वाराणासी: काशी में गंगा संग प्रवाह करेंगी दूसरी गंगा. जी हां यदि यह कहे तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है. क्योंकि काशी के ऐतिहासिक चंद्राकार घाटों को बचाने के लिए सरकार की ओर से एक नई योजना का संचालन किया जा रहा है. जिसके तहत गंगा उस पार गंगा के समक्ष एक नई गंगा यानी कि नई नहर का निर्माण किया जा रहा है. हालांकि योगी सरकार के इस एक्शन प्लान को लेकर गंगा वैज्ञानिकों ने अपना एतराज जाहिर किया है. उनका कहना है कि काशी की खूबसूरती को बचाने के लिए चलाई जा रही है यह योजना काशी के लिए काल साबित हो जाएगी. इससे काशी का अर्थ चंद्राकार स्वरूप नष्ट हो जाएगा और गंगा का प्रवाह भी बदल जाएगा.
काशी में सीएम योगी का नया एक्शन प्लान बनाया जा रहा है 5 किलोमीटर लंबा और 45 मीटर चौड़ा चैनल वाराणासी कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने बताया कि सामने घाट से लेकर राजघाट तक गंगा पार रेती पर 11.95 करोड़ की लागत से ड्रेजिंग कर 5.3 किलोमीटर लंबी और करीब 45 मीटर चौड़ी कैनाल को विकसित किया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट में खर्च होने वाली रकम का करीब 40 से 50 प्रतिशत पैसा बालू के नीलामी से अर्जित किया जाएगा. उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट से घाटों को कटान से बचाया जा सकेगा. ताप्ती गंगा के उस पार रेत में आइलैंड जैसा विकास किया जाएगा, जिससे पर्यटक कुछ और दिन काशी में रुक सकें. उन्होंने बताया कि अस्सी घाट के दूसरी तरफ रामनगर में रेती पर बीच जैसा माहौल बनाया जाएगा और टापू को विकसित कर सैलानियों के लिए तैयार किया जाएगा. पर्यटन विभाग, आईलैंड में पैराग्लाइडिंग, स्कूबा डाइव वन एक्टिविटी संबंधित से सम्बंधित सुविधाएं पहुचायेगा.
बाढ़ आने पर जलमग्न हो जाएगी सारी नहर
वहीं गंगा घाट पर रहने वाले मांझी समुदाय के मांझी गोरख बताते हैं कि गंगा बाढ़ के समय अपने भयावह स्वरूप में होती हैं. ऐसे में गंगा जब अपने उफान पर होंगी तो जो यह नहर बनाई जा रही है वह पूरी तरीके से जल मग्न हो जाएगी और इस नहर पर किया जाने वाला करोड़ों रुपए का खर्च व्यर्थ हो जाएगा. उन्होंने कहा कि और यदि यह नहर सक्सेस हो जाती हैं, तो काशी में गंगा का स्वरूप अर्धचंद्राकार से बदलकर दूसरे आकार में हो जाएगा.
गंगा के लिए घातक है ये नहर
बीएचयू आईआईटी के प्रोफेसर यूके चौधरी ने कहा कि ललिता घाट पर गंगा में मध्य में जो बांध बनाया जा रहा है जिसके कारण मिट्टी जमा हो रही है. उसके कारण गंगा घाटों के नीचे जो कटाव क्षेत्र उत्पन्न हुआ है वह भी भूजल के तीव्रता से रिसाव के कारण हुआ है. समय-समय पर उस कटाव को भरने की जरूरत होगी. उसकी वजह से सेगमेंटेशन होगा और गंगा के प्रवाहित होने का का स्वरूप भी बदल जाएगा. उन्होंने कहा कि भूत में 80 नदियों का जो हाल हुआ भविष्य में वही गंगा का भी हाल होगा. गंगा ललिता घाट के बाद से दूसरे प्रारूप में प्रवाहित होंगे.
उन्होंने कहा कि इसके साथ ही यदि गंगा पार रेत पर नहर को आकार दिया गया तो यह काशी के अनादिकाल से अर्धचंद्राकार स्वरूप में प्रवाहित हो रही गंगा के लिए घातक हो जाएगा. उन्होंने कहा कि कछुआ सेंचुरी हटाए जाने के बाद गंगा के समान नहर को आकार देना पूरी तरीके से अवैज्ञानिक है. गंगा उस पार उन्नतोदर किनारा बालू जमाव का क्षेत्र है. केंद्रापसारी बल के कारण उत्पन्न होने वाली घुमाव शक्ति के प्रभाव से इस पार बालू जमा होता है. गंगा अपनी प्रकृति के अनुसार जब प्रभावित होंगी तो क्षेत्र में बालू का जमा होना भी स्वाभाविक है. ऐसे में करोड़ों रुपए खर्च करके जो नहर बनाई जा रही है, भविष्य में बालू से भर जाना तय है और भविष्य में यह नहर कई समस्याओं को जन्म देगी.
पीएम सीएम को पत्र लिखकर दी है चेतावनी
प्रोफेसर चौधरी ने कहा कि सरकार ने गंगा में बांध तैयार करने व गंगा उस पार नहर बनाने को लेकर के कोई वैज्ञानिक सलाह नहीं ली. उन्हें वैज्ञानिक सलाह लेनी चाहिए थी. इसलिए उन्होंने चिट्ठी लिखकर के प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को चेताया भी कि गंगा के साथ खिलवाड़ न करें, क्योंकि भविष्य में लहर गंगा के लिए काल बन जाएगी. उन्होंने सरकार से यह अपील की है कि एक बार वैज्ञानिक तर्क को ध्यान में रखते हुए काशी में इस तरीके की योजना का संचालन किया जाए.