वाराणसी: कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती बस सिखाने वाला मिलना चाहिए. जब सिखाने वाला उम्र की परवाह किए बिना सामने वाले को ज्ञान देने को तैयार हो तो फिर उम्र के अंतिम पड़ाव में भी बहुत कुछ सीख मिल जाती है. ऐसा ही नजारा वाराणसी स्थित भुल्लनपुर गांव में देखने को मिल रहा है. यहां पर कल तक अंगूठा छाप का टैग लेकर लोगों के बीच अनपढ़ गवार कहलाने वाली वह वृद्ध महिलाएं अब अपने हाथों से हस्ताक्षर करना सीख गई हैं, जो कल तक हाथों में पेन भी नहीं पकड़ पाती थीं. सबसे बड़ी बात यह है कि यह प्रयास इसी गांव की रहने वाली बीना सिंह की वजह से सफल हो सका है. आज बीना की पाठशाला में 50 साल पर लेकर 95 साल तक की वृद्ध महिलाएं ककहरा पढ़कर जीवन के अंतिम समय में अपने ऊपर लगे अनपढ़ के धब्बे को हटाने में जुटी हैं.
दरअसल, भुल्लनपुर गांव की रहने वाली बीना सिंह जब शादी होने के बाद गांव आईं तो महिलाओं के कम पढ़ा लिखा होने का दर्द उनको परेशान करने लगा. बीना खुद पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ ही प्रोफेशनल कोर्स भी कर चुकी हैं. इसलिए, उन्हें महिलाओं के शिक्षित होने की जरूरत का अंदाजा है. वृद्ध महिलाओं की इस तकलीफ को देखकर उन्होंने अनपढ़ वृद्ध माताओं की एक टीम तैयार करनी शुरू की. गांव-गांव घूम कर घर-घर जाकर वृद्ध महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. अपने ही घर के एक कमरे से वृद्ध माताओं की पाठशाला शुरू की. देखते ही देखते संख्या 5 से 50 और 50 से 65 हो गई. वर्तमान समय में यहां पर हर रोज शाम को 2 घंटे की क्लास लगा करती है. 7 सालों से बीना सिंह वृद्ध महिलाओं को शिक्षित करने के लिए आइडियल वूमेन वेलफेयर सोसाइटी के साथ मिलकर काम कर रही हैं. बीना की मुहिम पति गार्गी सिंह, बिहार की रहने वाली राखी रानी, सुरेश सिंह सहित अन्य लोग सहयोग करते रहते हैं.
शांति की ही तरह यहां पर और भी बहुत सी महिलाएं हैं जो पूरा दिन अपने घर के कामकाज को खत्म करके समय से अपने इस खास पाठशाला में पहुंच जाती हैं. हाथों में कॉपी, पेंसिल स्लेट और किताबें लेकर क, ख, ग, घ ए, बी, सी, डी पढ़ने वाली यह महिलाएं निश्चित तौर पर आज के बदलते सामाजिक परिवेश की सबसे बड़ी मिसाल हैं. यह भी साफ करता है कि यदि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो उम्र कभी भी आड़े नहीं आती.