वाराणसी: काशी के दशाश्वमेध घाट पर होने वाली विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती दुनियाभर में प्रख्यात है, जो कोरोना काल की वजह से अब सिमट कर रह गई है. जहां पहले गंगा आरती में श्रद्धालुओं की भारी संख्या के बीच सात अर्चकों के द्वारा भव्य गंगा आरती का आयोजन किया जाता था, वहीं अब यह सूने घाट और एक अर्चक के साथ ही गंगा आरती हो रही है. ऐसे में परंपरा का निर्वाहन करने के लिए गंगा आरती सांकेतिक रूप में सम्पन्न हो रही है.
एक अर्चक के साथ सांकेतिक हो रही काशी की गंगा आरती 1991 से चली आ रही परंपराकाशी के पुरोहित और गंगा सेवा निधि संस्था के संस्थापक स्व. पं सत्येंद्र मिश्र ने मां गंगा को समर्पित इस गंगा आरती की शुरुआत की थी. तभी से प्रतिदिन परम्परानुसार ये गंगा आरती की जाती है. काशी के दशाश्वमेध घाट पर होने वाली ये गंगा आरती दुनिया भर में सुप्रसिद्ध है. इस गंगा आरती में मंत्रमुग्ध होने के लिए देशी-विदेशी पर्यटकों का तांता लगा रहता है. कई देशों के लोग इस गंगा आरती की यादों को कैमरे में कैद कर ले जाते हैं और इसका आनंद प्राप्त करते हैं.
काशी के दशाश्वमेध घाट पर होने वाली विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती दुनियाभर में प्रख्यात है, जो कोरोना काल की वजह से अब सिमट कर रह गई है. पिछले कोरोना काल में 8 महीनें तक प्रभावित हुई थी गंगा आरतीगंगा आरती का स्वरूप सांकेतिक होने के सम्बंध में संस्था गंगा सेवा निधि के सदस्य हनुमान यादव ने बताया कि कोरोना महामारी की वजह से गंगा आरती के स्वरूप को सांकेतिक कर दिया गया है. बिना श्रद्धालुओं के ही सिर्फ एक अर्चक के द्वारा गंगा आरती संपन्न कराई जा रही है. उन्होंने बताया कि कोरोना की दूसरी जानलेवा लहर के कारण 8 अप्रैल से सांकेतिक रूप में गंगा आरती हो रही है. उन्होंने श्रद्धालुओं से अपील करते हुए कहा कि सभी लोग घरों पर ही रहकर मां गंगा की आराधना करें और इस महामारी के दौर में खुद का और अपने परिवार का ख्याल रखें.