वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में वैश्विक महामारी भी 450 वर्ष से अधिक पुरानी परंपरा को नहीं तोड़ पायी. जिले के प्रसिद्ध तुलसी घाट पर नाग नथैया का आयोजन हुआ. नाग नथैया के मौके पर वर्ष में एक दिन के लिए काशी नगरी गोकुल बन जाती है और यहां बहने वाली मां गंगा भी यमुना बन जाती हैं. इस साल रोक के बाद भी हजारों लोग वर्षों पुरानी परंपरा के साक्षी बने. इस दौरान हर हर महादेव और जय कन्हैया लाल के जयकारों से भगवान शिव की नगरी गूंज उठी.
विशाल कालिया नाग के फन पर चढ़कर प्रभु श्री कृष्ण ने जल की परिक्रमा करते हुए दर्शन दिया. लीला समिति के सदस्यों के साथ मिलकर माझी समाज के लोगों ने लगभग 12 फीट लंबे नाग को आकार दिया. लीला से ठीक पहले नाग को जल में डूबा दिया गया तो सुरक्षा के लिए एक सुरक्षा दस्ता भी कालिया नाग के पास तैनात था.
डमरू और शंख से गूंज उठा घाट
मात्र कुछ ही क्षणों की इस लीला को देखने के लिए लोग कई घंटों से इंतजार कर रहे थे. जैसे ही भगवान कालिया नाग पर सवार होकर बाहर निकले, हर हर महादेव के नारों से लोगों ने भगवान का स्वागत किया. वहीं डमरू और शंख से पूरा घाट गूंज उठा. भगवान की आरती की गई.
काशी राज परिवार ने निभायी परंपरा
सैकड़ों वर्षो से काशी राज परिवार इस लीला को देखने के लिए आता रहा है. इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए काशीराज परिवार के मुखिया महाराजा अनंत नारायण सिंह नाव पर सवार होकर लीला को देखने आए. संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र ने माला पहनाकर उनका स्वागत किया, जिसके बाद अनंत नारायण सिंह ने गिन्नी (स्वर्ण मुद्रा) भेंट किया.
रोक के बावजूद भी जुटे श्रद्धालु
वैश्विक महामारी के दौर में अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास श्रद्धालुओं से इस बार लक्खा मेले में शामिल न होने की अपील कर रहा था. वहीं कुछ लोगों को पास के माध्यम से सैनिटाइजर और मास्क के साथ ही अनुमति दी गई. उसके बाद भी लोग अपने घरों की छतों से और नाव पर सवार होकर इस लीला का साक्षी बने. जिला प्रशासन ने बैरिकेडिंग करके लोगों को रोकने का प्रयास किया.