वाराणसी: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 151वीं जयंती के अवसर पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है. वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बापू का विशेष लगाव रहा है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलनों के एक-एक पल का गवाह है. आज भी बीएचयू के मालवीय भवन में बीएचयू स्थापना से लेकर स्वतंत्रता आंदोलन तक के चित्रों को संजो कर रखा गया है. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में मालवीय भवन के पीछे गांधी चबूतरा है. 21 जनवरी 1942 को गांधीजी ने इसी चबूतरे पर बैठकर संध्या वंदन किया था.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बापू का था खास लगाव - 2 october
आज पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उनकी 151वीं जयंती पर याद कर रहा है. बापू का काशी से गहरा लगाव था. वे अपने जीवनकाल में 11 बार काशी आए थे. आज भी बीएचयू के मालवीय भवन में बापू के चित्रों को संजो कर रखा गया है.
संस्थान ने भारत के कई विभूतियों के चित्र संजोकर रखे हैं, जिसमें एनी बेसेंट, जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन सहित तमाम विभूतियों के चित्र संरक्षित हैं. प्रोफेसर उपेंद्र कुमार त्रिपाठी ने बताया कि महामना और बापू का बहुत ही निकटतम संबंध रहा है. यही वजह रही कि बापू हमेशा कहते थे कि मैं महामना का एक पुजारी हूं. बापू अपने पूरे जीवन काल में 11 बार बनारस आए, जिसमें चार बार वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे.
बीएचयू की स्थापना समारोह में शामिल हुए थे बापू
महात्मा गांधी 1903 में पहली बार बनारस आए थे. इस दौरान उन्होंने काशी विश्वनाथ के दर्शन किए. उसके बाद महात्मा गांधी ने दूसरी यात्रा 3 फरवरी 1916 को बसंत पंचमी के अवसर पर की थी. आखिरी बार बापू 21 जनवरी 1942 को बीएचयू के रजत समारोह में शामिल हुए थे.
अहिंसा और सत्य को अपने जीवन में उतारा
प्रोफेसर उपेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि बापू ने अहिंसा और सत्य को अपने जीवन में उतारा. अपने आदर्शों से बापू ने पूरे विश्व को प्रभावित किया. बापू की अनेक स्मृतियां आज भी बीएचयू में मौजूद हैं.