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स्वाधीनता संग्राम में योगदान करने वाला कसमंडा स्टेट, अपने में समेटे है गौरवशाली इतिहास - Biswan assembly constituency

सीतापुर जनपद का विधानसभा क्षेत्र बिसवां, जिले की ऐसी विधानसभा माना जाता है जहां जाति धर्म की सारी बेड़ियां टूट जाती हैं. 2012 में हुए परिसीमन के बाद जंगे आजादी और समाज सेवा के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ ,और धर्म के क्षेत्र में अपना अप्रतिम योगदान करने वाला कसमंडा राज्य भी इसी क्षेत्र का अंग बन गया. इस रियासत के वारिस और ऑस्ट्रेलिया में पढ़े लिखे कुंवर दिनकर प्रताप सिंह इस बार के चुनाव में एक गंभीर उम्मीदवार के रूप में नजर आ रहे हैं. ईटीवी ने कसमंडा रियासत के इतिहास और राजा साहब के भविष्य की योजनाओं पर बातचीत की.

स्वाधीनता संग्राम में योगदान करने वाला कसमंडा स्टेट
स्वाधीनता संग्राम में योगदान करने वाला कसमंडा स्टेट

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Published : Nov 25, 2021, 7:36 AM IST

Updated : Nov 25, 2021, 7:48 AM IST

सीतापुर: प्रदेश की राजधानी से कोई 60 किलोमीटर दूर पश्चिम में बसी सीतापुर जिले की कसमंडा रियासत का अपने आप में गौरवशाली इतिहास रहा है. जो अपने वैभव शान-ओ-शौकत के साथ ही राजनीति धर्म और साहित्य में भी अपना अप्रतिम योगदान देती रही है. अट्ठारह सौ सत्तावन के पहले स्वाधीनता संघर्ष के साथ देसी रियासतों द्वारा अंग्रेजी सरकार का खुलकर विरोध करने के कारण अंग्रेजों ने इस राजवंश के कसमंडा के किले को को पूरी तरह पूरी तरह ध्यवस्त कर दिया. जिसके बाद 1905 के करीब इस राजवंश के शासक राजा जवाहर सिंह ने राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलवे लाइन के किनारे रियासत का भव्य राज महल कमलापुर में निर्मित करवाया.

इसी वंश के राजा दिनेश दिनेश प्रताप सिंह ने राजवंश को बुलंदियों तक ले जाने का काम किया. उन्होंने शिक्षण संस्थानों की स्थापना के साथ ही जनहितकारी अनेकों कार्य किए. स्थानीय लोग बताते हैं कि सीतापुर की जिला जेल भी इसी रियासत का महल हुआ करती थी. जिसे राजा ने अंग्रेजों द्वारा नजरबंद किए जाने पर जेल का दर्जा खुद दिया था. यही नहीं पूरी दुनिया में सीतापुर आंख अस्पताल की स्थापना में भी इस राजवंश का बड़ा योगदान तो है ही काले पानी की सजा पाने और आजादी का फतवा देने वाले अल्लामा फाजल-ए-हक खैराबादी की धरोहर को भी संजोने का काम इसी राजवंश ने किया.

स्वाधीनता संग्राम में योगदान करने वाला कसमंडा स्टेट

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काशी के हिंदू विश्वविद्यालय के 5 अग्रणी दानदाताओं में इस राजवंश को भी गिना जाता है. वहीं इस राजवंश द्वारा दशकों से संस्कृत महाविद्यालय का भी संचालन किया जा रहा है. इस गौरवशाली राजवंश के उत्तराधिकारी कुंवर दिनकर प्रताप सिंह अपने बुजुर्गों की विरासत को संजोने और उनके कल्याणकारी कार्यों को आगे बढ़ाने के काम में लगे हुए हैं. हर दिन उनके दरवाजे पर लोग अपना दुख दर्द लेकर आते हैं और निराश नहीं होते. कुंवर खुद भी भ्रमण कर लोगों की समस्याओं को साझा करने की कोशिश करते हैं. इन सबके बीच कुंवर के राजनीति में सक्रिय होने की चर्चा जोरों पर है. उनका शुमार बीजेपी के बड़े लोगों में होता है और उनकी बड़ी पकड़ मानी जाती है.

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Last Updated : Nov 25, 2021, 7:48 AM IST

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