वाराणसी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित चिकित्सा विज्ञान संस्थान के चिकित्सकों की एक टीम ने थोरेसिक एमपाइमा रोगियों पर सर्जरी के नतीजों के बारे में अपनी तरह का पहला शोध किया है.ये शोध कार्डियो थोरेसिक एंड वैस्क्युलर सर्जरी विभाग के प्रो. सिद्धार्थ लखोटिया एवं डॉ. नरेन्द्र नाथ और रेडियोडायग्नोसिस विभाग के प्रो. आशीष वर्मा ने अक्टूबर 2016 से अगस्त 2018 के बीच किया है.
इस शोध में पाया गया कि जिन मामलों में सीईसीटी थोरेक्स में रोगी फेफड़े का अप्रभावित भाग 59 प्रतिशत या उससे अधिक था, उन मामलों में सर्जरी के बाद पूर्व अवस्था और स्वस्थ स्थिति में लौटने की संभावना अच्छी है. ये अध्ययन इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अब तक इस तरह के सभी मामलों में सर्जरी की जाती थी, लेकिन यह शोध विशेष मामलों में वैकल्पिक इलाज सुझाता है.
यह भी पढ़े: प्रदूषण के कारण लोग टाल रहे नॉर्मल सर्जरी, हो रहीं परेशानियां
क्या है रोग
दरअसल, थोरेसिक एमपाइमा छाती के अन्दर पस यानि मवाद इकट्ठा होने की स्थिति को कहते हैं. ऐसा होने पर चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता होती है और स्थिति गंभीर हो तो सर्जरी करनी पड़ती है. इस अध्ययन में एमपाइमा से पीड़ित रोगियों पर सर्जरी के परिणामों और सर्जरी से पहले उनके विभिन्न पैरामीटर (मानक) का तुलनात्मक अध्ययन किया गया. जिससे यह पता लगाया गया कि जिन मामलों में सर्जरी लाभकारी नहीं है, उनके लिए पहले ही वैकल्पिक इलाज सुझाया जा सके.
अध्ययन के दौरान ये पाया गया कि सर्जरी से पूर्व रोगी फेफड़े के अप्रभावित भाग एवं अन्य मानकों (झिल्ली व मवाद हटाने की प्रक्रिया का पूरा होना, सर्जरी से पूर्व फेफड़े में एयर लीक की उपस्थिति या अनुपस्थिति) से सर्जरी के नतीजे का पता लगाया जा सकता है.
अप्रभावित फेफड़े की मात्रा के बारे में सीईसीटी थोरैक्स (सीटी मोर्फोमेट्री – एमपाइमा, फेफड़ा, पाइमिक झिल्ली को मापने की प्रक्रिया) से पता लगाया जा सकता है. अध्ययन के दौरान ये पाया गया कि रोगी फेफड़े के अप्रभावित भाग (जिसे दूसरी तरफ के सामान्य फेफड़े के प्रतिशत के रूप में दर्शाया गया है) ने फेफड़े का पूर्ण विस्तार 71% संवेदनशीलता एवं 70% विशिष्टता के साथ प्रदर्शित किया. ये अध्ययन इंडियन जर्नल ऑफ थोरेसिक एंड कार्डियोवैस्क्युलर सर्जरी में प्रकाशित हुआ है.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप