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प्राण प्रतिष्ठा से पहले भगवान राम का होगा औषधियों से स्नान, पढ़ें पूरे पांच दिन की पूजा विधि

Ram Temple Inauguration: काशी के विद्वान लक्ष्मी कांत दीक्षित के बेटे सुनील लक्ष्मी कांत ने औषधि स्नान की विधि के बारे में ईटीवी को बताया. साथ ही यह भी बताया कि यह स्नान क्यों कराया जाता है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 19, 2023, 5:55 PM IST

अयोध्या में भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा पूजन की विधि पर संवाददाता प्रतिमा तिवारी की खास रिपोर्ट.

प्रयागराज: अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा से पहले 18 जनवरी को मुख्य पूजा शुरू होगी. इस पूजन प्रक्रिया में पूरे देश से 150 से अधिक विद्वान शामिल हो रहे हैं. इसमें काशी के लक्ष्मी कांत दीक्षित और उनके बेटे सुनील लक्ष्मी कांत भी शामिल होंगे. लक्ष्मीकांत दीक्षित का कहना है कि प्राण प्रतिष्ठा से पहले भगवान रामचंद्र को औषधियों का स्नान कराया जाएगा.

इसके पीछे धारणा यह है कि मूर्ति निर्माण करते समय स्पर्श समेत कई अन्य दोष हो जाते हैं. जिनके निवारण के लिए औषधियों से स्नान कराया जाता है. इस दौरान जिस जल का प्रयोग किया जाएगा, वह देशभर के महत्वपूर्ण तीर्थों का जल होगा. इसमें सप्तसागर का भी जल शामिल होगा. इस स्नान के बाद रामलला को विराजमान किया जाएगा.

इन औषधियों से होगा भगवान राम का स्नान.

अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होनी है. वह दिन बहुत ही नजदीक है, जिसका इंतजार 500 साल से चला आ रहा था. रामलला अब अपने मंदिर में विराजमान होंगे. उनका मंदिर अयोध्या में भव्य और विराट महल की तरह बनकर तैयार हो रहा है, जिसको भक्तों के दर्शन के लिए 22 जनवरी से खोल दिया जाएगा. हालांकि मंदिर निर्माण का कार्य लगतार चलता रहेगा. जिस दिन से पूजा-पाठ का कार्यक्रम शुरू होगा, उस दिन से इस प्रक्रिया में देशभर से 150 से अधिक पंडित-विद्वान इसमें शामिल रहेंगे. इन्हीं लोगों का प्रतिनिधित्व काशी के लक्ष्मी कांत दीक्षित और उनके पुत्र सुनील लक्ष्मी कांत दीक्षित कर रहे हैं.

अलग-अलग तीर्थों से लाया जाएगा जलः सुनील लक्ष्मी कांत दीक्षित बताते हैं, 'हम लोगों को वनस्पतियां-औषधियां प्रकृति ने दी हैं. उन औषधियों का सेवन करने से, उन औषधियों को लगाने से हमारा शरीर निरोगी होता है. मूर्ति का निर्माण करते समय जो स्पर्श दोष होता है और जो अन्य दोष होते हैं उनके निवारण के लिए औषधियों का लेपन किया जाता है. औषधियों से स्नान कराया जाता है. मंगल तीर्थों के जल से स्नान कराया जाता है. मंत्रों से अभिमंत्रित जल और औषधियों से स्नान कराया जाता है. इसमें अलग-अलग तीर्थों के जल शामिल होते हैं, जिसमें मानसरोवर का जल, सप्तसागर के जल के साथ ही सभी स्थानों से जल लाया जाता है.'

काशी के विद्वान लक्ष्मी कांत दीक्षित और उनके बेटे सुनील लक्ष्मी कांत

इन औषधियों से भगवान का होगा स्नानः वे बताते हैं, 'अखंड भारत वर्ष में, पूरे विश्व में जितने भी महत्वपूर्ण तीर्थ हैं उन सभी के जल से भगवान रामचंद्र का स्नान होगा. अगर औषधियों की बात करें तो हमारे यहां शतावरी होती है, सुगंधबाला, गुरुच, वचा, हिरद्रा, आंवले का चूर्ण, अश्वगंधा होने के साथ ही कई तरह की औषधियों को इसमें शामिल किया जाता है. इन सभी का चूर्ण बनाकर और जल में मिलाकर के उस जल से भगवान का स्नान कराया जाता है. उन्होंने पूजा के दौरान कलश यात्रा के बारे में भी बात की. सुनील लक्ष्मी कांत दीक्षित ने बताया कि, हम जब भी कोई मंगल कार्य करते हैं, आपने देखा होगा कि कहीं भी भागवत का कार्यक्रम होता है या फिर बडे़-बड़े यज्ञ होते हैं तो उसमें सबसे पहले हम अपनी नदी का, तीर्थ का पूजन करते हैं.'

महापंडित गागाभट्ट के परिवार से हैं पंडित लक्ष्मीकांतः काशी के पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित उस परिवार से हैं, जिन्होंने छत्रपति महाराज शिवाजी का राज्याभिषेक कराया था. जी हां, पंडित लक्ष्मीकांत गागाभट्ट के परिवार से हैं. बता दें कि लगभग 350 वर्ष पहले छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक काशी के महापंडित गागाभट्ट ने ही कराया था. और आज उनका परिवार इस परंपरा को निभाते हुए राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन में शामिल हो रहा है और मुख्य पुजारी की भूमिका का निर्वहन कर रहा है. लक्ष्मी कांत दीक्षित और उनके पुत्र सुनील लक्ष्मी कांत दीक्षित अयोध्या जा रहे विद्वानों का प्रतिनिधित्व करने वाले हैं. ऐसे में काशी का नाम भी उनके साथ इस परंपरा के निर्वहन में जा रहा है.

काशी के लोग कर रहे परंपरा का विर्वहनः बता दें कि काशी का अपना प्रमुख स्थान है. काशी धर्म की नगरी है. यहां विद्वान और संत देश के साथ-साथ विदेश में प्रमुख पूजा-पाठ के कार्यक्रमों शामिल होते हैं. उन्हें अलग-अलग बड़े आयोजनों के लिए आमंत्रित किया जाता है. काशी ऐसे तमाम परिवार हैं जो इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. उन्हें वेदों और शास्त्रों का पूरा ज्ञान होने के साथ ही पूजा-पाठ की परंपरा की भी अच्छी जानकारी है. ऐसे में कुछ परिवार वे भी हैं जो अपने पूर्वजों की इस परंपरा का विर्वहन करते आ रहे हैं, जिनमें से लक्ष्मी कांत दीक्षिक का परिवार भी है. काशी में विदेशों से लोग सनातन संस्कृति की शिक्षा प्राप्त करने और यहां के धर्मों पर शोध करने के लिए भी आते रहते हैं.

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