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सीतापुर: नैमिषारण्य-मिश्रित तीर्थ से भगवान राम का रहा है खास नाता

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Published : Aug 6, 2020, 12:01 PM IST

नैमिषारण्य का अयोध्या के राम मन्दिर से सतयुग का जुड़ाव माना जाता है. गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरित मानस में नैमिषारण्य तीर्थ का उल्लेख किया गया है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान राम ने त्रेतायुग में यहां 84 कोस की परिक्रमा की थी.

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सीतापुर स्थित नैमिषारण्य तीर्थ.

सीतापुर:मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में प्रस्तावित भव्य मंदिर की आधारशिला रखे जाने से 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य में उत्साह का माहौल है. इसकी एक खास वजह भी है, वह यह कि नैमिषारण्य और मिश्रित तीर्थ से भगवान राम का खास जुड़ाव. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक उन्होंने त्रेतायुग में यहां की 84 कोस की परिक्रमा भी की थी. 84 कोस की इस परिक्रमा की परंपरा आज भी प्रचलित है, जिसमें शामिल होने वाले परिक्रमार्थियों को रामादल के नाम से जाना और पुकारा जाता है.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक भगवान राम का नैमिषारण्य से सतयुग काल से संबंध रहा है. आदि मानव मनु और सतरूपा ने नैमिषारण्य में आदिगंगा गोमती के तट पर 23 हजार वर्षों तक कठिन तपस्या की थी. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन देकर जब उनसे वरदान मांगने को0 कहा तो उन्होंने उनके जैसे पुत्र होने का वरदान मांगा. जिस पर भगवान विष्णु ने उन्हें अगले जन्म में पुत्र के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था और उन्हें अगले जन्म में होने वाले राम के बाल रूप का दर्शन भी कराया था. मनु सतरूपा की तपोस्थली आज भी व्यासगद्दी के सामने स्थित है. बाद में त्रेतायुग में मनु सतरुपा ने राजा दशरथ और माता कौशल्या के रूप में जन्म लिया था और भगवान राम उनके पुत्र के रूप में अवतरित हुए.

नैमिषारण्य-मिश्रित तीर्थ से भगवान राम के जुड़ाव के बारे में बताते जानकार.

दूसरा प्रसंग भगवान राम के नैमिषारण्य से संबंध का 84 कोस की परिक्रमा से जुड़ा हुआ है. वृत्तासुर दैत्य के संहार के लिए जब देवताओं ने महर्षि दधीचि से अस्थियों का दान मांगा था, तब उन्होंने पृथ्वीलोक के समस्त तीर्थों का स्नान और परिक्रमा करने की इच्छा व्यक्त की थी. जिस पर देवताओं ने 84 कोस परिधि में समस्त तीर्थो का आव्हान कर उन्हें स्थान दिया था, जिसके बाद महर्षि दधीचि ने इन तीर्थो की परिक्रमा और स्नान कर अपने शरीर का त्याग किया था. उसके बाद उनकी अस्थियों से शस्त्र बनाकर वृत्तासुर दैत्य का वध किया गया था. तब देवताओं ने इसी 84 कोस की परिक्रमा की परपंरा शुरू की थी. बाद में त्रेतायुग में भगवान राम ने भी यह 84 कोस की परंपरा की थी. विद्वानों के अनुसार महर्षि दधीचि के अस्थिदान के समय भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में राम के रूप में जन्म लेकर इस परिक्रमा को करने की बात कही थी.

एक और पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा दशरथ जब पुत्र की कामना के लिए महर्षि वशिष्ठ से यज्ञ करा रहे थे, तब यज्ञ पूर्ण नहीं हो रहा था. जिस पर महर्षि वशिष्ठ ने श्रृंगी ऋषि को बुलाकर उनसे सुझाव मांगा तो उन्होंने यज्ञ में सभी तीर्थों का जल यज्ञ में शामिल न किये जाने को यज्ञ न पूर्ण होने का कारण बताया. जिस पर मिश्रित तीर्थ का जल मंगाकर उसे यज्ञ में शामिल किया गया, उसके बाद यज्ञ की पूर्णाहुति हुई और यज्ञ भगवान से प्राप्त फल को खिलाने के बाद राजा दशरथ के पुत्र के रूप में भगवान राम का जन्म हुआ.

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