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सुलतानपुर: 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को धूल चटाने वाले रणबांकुरों को भूली सरकार

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Published : Jan 26, 2020, 5:32 PM IST

यूपी के सुलतानपुर जिले में अंग्रेजों के पैर उखाड़ने वाले हसनपुर रियासत के रणबांकुरों की शहादत को सरकार भूल गई है. गणतंत्र दिवस के मौके पर एक ओर जहां जवानों का सम्मान किया गया, वहीं उन शहीदों की कब्र पर एक फूल भी नहीं चढ़ा. राजा हसन अली खान के 700 सैनिकों ने अंग्रेजों को धूल चटाते हुए उन्हें काजू नाले तक खदेड़ा था.

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सुलतानपुर में उपेक्षा का शिकर शहीदों की कब्रगाह.

सुलतानपुर: अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले हसनपुर रियासत के रणबांकुरों की शहादत को उत्तर प्रदेश सरकार भूल गई है. सरकार के मुंह मोड़ने से अफसरों ने भी नजरें फेर ली हैं. मामला हसनपुर रियासत से जुड़े उन सैनिकों का है, जिन्होंने सन् 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान अपने प्राण न्यौछावर किए थे. आज उनकी पावन कब्रगाह पर गणतंत्र दिवस पर एक फूल भी नहीं चढ़ सका.

सरकार की उपेक्षा का शिकार सैनिकों की कब्रगाह.

अंग्रेजी फौज लौटने पर हुई थी मजबूर
सन् 1857 में अंग्रेजों ने सुलतानपुर पर धावा बोला था. तत्कालीन हसनपुर रियासत 700 रणबांकुरे के साथ मैदान में उतरे. अंग्रेजी सरकार की नींव तक हिला दी थी. सुलतानपुर में कादू नाला पुल पर भीषण संग्राम हुआ था. उसमें अंग्रेजी फौज को पैर पीछे खींचने पड़े थे.

उपेक्षा का शिकार शहीदों की कब्रगाह
सुलतानपुर पर अंग्रेजों का विजय ध्वज नहीं लहरा सका था. उस संग्राम में शहीद हुए सेनानियों की कब्रगाह लखनऊ-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग के बगल स्वतंत्रता के बाद बनाई गई. उसे सम्मान स्थल का नाम दिया गया था, लेकिन आज वह उत्तर प्रदेश सरकार और उनके अफसरों की उपेक्षा का शिकार है.

राजा हसन अली खान के वंशज मसूद अली कहते हैं कि जो यह कब्रगाह वर्ष 1857 में शहीद हुए उन लोगों की है, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. शासन प्रशासन से कोई सहारा नहीं है. यहां आने के जो रास्ते थे, वह भी बंद कर दिए जा रहे हैं. सैकड़ों साल से यह रास्ते चल रहे थे.

700 सैनिकों ने अंग्रेजों को चटाई धूल
मसूद अली ने बताया कि अंग्रेजों से उस समय राजा हसन अली खान ने 700 सैनिकों के साथ लोहा लिया था. 45 किलोमीटर दूर स्थित काजू नाले तक अंग्रेजों को खदेड़ा गया था. उनके कर्नल को मारकर टांग दिया गया था. आज गणतंत्र दिवस पर यहां कोई नहीं आया, बल्कि इसे खत्म करने का काम किया जा रहा है. वहीं स्थानीय निवासी चांद बाबू कहते हैं कि सरकार इस स्थल की देखरेख नहीं कर रही है.


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