संतकबीरनगर : 'खादी वस्त्र नहीं, विचार है' राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इस सपने को साकार करने के लिए आजाद भारत में खादी वस्त्रों के निर्माण के लिए गांधी आश्रम की स्थापना गई थी. वहीं जिले के मगहर में महात्मा गांधी के सपने को साकार करने और हुनर्मंड को काम देने के मकसद से 60 के दशक में स्थापित गांधी आश्रम लोगों की रोजी रोटी का साधन था, लेकिन आज यह अपनी बदहाली पर रोने को मजबूर है.
बदहाल है मगहर का गांधी आश्रम, भूखमरी के कगार पर कर्मचारी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खादी के सपने को साकार करने के लिए संतकबीरनगर के मगहर में गांधी आश्रम की स्थापना की गई थी. आज सरकार की उदासीनता के चलते यही आश्रम अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. गांधी आश्रम की बदहाली और बंदी से कर्मचारी भुखमरी के शिकार हैं.
इस गांधी आश्रम को बनाने की सोच भी सही दिशा में जा रही थी. 80 के दशक तक खादी आश्रमों की रौनक देखने लायक थी. इसके बाद सरकार की दूरदर्शिता और उदासीनता के चलते यही आश्रम अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. यहां काम कर रहे सैकड़ों कर्मचारियों और बुनकरों की जिंदगी बेनूर और बेजार है. गांधी आश्रम की बदहाली और बंदी से कर्मचारी भूखमरी के शिकार हैं.
एक वक्त था जब इस गांधी आश्रम में लगभग तीन हजार कर्मचारी थे, लेकिन अब सिर्फ उनकी संख्या 27 रह गई है. यह गांधी आश्रम एक चैरिटेबल ट्रस्ट से चलाया जा रहा था. यहां खादी से बने कपड़े, अगरबत्ती, साबुन और अन्य सामानों का उत्पादन होता था, लेकिन आज सरकारी उदासीनता के चलते यहां पर पड़ी तमाम मशीनें जंग खा रहे हैं.