सीतापुर: कोरोना काल में ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों की अहमियत एक बार फिर बढ़ गई है. कोरोना संक्रमण के कारण बड़ी संख्या में अपने गांव वापस लौटे प्रवासी मजदूरों और कामगारों ने अपने बच्चों के दाखिले इन्हीं सरकारी स्कूलों में कराए हैं. इसी कारण पूरे जिले के नामांकन आंकड़ों में पिछले वर्ष के मुकाबले 9 हजार की बढ़ोतरी दर्ज हुई है. बेसिक शिक्षा अधिकारी का दावा है कि खंड शिक्षा अधिकारियों के माध्यम से प्रवासी मजदूरों के बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाने के लिए अभियान चलाया गया. इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं. इन सभी को ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही है.
कोरोना काल में फिर बढ़ी 'सरकारी स्कूलों' की अहमियत. बड़ी संख्या में परिषदीय विद्यालयों में बच्चों का हुआ दाखिला
वैश्विक महामारी कोरोना के कारण दूसरे जिलों की तरह इस जिले में भी बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर और कामगार वापस लौटे हैं. रोजगार छिनने के कारण उनके पास बच्चों को अच्छे निजी स्कूलों में पढ़ाने का सामर्थ्य नहीं था. ऐसे में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय उनके बच्चों का भविष्य संवारने की राह में काफी अहम और मददगार साबित हुए. प्रवासी मजदूरों और कामगारों ने अपने गांव के परिषदीय विद्यालयों में बच्चों का दाखिला कराकर उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया. बेसिक शिक्षा विभाग ने भी आउट ऑफ स्कूल बच्चों का सर्वे कराकर उन्हें सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिलाया.
5 लाख 6 हजार 890 बच्चों का हुआ नामांकन
बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय से मिले आंकड़ों के मुताबिक, चालू शैक्षिक सत्र में 5 लाख 6 हजार 890 बच्चों का नामांकन हुआ है, जबकि गत वर्ष यह छात्र संख्या 4 लाख 95 हजार 802 तक ही सीमित थी. बेसिक शिक्षा अधिकारी अजीत कुमार के मुताबिक, इस बार कोरोना का संक्रमण होने के बावजूद आउट ऑफ स्कूल बच्चों के दाखिले के लिए खण्ड शिक्षा अधिकारियों के माध्यम से अभियान चलाया गया. उन्होंने बताया कि चालू शैक्षिक सत्र में बच्चों को स्कूल में बिठाकर पढ़ाने की बजाय ऑनलाइन क्लास की सुविधा प्रदान की जा रही है. बच्चों को वाट्सएप ग्रुप के जरिए वीडियो के माध्यम पढ़ाया जा रहा है.
ऑनलाइन पढ़ाई के लिए संसाधनों का अभाव
प्रवासी मजदूरों के बच्चों के दाखिले और पढ़ाई की स्थिति जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने कई सरकारी स्कूलों का जायजा लिया. इन सरकारी विद्यालयों में बच्चे तो उपस्थित नहीं थे, किंतु वहां मौजूद शिक्षकों ने वर्तमान शिक्षा व्यवस्था का ब्यौरा पेश किया. परसेंडी विकास खण्ड के हेड मास्टर खुशतर रहमान ने बताया कि प्रवासी मजदूरों के बच्चों के दाखिले तो ले लिए गए हैं, लेकिन इनके पास संसाधनों का अभाव है. कुछ के पास एंड्राइड फोन की सुविधा नहीं है, तो कुछ के पास फोन रिचार्ज कराने की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में वे लोग व्यक्तिगत प्रयास करके बच्चों को पढ़ाने का प्रयास करते हैं.
ई-पाठशाला और दीक्षा एप के माध्यम से बच्चों को शिक्षित कर रहे शिक्षक
देना प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक दिलशाद खां ने बताया कि वे ई-पाठशाला और दीक्षा एप के माध्यम से बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं. उन्होंने भी ऑनलाइन शिक्षा के संबंध में व्यावहारिक कठिनाइयों के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि छात्रों के सामने एंड्राइड फोन के साथ ही बाधित विद्युत आपूर्ति के कारण फोन चार्ज करने की समस्या के साथ ही नेटवर्क की समस्या का भी सामना करना पड़ता है. फिर भी वे लोग छात्र और अभिभावक से सामंजस्य स्थापित करके बच्चों को शिक्षित करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं.
ग्राम सभा देना के प्रधान मनीराम ने बताया कि उनके गांव में आए प्रवासी मजदूरों में से कुछ लोगों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलाया है. उनकी ऑनलाइन पढ़ाई के लिए एंड्राइड फ़ोन की भी व्यवस्था कर रखी है, लेकिन कुछ प्रवासी मजदूर अब भी ऐसे हैं, जो अपने बच्चों के लिए यह व्यवस्था करने में असमर्थ हैं. फिर भी उनका प्रयास है कि कोई भी बच्चा पढ़ाई से वंचित न रहे.
अभिभावकों ने बताया कि उनके बच्चे ऑनलाइन शिक्षा का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. जिसका कारण उनके पास एंड्राइड फ़ोन की सुविधा न होना है. एक महिला ने बताया कि बच्चों की टीचर जो कुछ आकर बता जाती है, उसी के मुताबिक बच्चे पढ़ाई करते हैं. बाकी ऑनलाइन क्लास लेने के लिए उनके पास संसाधन नहीं हैं.