वाराणसी: वैसे तो दीपावली का पर्व खत्म हो चुका है. हर कोई दीपावली के इंतजार में लंबे वक्त तक रहता है और त्यौहार खत्म होने के बाद लोग यह भूल जाते हैं कि प्रकाश उत्सव सिर्फ दीपावली ही नहीं बल्कि काशी के लिए देव दीपावली को भी कहा जाता है. शायद यही वजह है कि देव दीपावली अब सिर्फ काशी में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक उत्सव के रूप में पहचान बना चुकी है.
इस बार देव दीपावली का पर्व 19 नवंबर को वाराणसी में मनाया जाना है, लेकिन क्या आपको पता है काशी में मनाई जाने वाली देव दीपावली कैसे शुरू हुई, सबसे पहले वाराणसी में देव दीपावली का उत्सव किस घाट पर मनाया गया और इस पर्व को क्यों काशी में ही मनाया जाता है, तो आइए हम बताते हैं, आपको काशी के इस महापर्व से जुड़ी कुछ रोचक बातें.
1785 में एक स्तंभ से हुई शुरुआत
दरअसल वाराणसी के पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता है. पंडित और ज्योतिषियों की मानें तो वाराणसी में देव दीपावली के शुरुआत वैसे तो पुराणों में भगवान शिव की कथा से जुड़ी है लेकिन घाटों पर जलाए जाने वाले दीपक की कहानी पंचगंगा घाट से जुड़ी है. बताया जाता है कि 1785 ईसवी में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पंचगंगा घाट पर ही पत्थर से बनाए गए हजारा स्तंभ दीपक की लंबी श्रृंखला को जलाकर काशी में देव दीपावली उत्सव की शुरुआत की थी.
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प्रयागराज में भी देव दीपावली का भव्य रुप
प्रयागराज में भी देव दीपावली बड़े भव्य रुप में मानाई जाती है. बता दें कि शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहते हैं. इस साल 19 नवंबर 2021 दिन शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा दिन गंगा स्नान, दीपदान, यज्ञ और ईश्वर की उपासना का वशेष महत्व माना जाता है. इस दिन किए जाने वाले दान-पुण्य समेत कई धार्मिक कार्य विशेष फलदायी होते हैं. कार्तिक पूर्णिमा को लेकर शुभ मुहुर्त, मान्यताएं और पूजा विधि के बारे में ज्योतिषाचार्य शिप्रा सचदेव ने खास बातें ईटीवी भारत को बताई हैं जिनका लाभ आप भी लें.
इन चीजों का करें दान
मान्यता है कि इस दिन अन्न, दूध, फल, चावल, तिल और आवंला दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. शाम के समय जल में थोड़ा कच्चा दूध, चावल और चीनी मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने से चंद्रमा की कृपा बनी रहती है. लक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए इस दिन पीपल के पेड़ पर जल में मीठा दूध मिलाकर चढ़ाना चाहिए.
क्या न करें कार्तिक पूर्णिमा
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ध्यान रखें मांस, मदिरा, अंडा, प्याज, लहसुन आदि का सेवन भूलकर भी न करें. इस दिन चंद्रदेव की कृपा पाने के लिए ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें. इस दिन भूमि पर ही शयन करें.
सूर्योदय से पूर्व स्नान
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी या घाट पर स्नान करने का विशेष महत्व है. इस दिन सभी देवी-देवता कार्तिक पूर्णिमा पर पुष्कर में स्नान करते हैं. इसलिए इस दिन देव दिवाली भी मनाई जाती है. इस दिन स्नान का उत्तम समय सूर्योदय से पूर्व तारों की छांव में माना गया है. कार्तिक पूर्णिमा पर विधिवत स्न्नान करने से भगवान विष्णु की कृपा हमेशा बनी रहती.
वृषभ राशि में चंद्र और राहु की युति बन रही है. वृश्चिक राशि में सूर्य केतु की युक्ति बन रही है और तुला राशि में मंगल और बुध की युक्ति बन रही है, जो अति शुभ है. कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा वर्षभर की पवित्र पूर्णमासियों में से एक है. इस दिन किये जाने वाले दान-पुण्य के कार्य विशेष फलदायी होते हैं. त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पुनर्जन्म का कष्ट नहीं होता है.
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