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आदेश की लेट-लतीफी में फंस गए रावण, कुंभकरण और मेघनाथ, मंच पर नहीं आए रघुनाथ

नवरात्रि खत्म होने के साथ ही अब दशहरे को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं. देश भर में दशहरे को लेकर इस बार धूम दिखाई दे रही है, लेकिन धर्म की नगरी वाराणसी में लेट-लतीफी के चक्कर में रावण, कुंभकरण और मेघनाथ का वध नहीं होगा.

बनारस लोकोमोटिव वर्कशॉप.
बनारस लोकोमोटिव वर्कशॉप.

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Published : Oct 13, 2021, 5:07 PM IST

वाराणसीःजिले में लगभग 57 साल पुरानी बनारस लोकोमोटिव वर्कशॉप की प्रसिद्ध रामलीला में इस बार रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतलों का दहन नहीं किया जाएगा. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कोविड-19 के तहत त्योहारों को लेकर जारी हुई गाइडलाइंस में हुई देरी की वजह से आयोजन समिति ने इस बार भी रावण दहन के कार्यक्रम को कैंसिल कर दिया है. बनारस लोकोमोटिव वर्कशॉप के मैदान में 80 फीट लंबे रावण के पुतले 75 फीट ऊंचे कुंभकरण के पुतले और 65 फीट ऊंचे मेघनाथ के पुतले का दहन किया जाता था, लेकिन रामलीला समिति ने इस बार भी आयोजन को रद्द करने का फैसला किया है.

दशहरा समिति के निदेशक और इस आयोजन समिति की बीते लंबे वक्त से कमान संभालने वाले एसडी सिंह का कहना है कि आयोजन को लेकर देरी से आए आदेश की वजह से पुतलों को तैयार नहीं किया गया. क्योंकि एक पुतले को तैयार करने में 1 महीने से ज्यादा का वक्त लगता है. तीनों पुतलों को तैयार करने में 2 महीने का वक्त लग जाता है. तीनों पुतलों को बनाने में 2 लाख से ज्यादा का खर्च होता है. जिसमें 2 क्विंटल कागज, लगभग 30 लीटर पेंट, मैदे की लेई और 100 से ज्यादा लंबे बांस का उपयोग किया जाता है, लेकिन इस बार का आयोजन नहीं हो रहा है. जिसकी वजह से आयोजन समिति के लोगों में भी काफी मायूसी है.

वाराणसी रामलीला.

1964 से हो रहा आयोजन

आयोजन समिति के लोगों का कहना है कि यह दशहरा मेला अपने आप में पूरे विश्व में अनोखा माना जाता है. बनारस लोकोमोटिव वर्कशॉप 1964 से इस से इस परंपरा का निर्वहन करता आ रहा है. काशी में इस मेले को लक्खा मेले के रूप में जाना जाता है. क्योंकि यहां लाखों की भीड़ होती है.

सबसे बड़ी बात यह है कि पूरे विश्व में इकलौता यह मंच है. जहां पर महज ढाई घंटे के अंदर भगवान राम से जुड़े समस्त लीलाओं का शॉर्ट में मंचन किया जाता है. कलाकारों के द्वारा मंचन की यह प्रक्रिया ढाई घंटे में पूरी करते हुए भगवान राम के जन्म से लेकर रावण वध तक के प्रसंग को पूरी तरह से दर्शाया जाता है, लेकिन इस बार आयोजन नहीं हो रहा है. सिर्फ संगीतमय रामायण का पाठ किया जा रहा है.

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दशहरे के मौके पर भी संगीतमय रामायण के पाठ के साथ, इस पूरे 8 दिन के आयोजन का समापन किया जाएगा. आयोजन समिति के लोगों का कहना है कि 57 साल पुरानी इस परंपरा का न होना निश्चित तौर पर काशी के लोगों के लिए काफी निराशाजनक होगा, लेकिन कोविड-19 की तीसरी लहर की संभावनाओं के बीच इतनी भीड़ जुटाना भी संभव नहीं था और उचित भी नहीं. यही वजह है कि इस कार्यक्रम को रद्द किया गया है.

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