीरे के नुकीले टुकड़े लगे होते हैं. इसे डायमंड डस्ट भी कहते हैं. जब इसे ड्रिल किया जाता है तो यह अपनी धुरी पर एक सेकेंड में लगभग 2 लाख बार रोटेटे हो जाती है. इससे नसों में पत्थर जैसे जमा कैल्शियम डिपोजिट टूटकर पाउडर बन जाते हैं.' डॉ. ओमशंकर बताते हैं, 'इस मशीन के माध्यम से नसों में खून के थक्कों और कोलेस्ट्रॉल के जमाव को भी हटाया जाता है.'
एक सेकेंड से कम समय में काट देता है ब्लॉकेजः वे बताते हैं, 'नई मशीन का उपयोग करने के लिए IVUS मरीज की जांघ वाली नस से अंदर डालते हैं. नसों के अंदर मूविंग स्पॅाट जैसा दिखाई देता है. यह दिल की नसों के अंदर जाकर पूरी प्रक्रिया को रिकॉर्ड कर मॉनिटर पर दिखाता है. नसों में एक वायर डालते हैं. वायर फंस जाती है तो फिर ड्रिलिंग मशीन डाली जाती है. ड्रिलिंग मशीन की साइज 1.25 मिलीमीटर, 1.5 मिलीमीटर और 1.75 मिलीमीटर है. इसे नस के अंदर ले जाते हैं. इसके बाद जिस भी हिस्से में ब्लॉकेज होता है वहां पर ड्रिलिंग मशीन चलाई जाती है. इससे ब्लॉकेज हटाने में एक सेकेंड से भी कम समय लगता है.'
नसों को नहीं पहुंचता नुकसानःप्रो. ओमशंकर बताते हैं, 'जब नसों के अंदर ड्रिल की प्रक्रिया की जाती है उस दौरान ऑपरेशन थिएटर में एक साउंड सुनाई देती है. जैसे ही कोई ब्लॉकेज आता है तो इसका साउंड और तेज हो जाता है. ड्रिल कैल्शियम डिपोजिट को डिटेक्ट करके काटता है. यह नॉर्मल खून की नलियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. इसके बाद यह तय किया जाता है कि स्टंट कहां रखना है. नसों के अंदर हम पूरा 3D व्यू देख सकते हैं. यह भी ध्यान रखना होता है कि स्टंट लगाने के बाद कोई दिक्कत न हो. अगर ऐसा होता है तो फिर से खून का थक्का जमकर नसें बंद हो सकती हैं.'
दोबारा हार्ट अटैक का खतरा रहता है कमः वे बताते हैं, 'मरीज के दिल में ब्लॉकेज आदि का पता लगाने के लिए तीन तरीके से अल्ट्रासाउंड किया जाता है. इसमें 2D इको, आईस और इंट्रा वस्कुलर अल्ट्रासाउंड (IVUS) होता है. IVUS यह खून की नलियों के अंदर घुसकर अल्ट्रासाउंड करता है. इस जांच से पता चलता है कि नसों के अंदर क्या समस्या है. ब्लॉकेज किस तरीके से है. इस जांच के बाद यह लाभ रहता है कि अगर किसी मरीज की इस मशीन से एंजियोप्लास्टी की जाती है तो उसे दोबारा हार्ट अटैक का खतरा कम रहता है. यह बाईपास सर्जरी से अधिक सुरक्षित होता है, क्योंकि बाईपास सर्जरी के बाद भी अकसर लोगों ने अपनी जान हार्ट अटैक के चलते गंवा दी है. जहां छल्ला (स्टंट) लगाया जाता है. वहां सिकुड़न हो जाती है.
ये भी पढ़ेंः BHU वैज्ञानिक कर रहे मानव मस्तिष्क पर शोध, बताएंगे10 दशक बाद भी कैसे करेगा काम?