वाराणसी: बनारस की ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है. कभी किसी रूट पर ई-रिक्शा प्रतिबंधित किया जा रहा है, तो कहीं ऑटो के रूट को निर्धारित किया जा रहा है. लेकिन इन सब के बाद भी शहर की ट्रैफिक व्यवस्था पटरी पर नहीं आ रही है. इसकके लिए जिम्मेदार कौन है? यह सवाल भी बड़ा है, क्योंकि जिस तरह से व्यवस्था को सुधारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इनीशिएटिव लिया और उन्होंने जो सपना देखा वह ना ही आज तक पूरा हुआ है और न ही उनके किए गए प्रयासों को प्रशासनिक स्तर पर फलीभूत किया जा सका है.
इसकी बड़ी वजह यह है कि 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान ही बनारस को ट्रैफिक जाम से मुक्ति दिलाने के लिए पैडल रिक्शा की जगह ई रिक्शा को सड़क पर उतारा था. धीमी-धीमी गति से चलने वाले पैडल रिक्शा की जगह ई रिक्शा सड़क पर आए और जाम से निजात मिलने के साथ लोगों को बेहतर सवारी का आनंद मिले, लेकिन ई रिक्शा की तो सड़क पर भरमार हो ही गई और पैडल रिक्शा भी अब तक सड़क पर ही बने हुए हैं. हालात ये है कि नगर निगम को इन पैडल रिक्शों को हटाने की जिम्मेदारी मिली, लेकिन अब तक नगर निगम अपने को बढ़ाने के चक्कर में इनके लाइसेंस के बल पर ही जोर दे रहा है. इसकी वजह से इन रिक्शों को हटाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है.
दरअसल, वाराणसी में ट्रैफिक जाम की समस्या का कोई निराकरण हो ही नहीं रहा. इसे लेकर लगातार प्लानिंग पर प्राणी बन रही है, लेकिन ट्रैफिक व्यवस्था ध्वस्त होती जा रही है. सबसे बड़ी बात यह है कि 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ट्रैफिक व्यवस्था को दुरुस्त करने के साथ शहर से पुराने पैडल रिक्शा को हटाने के लिए 1,000 ई रिक्शों का वितरण किया और इसके बाद बनारस में बैटरी रिक्शों की तो बाढ़ आ गई.