सहारनपुर: फतवों की नगरी देवबंद जहां इस्लामिक शिक्षण संस्थान के लिए दुनिया भर में पहचान रखता है. वहीं सिद्धपीठ त्रिपुर बाला सुंदरी देवी मंदिर भी हिन्दू समाज की आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि यदि कोई मां की खुली पिंडी के दर्शन नग्न आखों से कर लेता है, तो उसकी आंखों की रोशनी चली जाती है.
सहारनपुर जिला मुख्यालय से करीब 46 किलोमीटर दूर देवबंद में श्री त्रिपुर बाला सुंदरी देवी सिद्धपीठ मंदिर स्थित है. मां बाला सुंदरी देवी अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती है. दिल्ली देहरादून हाइवे पर स्तिथ इस सिद्धपीठ मंदिर में पश्चिम उत्तर प्रदेश से ही नहीं अपितु देश के कई राज्यों के श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं.
गुप्तांग है पिंडी रूप में विराजमान
मंदिर के पुजारी लोकेश शर्मा का कहना है कि सिद्धपीठ मंदिर महाभारत काल से भी पुराना है. जहां माता पार्वती का गुप्तांग पिंडी रूप में विराजमान है. मंदिर की सफाई एवं मां को स्नान कराते समय महंत को आंखों पर पट्टी बांधनी पड़ती है. इसके चलते त्रिपुर बाला सुंदरी देवी की इस पिंडी को चांदी के कलश से ढक कर रखा जाता है.
कोई भी नहीं पढ़ पाया पत्थर पर लिखा संदेश
मंदिर के मुख्य द्वार पर लगा एक पत्थर इस मंदिर के इतिहास के बारे बताता है. कहा जाता है कि पत्थर पर लिखे इस संदेश को दुनिया मे कोई भी नहीं पढ़ पाया है. श्रदालुओं की माने तो मां बाला सुंदरी देवी के दर्शन करने से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है.
चैत्र मास की चतुर्दशी को मेले का आयोजन
पुजारी पंडित लोकेश शर्मा कहते है कि चैत्र मास की चतुर्दशी को एक मेला लगता है. इस मेले की खास बात यह है कि अष्टमी और चतुर्दशी के बीच तेज तूफान और आंधी साथ बारिश भी आती है. जिससे माता के आगमन का पता चलता है. मंदिर में अंदर अलग नजारा होता है. बताया जाता है कि हवाओं के साथ आई बारिश मां बाला सुंदरी के आगमन का एहसास कराती है.
अज्ञातवास में अर्जुन ने की थी साधना
ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के समय अर्जुन ने इसी मंदिर शक्ति साधना की थी. यहां पर मां स्वयं प्रकट होकर पिंडी रूप में विराजमान हुई. त्रिपुर बाला सुंदरी का स्कंद पुराण केदारखंड में भी वर्णन लिखित रूप में दिया गया है, लेकिन इससे पहले कितना प्राचीन है यह किसी को मालूम नहीं है.