वाराणसी:प्रदेश में नगर निकाय चुनाव के पहले चरण का मतदान 4 मई को होगा. चुनाव को देखते हुए हर राजनीतिक दल अपनी जीत के लिए पूरी ताकत झोंक रहा है. हर क्षेत्र में किए गए कामों के बल पर बीजेपी विकास की दावा करते हुए बड़ी पारी खेलने की तैयारी कर रही है. वहीं, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी समते अन्य दल अपने अपने हिसाब से मतदातोओं को अपने पाले में करने में लगे हुए हैं. लेकिन, इन सभी दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती उन इलाकों को लेकर है, जिनको ग्राम पंचायत से हटाकर अब नगर निगम की सीमा में शामिल किया गया है.
तीन साल से झेल रहे दुश्वारीःराजनीतिक जानकारों कहते है कि लगभग 3 साल पहले नगरीय सीमा में शामिल हुए इन गांवों की हालत बद से बदतर हो चुकी है. सड़कों से लेकर पानी के निकासी और स्ट्रीट लाइट से लेकर अन्य छोटे-बड़े काम सब कुछ 3 सालों से बेपटरी हो चुका है. अब यहां के निवासियों के सामने क्षेत्र के विकास के लिए नई सरकार चुनना है. वाराणसी में ऐसे 84 गांव हैं, जिनको ग्राम पंचायत से निकल शहर की सीमा में शामिल किया गया है. ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि पहली बार नगर पंचायत में मतदान के जरिए ये तबका लंबे वक्त से झेल रही दुश्वारियों का अंत कर पाएंगे? वहीं, इन क्षेत्रों के प्रत्याशी इनकी समस्या को सुलझाने के लिए इन्हें कैसे विश्वास दिला पाएंगे?
हालात और बद से बदतरःदरअसल वाराणसी में योगी सरकार ने विकास का नया प्लान तैयार करते हुए शहरी सीमा के विस्तार को पंख लगाया. उन्होंने 84 गांव को शहर में शामिल करते हुए लगभग 3 साल पहले शहर का विस्तार किया. इस विस्तार में बनारस शहरी क्षेत्र से सटे गांवों के बनारस नगर निगम में शामिल किया गया. लोगों को उम्मीद थी कि इससे सब कुछ बदल जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बल्कि हालात और बस से बदतर हो गई. लोगों का कहना है कि जब गांव की सरकार थी तो लोगों को ग्राम प्रधान के बल पर सरकारी बजट का फायदा मिल जाता था. लेकिन, जैसे ही ग्रामीण क्षेत्र शहर में बदले लोगों के आगे एक बड़ा संकट खड़ा हो गया कि अब इनकी समस्याओं का समाधान कौन करेगा?