वाराणसी में वाटर लॉस कम करने की योजना पर संवाददाता गोपाल मिश्रा की खास रिपोर्ट वाराणसी:भारत और जापान के रिश्ते हमेशा से बड़े अच्छे माने जाते हैं. जापान और भारत की दोस्ती की मिसाल और भी देशों को दी जाती है. दोनों देश की दोस्ती का सबसे मजबूत स्तंभ बनारस को माना जाता है. क्योंकि, जापान के सहयोग से बनारस में बहुत से काम को पूरा किया जा रहा है. पीएम मोदी के बनारस से जीतने के बाद रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर के रूप में भारत और जापान की दोस्ती की सबसे बड़ी मिसाल को स्थापित किया गया.
इसकी आज भी चर्चा हर तरफ है. लेकिन, अब भारत के साथ मिलकर जापान बनारस में एनआरडब्ल्यू यानी नॉन रेवेन्यू वाटर जिसे वेस्ट वाटर के रूप में जाना जाता है उसे कम करने के प्रयास शुरू करने जा रहा है. इसके लिए जापान की तकनीक का इस्तेमाल बनारस में जलकल विभाग करके वाटर लॉस की समस्या को खत्म करने पर काम करेगा.
जापान बनारस की कैसे करेगा मदद दरअसल, मई में जलकल वाराणसी के अधिकारियों का एक ग्रुप जापान दौरे पर गया था. वहां दो तीन अलग-अलग चीजों पर सर्वे करना था. इस बारे में जलकल के जीएम रघुवेंद्र कुमार ने बताया कि जापान के सहयोग से वाराणसी में कंप्रिहेंसिव इंप्रूवमेंट ऑफ सैनिटेशन एनवायरनमेंट काम हो रहा है. इसके तहत पर्यावरण प्रदूषण को सुधारने के लिए वाटर सप्लाई, सीवर और वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर काम करने जा रहे हैं. उसके लिए जापान की तकनीक की मदद ली जाएगी. इसमें पहला काम वाटर सप्लाई व दूसरा यूज्ड वाटर व तीसरा सीवर का है.
उन्होंने बताया की जो टीम वाराणसी से गई थी, वह वाटर सप्लाई और सीवर सैनिटेशन के संदर्भ में गई थी, इसमें जो हमारा एनआरडब्ल्यू यानी नॉन रेवेन्यू वाटर है वह जापान की तुलना में 10 गुना से भी ज्यादा है. जापान में वह लगभग 3 परसेंट है, जबकि वाराणसी में यह 42% है. यह बहुत बड़ा अंतर है. इसलिए जापान की टेक्नोलॉजी का यूज करके अपने इस लॉस को कवर करना है. इसके लिए जापान हमसे तकनीक को साझा करने जा रहा है. उसी पद्धति को अपनाकर हम वाराणसी में वाटर लॉस और रेवेन्यू लॉस की समस्या को कम करने की तैयारी में हैं.
जीएम जलकल ने बताया की एनआरडब्ल्यू रिडक्शन के लिए हमने कोनिया वार्ड को चयनित किया है. वहां पर मीटर लगाए जा रहे हैं. इसकी स्टडी चल रही है, जो डिडक्शन इक्यूवमेंट मंगवाए गए हैं, उनके जरिए हम रात के वक्त लीकेज की समस्याओं का पता लगवाने का काम कर रहे हैं और रिपेयरिंग का काम किया जा रहा है. बेसलाइन सर्वे हो चुका है, अब वाटर बैलेंस का सर्वे चल रहा है. जिसके जरिए पता लगा रहे हैं कि कितने कितने पर्सेंट वाटर कहां-कहां से हो किस-किस तरीके से लीक कर रहा है. इसका पता हमारी टीम लगा रही है.
जीएम के मुताबिक जापान में पब्लिक अवेयरनेस ज्यादा है. कोई भी वाटर सप्लाई बिना मीटर के नहीं की जाती और जो लीकेज है उसे रोकने के लिए वह सड़क और कॉलोनियों में जाते हैं और एक सेक्टर बनाकर डिडक्शन यूनिट की मदद से रिपेयरिंग चालू रखते हैं. जापान में यह काम रोज चलता है, जिससे वाटर लॉस की समस्या बेहद कम है और वहां जो भी वाशबेसिन से लेकर सरकारी कार्यालयों या अन्य जगहों पर लगाए गए हैं, वह सेंसरयुक्त हैं, जो 20 सेकंड के लिए ही पानी देती हैं. वहां पानी बचाने के उद्देश्य से इस तरह की चीजें की जा रही है जो काफी कारगर है. इन्हीं तरीकों को हमें भी यहां आजमाना होगा.
ये भी पढ़ेंः गली-गली खुल रहे चाय सुट्टा बार, दिखा रहे धूम्रपान निषेध नियम को ठेंगा, इन्हें क्यों नहीं रोकता प्रशासन