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वाराणसी: BHU में मुंशी प्रेमचंद की अंतिम कहानी 'कफन' का मंचन, भावुक हुए दर्शक - kashi hindu university varanasi

यूपी के वाराणसी जिले के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान में नाटक 'ठगिनी क्यों नैना झमकावे' का प्रथम मंचन किया गया. यह नाटक मुंशी प्रेमचंद की अंतिम कहानी कफन पर आधारित है, जिसे मनजीत चतुर्वेदी ने लिखा है.

नाटक में अभिनय करते कलाकार.

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Published : Aug 30, 2019, 2:45 PM IST

वाराणसी: जिले के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान में मुंशी प्रेमचंद की अंतिम कहानी कफन पर आधारित नाटक 'ठगिनी क्यों नैना झमकावे' का प्रथम मंचन किया गया. कलाकारों ने अपने अभिनय से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया. कफन कहानी के सजीव मंचन को देखकर दर्शक भी भावुक हो गए.

बीएचयू में मुंशी प्रेमचंद की अंतिम कहानी कफन का मंचन हुआ.
इन कलाकारों ने किया अभिनय-
'ठगिनी क्यों नैना झुमकावे' इस नाटक के मुख्य कलाकारों में पहली बार अभिनय के क्षेत्र में उतरी पद्मश्री प्रोफेसर सरोज चूड़ामणि गोपाल, रत्नाकर त्रिपाठी, बालमुकुंद त्रिपाठी निशान सिंह रियाज अहमद एवं अर्चना मुख्य भूमिका में रहे.महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद्र की इस कहानी का मंचन आने वाली पीढ़ी को इससे जोड़ने के लिए किया गया. 70 वर्ष बाद भी देश में कुछ नहीं बदला बल्कि रूढ़िवादी बढ़ी है और उनका चेहरा बदल गया है. नाटक के माध्यम से युवाओं को साहित्य और नाटक आकर्षित करना था.
नाटक में गरीब किसान और मानवीकरण की शिकार होते हैं क्योंकि भुजिया का उसका गर्भस्थ शिशु दोनों मृत्यु के शिकार हो जाते हैं. वह कौन से हालात थे जिनके चलते भीष्म और माधव कफन का पैसा बेचकर दारु पी जाते हैं इन सब चीजों का वर्णन किया गया.
दर्शक डॉ. विमल लहरी ने कहा-
वर्तमान स्थिति में कुछ बदला नहीं है, बस परिस्थितियां थोड़ी बदल गई है. आज भी जो कमजोर वर्ग हैं, कुछ इसी तरह घीसू और माधव की तरह अपनी जिंदगी व्ययतीत कर रहे हैं. हम इस नाटक के माध्यम से बच्चों में एक प्रेरणा लाना चाहते हैं कि वे इन हालातों से ऊपर उठे और इस तरह की छुआछूत गरीबी जैसी चीजों को खत्म करने का प्रयास करें.

मुंशी प्रेमचंद्र द्वारा लिखित अंतिम कहानी कफन का यह मंचन हुआ. आज के वास्तविकता के दौर में आज से 70 वर्ष पूर्व मुंशी प्रेमचंद जी ने हमारे बीच प्रस्तुत किया था. उसी का हम लोगों ने यहां पर नाटक के माध्यम से उनको याद किया और लोगों तक उनके महान विचारों को पहुंचाया.
- अरुण श्रीवास्तव, डायरेक्टर, नाटक

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